सोमवार, 30 अप्रैल 2018

 ,,   बाली " ,,,

     रात देर घर पहुंचा तो  माँ ने बताया कोई आया था स्कूटर से ,,,तुमको पूछ रहा था !
     सन ,,1970 ,, में बालाघाट में नौकरी लगी थी , विद्युत्  मंडल में ,,,, शहर में नया नया था ,!
    अभी तो ठीक से विभाग में ही जान पहचान नहीं हुई थी ,,,तो ऐसा कौन होता जो मुझे ढूंढता आता ??   वह भी स्कूटर से ,,??

   कौतुहल इसलिए  हुआ   क्यूंकि उन दिनों स्कूटर का किसी के पास होना एक रईसी की निशानी थी  और कोई  रईस  व्यक्ति मुझे खोजे यह तो मेरे लिए   अचम्भे   की बात थी !

   दूसरे दिन , सुबह सुबह मेरी मकान मालकिन दरवाजे पर आईं ,! उन्होंने कहा की,,,' भैया ,,, शाम को  सोनवाने  जी आये थे ,,आप से मिलने  वे आपका नाम पूछ रहे थे ,, !  मैंने तो उन्हें बैठने को भी कहा ,,,लेकिन बैठे नहीं ,,यह कह कर चले गए की साहब आएं तो उन्हें मेरी दूकान पर मिलने को कह दीजियेगा ! '

     सोनवाने ,, नाम सुन कर मुझे कुछ कुछ याद आया ,,! मुझे नौकरी ज्वाइन करते ही तीन बड़े गावों के विद्युतीकरण का काम सौंप दिया गया था ! तीनो इस जिले के बड़े गावं थे , शहर से लगभग १२ किलोमीटर दूर ,,!  इन गावों में लिफ्ट इरिगेशन की योजना अंतर्गत , विभाग को मिले वर्ड बैंक के बजट से , अधिकतम खेतों में धरती के अंदर से पानी उलीच कर सिंचाई करने के लिए पम्प कनेक्शन देने का प्रावधान था ! इसके लिए अलग से एक ११ के वी का फीडर शहर के एक किनारे बने सब स्टेशन से खींच कर , गावं तक ले जाना था ! इन गावों की साइट के लिए जाते समय एक बहुत बड़ी आइल मिल दिखती थी ,,जिसमें   सोनवाने   आइल मिल लिखा हुआ था !  तो यही मिल मालिक हो सकता हो घर आये हों !  लेकिन   दुकान  से क्या अर्थ था ,,??
  मैंने मकान मालकिन से पूछा ,," वो तो मिल है ,,,   दुकान  नहीं ,,,फिर मुझे  दुकान  में मिलने को क्यों बोला होगा उन्होंने ,,?? "
  मकान मालकिन उत्साह दिखाती हुई बोली ,," अरे भैया ,,,उनकी  दुकान  भी है ,,,सोने चांदी की बड़ी  दुकान    मैं तो वहीं से गहने खरीदती हूँ ,,   आप नहीं जानते वे नगर सेठ हैं ,,बहुत से कारोबार हैं ,,, लेकिन राम भक्त हैं ,,हर साल रामायण के व्याख्यान करवाते हैं ,,, बड़े बड़े संत आते हैं ,,, देर रात तक रामायण पर व्याख्या होती है ,,,हम लोग वहां भी रोज जाते हैं ,,, पूरा शहर उमड़ता है ,,, सेठ जी द्वार पर खड़े हो कर सबका अभिवादन करते हैं ! "
    मैं चिंता में पड़ गया ,,,!  एक संत स्वभाव  का  आदमी मेरे घर तक  ,आया था ,!,  उसे  मुझसे क्या काम पड़  गया होगा ,,??,,,,अब  मैं जाऊं या नहीं ,, ?!
 अंत में दिल ने कहा ,,,तुम क्यों जाओ भाई वहां ?? ,,,,,, उन्हें जरुरत होगी तो वे फिर बुला  लेंगे  या खुद आ जाएंगे ,,!
 लिहाजा में नहीं गया !

  दो दिन बाद सुबह सुबह ही मेरे घर के सामने , स्कूटर का हार्न बजा !  मैं बाहर निकलता  इससे पहले ही मकान मालकिन हड़बड़ाती हुई आयी और बोली ,,," सेठ जी आज फिर आये हैं ,,,बाहर खड़े आपको याद कर रहे हैं " !   बदन पर  शर्ट  डाल   कर मैं बाहर आया तो देखा की एक अति सौम्य  सा  व्यक्ति स्कूटर पर बैठा मेरा इंतज़ार कर रहा था !  उनके मस्तस्क पर गोल टीका,  सूर्य की तरह देदीप्यमान हो रहा था ,,, और धवल धोती कुर्ता का परिधान ,  उनकी सौम्यता की गवाही दे  रहा था  ! गले में एक मुखी रुद्राक्ष की माला थी ,,,जो एक भारी सोने की चैन के साथ साथ , मानो  युगलबंदी कर रही थी ! मैं नमस्कार करूँ ,,, इससे पहले उन्होंने खुद नमस्कार करके  दोनों हाथ जोड़ कर मेरी और सर झुका दिया ! मैं झेंप गया ,,,,यह व्यक्ति कितना विनम्र है ,,,और एक मैं हूँ की ,,,पहले नमस्कार करने में भी आलस्य कर गया !
मैंने कहा। ---.."आइये। .बैठिये " !
वे बोले -- " थोड़ा सा समय चाहिए था आपका ,,! अगर दे सकें तो मेहरबानी "
मैंने कहा __ हाँ हाँ !! बताएं ,,! "
वे स्कूटर से उतर गए , स्टेण्ड पर गाड़ी खड़ी की ,, फिर मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोले ,---" चलिए चलते हुए बाहर ही बात करते हैं !,,,  आप हमारे जिले के विकास के लिए गावों में बिजली लगाने का काम कर रहे हैं ,,,मैं आपको रोज अपनी मिल के आगे से गुजरते देखता हूँ   कई बार सोचा की आपको मिल में बुला कर , आपको जलपान करवाऊं ,,,लेकिन आप तेजी में निकल जाते हैं   ! "
मैंने कहा  --  " वह तो काम है ,,ड्यूटी है ,,,उसके लिए ही तो तनख्वाह पाता हूँ ! "
वे मुस्कराये -- ' सही है ,,,लेकिन हमें भी लगता है , हमारे क्षेत्र में कोई अफसर काम करवा रहा है तो उसकी खिदमत भी मैं करूँ !"
" कैसी खिदमत " ,,??
 " अरे युहीं छोटी सी खिदमत " ,,!"    कहते हुए उन्होंने एक लिफाफा मेरी ऊपर की  जेब में डाल दिया !
  मैं चिंहुक गया ,,!  मैनी लिफाफा जेब से निकाला और उनकी और वापिस  बढ़ाते हुए पूछा -- " यह क्या है ? "
  " अरे कुछ नहीं एक भेंट है , इसमें दो सौ रूपये हैं ,! "
   मैं अचकचा गया !उस जमाने में दो सौ रुपये बड़ी रकम होती थी !   मैंने कहा  ---  " भला क्यों  ,,?? क्यों दे रहे हैं आप मुझे यह भेंट ??  मैंने ऐसा कौन सा नेक काम किया है ,,??
  " नहीं किया है तो कर दीजियेगा  कोई  ,,  नेक काम "
 "  क्या काम   ?? "
  " काम छोटा सा है ,,!"  वे मेरे कान से मुँह  सटाते  हुए बोले --- " ,,,जहाँ से आप बिजली की लाइन निकाल रहे हैं ,,,वहीं पर मेरे भाई का एक खेत है ,,! ,,,

   ' कहाँ ,,?? "

    " गोंदिया रोड पर मेरी मिल के आगे बांयी और "
  ,,,"  तो "
    " तो यह कि ,,, उस खेत को खरीदने के लिए मैं कई साल से कोशिश कर रहां हूँ ,,,!  भाई गरीब है ,उसकी माली हालत ठीक नहीं है , ,,वह बेचना चाहता है ,,,लेकिन उसके बच्चे  उसे रोक देते हैं ,,वह उसे बरगलाते  हैं की जल्दी ही बिजली का विकास होने पर यहाँ दुकाने बना लेंगे ,, कुछ काम शुरू  कर देंगे ! "
   " वे बात तो सही कर रहे हैं ,,,वहां विकास तो जल्दी ही होगा ही "
   " यह तो मैं भी जानता हूँ ,,,इसीलिये तो अब वह जमीन हर हालत में खरीदना मेरे लिए जरूरी है  मेरा प्लान वहां शॉपिंग  सेंटर बनाने का है  ! "
  "  तो आपका ही तो भाई है ,,,खरीद लीजिये उससे जमीन "
  " अरे आप नहीं जानते हैं  " ,,,,वे दांत कसमसाते हुए बोले ,,,"  नहीं राजी है ,,, दुने तिगुने दाम माँगता है ! "
     " चलिए ,,,तो इसमें मुझ से क्या काम है आपको ??"
    " आप बिजली की लाइन उसके बीच खेत से निकाल दीजिये ,,,बीच खेतों में तीन चार खम्बे गढ़वा दीजिये ,  ,,जैसे ही गड्ढे खुदेंगे   मेरा भाई खुद दौड़ते हुए आएगा मेरे पास ,,,,और सस्ते में खेत बेचने को राजी हो जाएगा ,,,, आखिर सरकारी काम थोड़े ही रुक सकते हैं  उस  के चाहने से ,,! " --  वह यूँ हंसा जैसे मारीच हंसा हो !
   "  तो यह बात है " ,,,मैंने उन्हें घूर कर देखा    फिर कहा ---" लेकिन लाइन का सर्वे तो मैं पहले ही से कर चुका हूँ ,,,मेरी लाइन तो सड़क के दाहिने और से निकल रही है ,,,जबकि आप  अपने  भाई के खेत बाईं और बता रहे हैं ! "
    वे अचानक  उचक पड़े,,,!   जैसे उनका पैर  सांप पर पड़  गया हो ! ,,,, हकलाते हुए   से बोले --
    " अरे यह क्या कह रहे हैं आप ?? ,,,सड़क के दाहिने तरफ तो सब  मेरे प्लाट हैं ,,वहां मैं एक कालोनी बनाने जा रहा हूँ ,,,!  मेरा तो सत्यानास हो जाएगा ! "
    मैं तब तक उनका दिया लिफाफा वापिस उनकी ही   ऊपरी जेब में रख चुका था ! दुर्भाग्य से मैं एक  मास्टर का लड़का था ,,,मुझे लालच से ज्यादा मूल्यों की घुट्टी ज्यादा पिलाई थी मेरे पिता ने ! और संयोग यह था की छोटी कक्षाओं में पढ़ते समय  अपने गावं की रामलीला में मैंने राम का अभिनय किया था !  राम  बन कर मूर्च्छित लक्षमण के सीने पर मैं फूट फूट  कर रोया था ,,,अपने भाई को बचाने  ! रामलीला में ,  सुग्रीव के कहने पर बाली का बध  जरूर किया था ,,,लेकिन उन कारणों को बताते हुए की "  ,,अनुज वधु , भगनी  सुत  नारी , सुन  शठ  ये   कन्या सम  चारी,,,इन्हहि कुदृष्टि विलोकहि जेही , ताहि  बधे  कछु पाप ना होही ,,! "   तो  यहां उस चौपाई  के अनुसार कोई कारण भी नहीं था की मैं सोनवाने  जी के भाई पर धर्म की रक्षार्थ , प्रहार करता !
     लिहाजा , मैंने  सोनवाने  जी  को  उन्ही की  शैली में उत्तर देते हुए कहा ---" अब तो जो सर्वे होना था हो चुका !   ,,यह  सरकारी काम है ,  रोका थोड़े ही जा सकता है !  ,,,कल से गड्ढे खुदना शुरू हो जाएंगे ,,,और हम लोग एक दिन में चार  पोल खड़े कर देते हैं ! "
 " लेकिन साहब !,",,,  वे  मिमयाती आवाज़ में बोलने लगे --," ,वह मेरी जमीन है ,,, वहां तो रहवासी मकान बनाये जाने हैं ,,, बड़ा गज़ब हो जाएगा ,,,आप काम रुकवा दें ,,! "
   मुझे हंसी आ गयी ,,, किसी तरह हंसी  रोकते हुए बोला ---" काम कैसे रुकेगा ,,?? अभी तो वह सब खेत हैं ,, कोई प्लाट नहीं ,,,और ना आपने अभी तक लेंड डायवर्सन करवाया होगा ! "
    उन्होंने  जेब टटोलकर सौ  के दो  नोट  और  निकाल लिए ,,, लिफ़ाफ़े  के ऊपर रख कर बोले ,,," आप फीस ले लें ,,,लेकिन काम तुरंत रुकवा दें ,,,मैं तब तक इंतज़ाम कर लूंगा ,,,स्टे ले लूंगा ! "
   अब मेरा स्वर तल्ख़ हो गया ,,!  मैंने कहा -- " आप मुझे क्या समझ रहे हैं ,,, ""  आप करोड़ों रुपये भी दे दें तब भी में अपने ईमान से डिगने वाला आदमी नहीं समझे ,,!  अपने ये पैसे अपनी जेब में रखें     मुझे लालच देने की कोशिश ना करें ! "
  वे निरीह से मुझे देखते रहे ,,,फिर मुस्करा कर बोले ,,,_  "  सोच लीजिये ,,,, मेरे काम तो हो ही जाएंगे ,,,लेकिन आप घाटे में रहेंगे ! "
 " घाटा नफ़ा आप जैसे लोग सोचते हैं ,,, जो भाई की बर्बादी में अपना नफ़ा देखे उससे घटिया आदमी कौन होगा ,  अब आप जाइये ,,,मैंने आप से  इतनी बात इसलिए कर ली क्यूंकि मुझे किसी ने बताया था की आप धर्म परायण व्यक्ति हैं ,,, हर साल रामायण के व्याख्यान कराते हैं ,,, लेकिन अब आप जाइये ,,,आप का काम मेरे जैसे व्यक्ति के माध्यम से कभी पूरा नहीं होगा ! " ,??
   इतना कह कर मैं बिना उनकी और देखे , बिना नमस्कार किये घर के फाटक के अंदर घुस गया ! थोड़ी देर बाद स्कूटर की आवाज़ आयी ,,, और दूर चली गयी ,,,! स्पष्ट था की वो खिसिया कर वापिस चले गए थे !

    नहा  धो कर आफिस पहुंचा तो लाइनमेन ने बताया की ऐ ई   साहब का  दो बार फोन आ चुका है  ! उन्होंने आप को तुरंत बात करने के लिए कहा है ! मैं धर्म भीरु तो था ही , अनुशाशन भीरु भी था !  धड़कते दिल से अपने बॉस , ऐ ई  साहब  को नंबर डायल किया !
   ऐ ई  साहब का सरनेम सलूजा  था ! पक्के पंजाबी ! स्वभाव से कड़क ,,,, जो सोचलें वही करने में माहिर !   ,,,  वे हर महीने अपने अधीनस्थ वितरण केंद्रों का निरीक्षण करने के आदि थे !  गलतियां पकड़ लें तो फिर सुई की नोक बराबर गलती भी उनकी निगाह से ना बचे  , और नज़रअंदाज कर दें तो हाथी जैसी गलती भी ना देखें ! मेरे साथी सब इंजीनियर बताते थे ,,,की हर बार निरीक्षण करने के बाद , उन्हें मुर्गा खाने की आदत थी ,,! शायद घर में मुर्गा बनाने के लिए मेडम मना कर देती थी !  जब वितरण केंद्रों में निरीक्षण के बाद मुर्गा बनता ,,,तो उसे पचाने के लिए , शुद्ध विदेशी मदिरा का भी इंतजाम सब इंजीनियरों को करना पड़ता था !   भोजन के बाद वे सहृदय हो जाते थे ,,,अधीनस्थों को गलतियां सुधारने की तरकीब स्वयं बता देते थे   इसलिए स्टाफ  उन्हें देवता मानता था !
    फोन उठाते ही सलूजा साहब भड़की आवाज़ में बोले ---" अरे क्या शर्मा ,,,क्या लफड़ा कर रहे हो खम्बे खड़े करने में ,,?? "
   मैंने हकलाती आवाज़ में कहा --" कुछ नहीं सर ,,,काम तो बिलकुल सही चल रहा है ! "
   " क्या ख़ाक चल रहा है ,,?? ----वे बोले ,,,,,," किसी के प्लाट के ऊपर से लाइने खींच रहे हो ,,,झगड़े को निमंत्रण दे रहे हो ! "
    मेरी तीक्ष्ण बुद्धि  में तुरंत मामला समझ में आ गया ,,,!  सोनवाने ने अपना दावं खेला है !
  मैंने संयत हो कर कहा --- ' सर लाइन बिलकुल सही खींची जा रही है ,,, पूरे  खेत हैं ,, कोई प्लाट नहीं ,,,और में भी कोशिश करता हूँ की पोल मेड पर ही गाड़ें  जाएँ  ,,ताकि किसी के खेत बर्बाद ना हों ,,! "
     "  यही तो गलती है ,,, पोल की दूरी तुम क्यों घटा बढ़ा देते हो ,,??   और तुम्हे कैसे पता की सब खेत ही हैं ,,,वहां प्लाट नहीं ,,,क्या रेवेन्यू रिकार्ड चेक किया ,,?? "
  "   नहीं सर ,,,! "
  " देखो अगर कोई कहे की वहां प्लाट हैं ,,,तो मान लो की वहां प्लाट होंगे ,,,!   वहां से लाइन मत  निकालो,,,समझे  ! "
   जी सर ,,! " --- " लेकिन फिर कहाँ से निकालूँ ,,, ?? सड़क के के तो दोनों और खेत हैं ,,,वहां कोई भी प्लाट हो सकता है ! "
  " सड़क के दाईं और अगर कोई कहे की प्लाट हैं ,,,तो झगड़े को दावत मत दो ,,  बाईं और से लाइन निकाल दो ,,, समझे। .!! "
    " लेकिन सर   ऐसा करने में तो रोड पार करनी होगी , रोड क्लीरेंस के लिए रेल पोल लगाने होंगे ,  गार्डिंग करनी होगी ,,! पोल गाड़ने के लिए अलग से सीमेंट लगेगी   ,,विभाग का ,खर्चा बढ़ जाएगा ,,,एस्टीमेट ओवर हो जाएगा ! "
    "  हूँ ,,, ठीक है ,,,तुम मुझसे अलग से एक एप्रूवल ले लो ,,, मैं दे दूंगा ,  रेल पोल लगा दो , कांक्रीट कर दो , क्लीरेंस बना दो    सब चलेगा ,!  लेकिन लाइन को रोड की बाईं और से ही निकाल दो ,,,वहां कोई नहीं आएगा शिकायत ले कर ,,,विभाग का काम बिना झगडे झंझट के पूरा हो जाएगा ,,,समझे ! "
----"   ठीक है सर ,,! "

  उन्होंने फोन पटक दिया !  मैं सोचने लगा ,, दो रेल पोल , स्टे , कांक्रीट , गार्डिंग ,,,जिसकी कतई  जरुरत नहीं थी ,,, वह विभाग क्यों वहां करेगा ,,?? आखिर विभाग का मतलब क्या है ,,,??    अफसर या इंजीनियर ,,,या फिर वित्त ,,??
    तभी मेरा एक साथी इंजीनियर भी आ गया !   बोला - " सर ने तुम्हारी मदद के लिए मुझे भेजा है !  लाइन को बाईं और से निकालना है ,,, सर्वे करवा कर दो दिन में ही पोल खड़े करवा दें ,, लाइन खींच कर काम जल्दी करवाना है ,,,उदघाटन की डेट तय हो गयी है,,,,समझे ,,,??  !

   " समझे " एक अंदाज़ में कह कर वह हंस दिया !  में कहा---" अब भी ना समझूँ तो मुझसे बड़ा गधा कौन होगा भाई ,,!! "
      दूसरे दिन ही अचानक मेरे दादाजी की तबियत के बहुत खराब होने का टेलीग्राम मिला ! मैंने ऐ ई  साहब से सात दिन की छुट्टी  माँगी ,,,उन्होंने तुरंत दे दी !  शायद यह छुट्टी जितनी मेरे लिए जरूरी थी उतनी ही ऐ ई   साहब , के साथ साथ  सोनवाने के लिए भी जरूरी थी ! मैंने  अपना काम साथी इंजीनियर को सौंपा और तुरंत ट्रेन  ट्रेन पकड़ कर घर चल दिया !
   ट्रेन में बैठे बैठे   मैं सोचता रहा ,,,क्या हम सचमुच इंजीनियर है ,,,या एक " औजार " ! ऐसे औजार ,,,जिनके पास अपना कोई दिमाग नहीं होता ,,,! उसे यह भी नहीं मालुम होता की वह किस जगह क्यों कुछ छील रहा है ,,,!  सिर्फ उसका काम   खोदना  , तोड़ना , छीलना है ,,,, निर्माण की गुणवत्ता से उसका कोई सम्बन्ध नहीं ! फिर हमारी पढ़ाई से क्या लाभ ,,? अगर हम सिर्फ औजारों की तरह ही उपयोग हो रहे होते हैं  तो हमारे घर के लोग पढ़ाई की मोटी रकम खर्च कर के हमें क्यों पढ़ा रहे हैं ?? !

    मन में तर्क उठा --- क्या रामायण के पात्रों के बीच लड़ाई ख़त्म हो गयी है ,,??  क्या आज भी   बाली  अपने छोटे भाई सुग्रीव को राज निष्काषित करके , उसकी जमीन नहीं छीन लेना चाहता है ,??  क्या सहोदर भाई के ऊपर कोई बाली उदार है ,,?  क्या  आज भी  बाली के पास.."  कोर्ट' ,' अधिकारी' , 'पैसे',, जैसे घातक हथियार नहीं है और क्या वह   पलक  झपकते ही , सामने वाले  का  बल आधा नहीं कर देने में  समर्थ नहीं  है ,,??   और  क्या राज्य  निष्काषित  सुग्रीव का दर्द कोई  राज्य  निष्काषित राम ही जान पाता  है ,,,कोई दूसरा नहीं ,,,और क्या तब तक सुग्रीव को दीन हीन   बन  कर भय के साथ जीवन बिताना जरूरी है ,,,जब तक उसे राम ना मिले ,,??

     कुछ दिनों बाद जब में लौट कर आया तो मेरे साथी इंजीनियर ने लाइने , रोड के बाईं और से खिंचवा दी थी !  शायद सोनवाने का भाई अपना  खेत आने पौने दामों में  सोनवाने को  बेच गया था !  इसकी  तस्दीक काफी दिनों बाद तब हुई , जब में कई वर्षों बाद एक बार बालाघाट गया तो मुझे वह पूरा इलाका विकसित दिखा !  सोनवाने के भाई के जिन प्लाटों में कभी खम्बे गाड़े गए थे ,,वहां से वे शिफ्ट हो गए थे !  वहां पर एक बड़ा मैरिज  हाल बन चुका था !  मैंने पूछा की यह किसका है तो लोगों ने बताया की  ' मिल वाले सोनवाने जी '  का !

   शाम को शहर में घूमते हुए यूँही फुल्की खाने की इच्छा हुई ,,,तो एक ठेले पर खड़ा हो गया ! उस पर लिखे बोर्ड पर ध्यान दिया तो पाया वह सोनवाने फुलकीवाला है !  मुझे   कौतुहल हुआ तो फुल्की बनाने वाले से पूछ लिया ,, क्या तुम्हारा एक खेत कभी गोंदिया रोड पर था ,,,रोड के बाईं और   मिल के पास ,,??
    उसने सर हिलाते हुए कहा--- " हाँ सर था वहां ,,,मेरे पिताजी के नाम ,,पर उन्होंने बेच दिया था ,,, ताऊ जी को ,,  वे अपने बड़े भैया को बहुत मानते थे ,,, हमारे मना करने पर भी नहीं माने ,,!"
     " तो अब क्या है तुम्हारे पास ,,?? "
     " यही फुल्की वाला ठेला है   गुजर बसर के लिए "
     " तुम्हारे दूसरे भाई ,,वगैरह नहीं है ,,?"
       " नहीं सर ,,,एक फौज में भर्ती हो गया था ,,,वह काश्मीर में शहीद हो गया ,, आतंकवादियों से लड़ते ,,! दूसरे भाई की अभी दो महीने पहले ही मौत हुई है ,,,कैंसर से ,,,सिर्फ अब मैं बचा हूँ ,,!

            अंत में मुझे " सलूजा  साहब " याद आये ,,,जिन्होंने इन तीनो भाइयों को तो वर्षों पहले ही मार दिया था ! शायद एक टीन  सरसों के तेल के बदले , जो सोनवाने आयल मिल से , उनकी जीप में उनके बंगले के लिए ,  जीप ड्रायवर ले कर गया था ,,!  यह बात उनके तबादले के बाद , खुद ड्रायवर ने ही बताई थी मुझे !

   सोनवाने फुल्की वाला मुझे पूछ रहा था ,," चटनी खट्टी लेंगे या मीठी ,,??,,

               ,और मेरी जीभ थी की सारे स्वाद खो चुकी थी !


---सभाजीत

 






मंगलवार, 3 अप्रैल 2018







मैं ब्राहमन हूँ ...!!

मैं क्यू ब्राह्मंण हूँ .? ..
.यह मुझे नही पता ...!!

.....बस .
.एक ब्राहमन के घर जन्म लिया ..
तो मैं एक ब्राहमन हो गया .!!

मेरी शिक्षा है ..एम एस सी .!!

आप पूछेंगे,
 तब यह वेश क्यू धारण किया
पंडित्याई का ??

हाँ ...!!
 मैं पंडितयाई करता हूँ !
घरों में,
 कथा ,हवन , महाभीषेक , पित्र पूजन , करके,
 अपनी जीविका चलाता हूँ !!

यह मुझे किसी ने नहीं सिखाया .
.क्यूँकी,
 यह मेरा पैत्रिक कार्य था !

इसके लिये कहीं इमतहान देने नही गया !
ना टाप टेन में आने की ज़रूरत पडी !
 ओर ना ही दिनरात पढाई करनी पडी ...
.जैसी मैने कालेज में की !!

,,ना कोई बडी फीस लगी .
..ना ट्युशन ..!.
..जैसी कि मुझे शिक्षा ग्रहण करने के लिये लगी .
..जिसे जूटाते जूटाते
..मेरे व्रद्ध पिता स्वर्ग सिधार गये !
,,,
वे एक गरीब व्यक्ति थे
..बहुत गरीब ..!!
भिक्षाटन से ज़िन्दगी शुरु की थी उन्होने ..!!
लेकिन सरकारी सूची में,
 ब्राहमन को गरीब माना ही नही गया था !

उल्टे ,
जब भी मैने किसी नौकरी के लिये फार्म भरा .
...तो लिखना पड़ा ....' ब्राहमन '..!
क्यूँकी,,
 " गरीब " का कालम था ही नही वहां ..!!
मेरे लिये नही था कोई ..
." आरक्षण .."..!!
मेरे लिये थी .
..' प्रतीक्षा " की अंतिम सीट .
 क्यूँकी में ब्राहमन था .!!

,,,हां ...!.
..मुझे मिला था ,
मेरी योगयता के लिये ,
 स्कूल में ..' बेस्ट साइंस माडल ' का पुरस्कार ..!
लेकिन मैं नही था .,
..योग्य ..,
 उस नौकरी के लिये .
..जहां ब्राहमन होना गलत था !

सही था तो पिछडा होना !
मुझे नही मालूम,
 मैं क्यू ब्राहमन था ...ओर क्यू नही पिछडा था !
लेकिन आज पिछडा हूँ !
पिछडा हूँ ...अपनी योग्यता में ...!
पिछडा हूँ अपने देश में ..!!
ओर अब पिछडा हूँ ...अपने कर्म में ..!!
आरोप है .
.कभी मेरे पूर्वजों ने किया था दमन ..
पिछडो पर
...ज़िसका प्रतिकार मैं झेल रहा हूँ !
....
लेकिन मैं तो आज हूँ ..,
बीता हुआ कल नही ....!!
मैं ब्राहमन हूँ ...!!
ए मेरे देश ..!
क्या मेरी जगह भी सुरक्षित हो सकती है
..तेरी गोद में ..??
ना सही एक पिछडे की तरह .,
एक गरीब की तरह ही सही ..!!
कि कर सकूँ तेरी सेवा ..
अपनी ' योग्यता अनुसार ..!!
ना .! ..ना ..! ...मुझे आरक्षण नही चाहिये ..,
मुझे सिर्फ अपना हक चाहिये ...,
अपनी योग्यता का,, हक ...!,
कि मै कब का छोड चुका ...,
' भीख मांगना '....!!

,,सभाजीत