सोमवार, 10 दिसंबर 2018

किताबों के कीड़े ,
किताबों में रहते हैं ,,
किताबें कुतरते ,
किताबें खाते हैं ,,
और जब बहुत मोटे हो जाते हैं ,
 तब बाहर आते हैं ,,!!

बाहर निकलने पर ,
वे दीमक को समझाते हैं ,,!
की किताबें तो बस  वही  हैं ,,
जिसको उन्होंने पढ़ा ,,
बाकी तो ,,बकवास है ,
 ' मूर्खों का गढ़ा ',,!!

वर्जनाओं को तोड़ दो ,
 हवाओं का  रुख मोड़ दो ,,
तुम घुसो हर  जगह पर ,
हर पुराने घर ,
फोड़ दो ,

तुम  लिखो  कि,,
नदियों के धारे ,,
ऊपर से नीचे क्यों नहीं बहे ,,?
तुम कहो कि,,
पर्वत घमंडी ,,
सर उठाये क्यों खड़े ,,??

तुम ये पूछो ,
 क्यों हवा में ,,परिंदों का राज है ,,?
तुम ये  पूछो  ,
 शेर क्यों ,,
 बकरी को खाने को आज़ाद है ,,??
तुम बताओ ,,
 नई पीढ़ी को,,, कि ,,
वाद ही संवाद है ,,!
तुम  समझाओ ,
प्रगति का  मतलब  ही  बस ,
 प्रतिवाद है ,,!!

बदल दो तुम देश ,
 हर परिवेश ,
तोड़ कर पुराने विश्वाश ,
मिटा दो किंबदंती ,
  कि,,लिख लो ,
खुद नया इतिहास ,,,!!
भुला दो पूर्वजों के नाम ,
पुराने खानपान ,,!
कि किंचित शेष ना रह पाए ,
 अपने आप की पहचान ,,!!

प्रगति के नाम पर ,
विदेशी हाथ,,,
 थाम कर ,,
तुम धरो एक लक्ष्य ,
की हो तुम्हारा ,,
चतुर्दिश ,,एकछत्र ,,राज ,,,
रटाते रहो सबको सदा ,
की बाकी सब हैं ,
 गरीब और मजदूर ,,
एक तुम ही हो ,
 सबके ,,," गरीब नवाज़ " ,,,!!
रियासत से ,,
 सियासत तक ,
प्रजा कहलाये ,हरदम ,एक चिड़िया ,,
और तुम   रहो  ,,
उनके शिकारी ,,,
 आसमां में उड़ते ,,,' बाज़ ' ,,!!

---  सभाजीत

शनिवार, 27 अक्तूबर 2018


"  चन्दा मामा "

*******



शैशवास्था में , माँ के चेहरे को लगातार देखते रहने के बाद , जब घर के बाहर किसी और चेहरे को पहचानने का बोध जागा , तो माँ ने मुझे गोद में ले कर , चाँद दिखाते हुए कहा --" वह है ' चन्दा मामा " ! मैंने  माँ के चेहरे को छू कर , फिर चाँद के चहरे को छूने के लिए अपना नन्हा हाथ बढ़ाया , तो माँ ने हँसते हुए कहा --" चन्दा मामा दूर के ,,"  !,,,,  , उसे सिर्फ बुला सकते हो ,,, उसके साथ खेल सकते हो , लेकिन उसे छू नहीं सकते !  तब मुझे महसूस हुआ  की माँ के जैसा ही कोई अपना और भी है , जो मेरे साथ खेल सकता है , जिसे मैं कभी भी बुला सकता हूँ ,  और  जिससे मुझे कोई भय नहीं ! ,
 
   कुछ बड़ा हुआ , तो वही चाँद , अपने कई रूप बदलता दिखा ,, कभी , नाखून की तरह , कभी आधा अधूरा , कभी बहुत बड़ा , तो कभी आसमान से बिलकुल विलुप्त ! कभी वह बदलियों में घंटों छुप जाता , तो कभी  अचानक प्रकट हो जाता !  तब मैंने माँ से पूछा भी था की यह कैसा मामा है ,,? जो रूप बदल बदल कर रहता है ,,?? 
       माँ ने कहा ,,," वह तुम्हें '  चिढ़ाता  " है , वह भी उसका तुम्हारे लिए एक खेल है ,,  तुम  भी उसे चिढ़ा देना !  मैंने माँ की बात मान कर चाँद को कई बार जीभ दिखा कर चिढ़ाया भी ,,और खुश भी हुआ की मैंने उसे जबाब दे दिया !
 
        कुछ दिनों बाद मेरी बहिन ने जन्म लिया , तो चाँद को मैं भूल गया !  दिन भर बहिन का चेहरा देख कर ही खुश होता रहता ,,   लेकिन बहिन के थोड़ा  बड़े होते ही ,  चाँद  फिर मेरे जीवन में  आ गया   , अपना बड़ा सा गोल मुँह ले कर , की  देखो ,,, मैं साक्षी हूँ , उस रक्षा बंधन का , जो तुम अपनी बहिन की रक्षा के लिए , अपनी कलाई पर " राखी " के रूप में बँधवाओगे ! माँ ने बताया की , ' रक्षा बंधन ' पूर्णिमा के दिन आता है ,!,,,,,,जब तुम्हारा चंदामामा  तुम्हारे हाथ में , तुम्हारी बहिन के हाथ की बंधी  राखी देखता है !,,,,  वह यह भी कहता है की आज से तुम बड़े हो गए हो , ,,, अब तुम्हें मामा की रक्षा नहीं चाहिए , क्यूंकि अब तुम खुद एक
  ' रक्षक ' बन चुके हो !

       कुछ बड़ा हुआ , तो चाँद फिर दिखा ,,, गणेश चतुर्थी के दिन ,,! बोला ,,, ' मैं तो सबका मामा हूँ ना ,,,तो शिवजी के बेटे के जन्म पर भी तो दिखूंगा ही ! 
,,,,, गणेश मेरे प्रिय देव थे ,  उनका चेहरा ही मेरे लिए कौतूहल के साथ साथ , एक दोस्त के  चेहरे जैसा लगता था ! और  उनका वाहन चूहा ,,,!,वह  तो मेरे घर में कई बार रोटी चुरा कर भागा था ! 
      वे लड्डू खाते थे , जो मुझे भी प्रिय था !  मुझे चाँद  की यह बात तब भी अच्छी लगी ,, और तब भी अच्छी लगी , जब वह अनंत चौदस के दिन खुद  आकर गणेश जी को वापिस ले गया !

    स्कूल गया तो , एक दिन जब बहुत बड़ा गोल सा चाँद , आसमान में हँसते हुए उभरा , तो माँ  ने कहा ,,,आज " गुरू पूर्णिमा " है !  आज फिर चाँद तुम्हे बताने आया है की जीवन में गुरू का महत्त्व कभी ना भूलना !  तुम्हे जीवन में बहुत सी  बातें  सिखाने वाले , बहुत से गुरू मिलेंगें ,  लेकिन गलत या सही जानने -  समझने  का बोध जिस  गुरू  ने तुम्हें दिया है ,,उसे सदा याद रखना ! जाओ अपनी पाठशाला के गुरूजी को प्रणाम करके आओ ! मैं ने  आसमान में  हँसते चाँद को निहारा ,,और उसे भी प्रणाम किया !  सोचा कि ,,, असली गुरू तो तुम्ही हो --" मामा " ,,!!

 थोड़ा  समय ही बीता , कि   एक दिन वह फिर  आसमान से झांका ,, ! इस बार पूरा चेहरा तो नहीं दिखाया ,, लेकिन झाँक कर बोला ,,' आज राम का विजय दिवस है !  तुम जो कुछ दिनों से ,  राम लीला  देख कर मुदित हो रहे थे , उसका निष्कर्ष दिवस है ,,जब रावण  का वध भी होगा , और उसकी बुराइयों का दहन भी !  आज तुम्हारे कसबे का मैदान सजा हुआ है ,, तुम भी जा कर आनंद लो ,, मैं वहां तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ !'!,,,  उसकी बात मान कर मैंने यह उत्सव भी मनाया !

  मैदान में जा कर लगा की , अब ठण्ड के दिन आ गए हैं ,, इसलिए पूरीबांह की कमीज पहनना शुरू कर दूँ ,  की तभी , एक दिन चाँद ,, थोड़ी सिहरन लिए , आसमान में आ  धमका !,,,,  बोला .--
,,,,,, ' आज शरद पूर्णिमा है बेटा ,,!  माँ से कहो की खीर बनाएं और , अपने आँगन में रख दें ! मैं तुम्हारे जीवन में अमृत भरने के लिए बूँदें टपकाऊँगा ,, जो तुम्हे ना सिर्फ निरोगी करेंगी  ,,बल्कि तुम्हारी वाणी में भी खीर खाने से अमृत का वास हो जाएगा  ! " !
       घर आया तो माँ पहले से ही जैसे तैयार बैठी थी ,,शायद उसे अपने भाई की करतूतों के बारे में बहुत पहले से ही पता था !

    ठण्ड पड़ते ही , मेरा जीवन क्रम थोड़ा बदल गया , जल्दी सोना ,,और देर से उठाना ,,इसलिए ,, चाँद से बातें तो नहीं हो पाईं ,,लेकिन वह खिड़की से झाँक कर मेरी टोह लेता ही रहा !  ठण्ड जब घटी , तो   जो मौसम आया , उसने गुदगुदाना शुरू किया !  यह फागुन था ,,!

  ,,,,,,,,अब तक मैं कुछ बड़ा भी हो चुका था ,,  एक दिन चाँद आसमान में आकर ठिठोली करने लगा ,,हुड़दंगी करते हुए बोला --" "  बिटवा !!,, आज होलिका दहन है ,,और  परसों,, रग से सराबोर होने वाली 'होली; ! ,,,  थोड़ा होशियार रहना ,,!,, तुम्हारी बहिन सुबह से तुम्हारा मुंह रंगने को तैयार बैठी है !  हालांकि   उस दिन  वह तुम्हें  टीका लगा के  तुम्हे  माँ के हाथ के  बने घर के  पकवान , गुजिया पपडिया  भी खिलाएगी ,,! ,,,, लेकिन फिर भी रंग में तुम उससे जीत ना पाओगे !   समझे ,,!!,,,, " 
,,,,,,, मैंने मुंह बिचका कर उसे चिढ़ाया ,,, और कहा --" मामा ,,तुम मुझे डराने के इरादे से  आये हो क्या ,,?? हा  ,हा ,,!! मैं भी कम होशियार नहीं ,,समझे ,,? " ,,,,,,,,,
,,,,,,, होली के हुड़ंग में तो बाद में कई दिन बीत गए , पता ही नहीं चला !  "  फिर तो स्कूल की परीक्षा  ,, और परीक्षा के डर   ने पता नहीं कब मेरा समय बितवा  दिया ! ,,,, चाँद की और ना मैंने देखा ,,,और ना उसे अपनी  ओर मुझे  देखने  दिया !   बस ,,!! ,, पास - फेल  शंशय में उतराते हुए ,, जब  परिक्षा में उत्तीर्ण होने की खबर मुझे  मिली तो,,, मैं खुश हो गया !  तभी इतनी गर्मी पड़ने लगी ,, की  रात में चारपाइयाँ निकाल कर सब लोग  छत पर सोने लगे !

     अब  चंदा मामा ,, पंद्रह दिन बाद फेरा लगाते ,,और छत पर पडी हमारी चादरों को ठंडा कर जाते !  जब वे आते ,,तो हमसे बातें होती रहतीं ,, लेकिन जब वे नहीं आते तो हम तारे  गिनकर अपनी गणित को मजबूत करने की कोशिश करते ! इन कामों में मेरी चुलबुली बहिन , मुझसे हमेशा ही आगे रहती ,, !
          चाँद से बातें करते करते ,,,, उसके बताये त्यौहार मनाते मनाते ,,,,, मैं  कब बड़ा हो गया ,, यह जान ही नहीं पाया !  लेकिन  अब ,, मुझे चाँद ' मामा ' नहीं ,,बल्कि एक ' चेहरा' जैसा  दिखने लगा था !  मुझमें यह बदलाव कैसे आया ,,, यह तो ठीक से नहीं बता सकता !,, लेकिन एक बात जरूर  जान गया की , यह बदलाव , फ़िल्मी गीत सुनने से , और फ़िल्में देखने से हुआ  है ! ,,,, मुझे  "   चौदहवीं  के  चाँद "  में , एक चेहरा दिखाने वाले वे शायर ही थे , जो बार बार मेरे इस नए  चाँद को एक सुन्दर , युवा , स्त्री के चेहरे से तौल रहे थे !
  " चौदहवीं का चाँद हो ,,' , ' चाँद सा मुखड़ा क्यों शरमाया ' , , चाँद सी महबूबा हो मेरी , '    जैसे गीत मुझे गुदगुदाने लगे !,,,,तो मैंने चाँद से नाता बदल लिया  !,,,  मैं भी चाँद में एक  चाँद से मुखड़े  को तलाशने लगा !  ,,,,,,,,,मोहल्ले के चेहरे तो मेरी बहिन जैसे ही दिखे ,,इसलिए ,,उनमें चाँद ढूंढने पर भी नहीं मिला ,,!  फिल्मों के परदे पर जो चाँद थे ,, वे मेरी पहुँच से उतने ही दूर थे ,,  जितना की वास्तविक चाँद !,,,और ,,, दूसरे  मुहल्लों में जा कर चाँद ढूंढने की जुर्रत मुझे इसलिए नहीं हुई ,,क्योंकि  वहां कई ,,राहु केतु ,सितारे ,,, पहले से ही उन चांदों  को  घेरे रहते थे !,,
         तो चाह कर भी चाँद  नहीं पा सका !   यही करते करते नौकरी लग गयी ,,और दिन रात उसमें खट्ने लगा !  एक दिन एक ज्योतिषी  को पूछा ,, तो उसने कुंडली देख कर बताया की तुम्हारा जन्म , कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ है !,,जब  चाँद बिलकुल ही प्रगट नहीं होता !  यही कारण है की ना तो तुम चाँद के प्रति कभी  आसक्त होंगे , और ना चाँद तुम्हारे प्रति  !

    दिन बीतते गए ,, और जब चाँद को मैं नहीं ढूंढ पाया , तो मेरे माता पिता ने , एक ' चाँद ' ढूंढ कर , उसे मेरी जीवन संगिनी बना दिया !  अब चाँद तो हमेशा साथ था ,,,लेकिन जल्दी ही  युवा वस्था का गीत  सच हो कर सामने आ गया ___ " चौदहवीं का चाँद हो ,,या " आफताब " हो ,,? " !  ,,,,,मेरी उम्र ढलते ढलते ,, चाँद भी अक्सर " आफताब " बन कर  दिखने लगा !

    लेकिन ' मेरा चाँद " जिसे मुझे मेरी माँ ने बचपन में दिखाया था ,, एक बार ,, जरूर फिर आया ! 
,,,,,,, जब पहली ' करवा चौथ " में  ,  मेरी पत्नी ने छलनी से झाँक कर , पहले उसे , और फिर मुझे देखा ,,तो वह पीछे से खिलखिलाया  !   बोला  --"  तुमने मुझ से सभी त्योहारों के बारे में जाना था ,,बेटा ! लेकिन इसके बारे में ,, मैं तभी बता सकता था , जब ज़मीन का चाँद तुम्हारी ज़िंदगी में उतर आये !  अब इस चाँद को सम्हाल कर रखना ,, यह तुम्हारे लिए खिलौना नहीं ,,बल्कि जीवन का अमृत है ! यह दिन भर भूखी प्यासी रह कर भी ,, तुम्हारे दीर्ध जीवन के लिए व्रत रहेगी !  तुम्हारा मुंह देख कर व्रत  तोड़ेगी ! यह मेरी तरह  दूर का चाँद नहीं ,,तुम्हारे घर का चाँद है !  और याद रखो ,,, जिस माँ के कारण तुम मुझसे परिचित हुए थे ,,जब वह भी तुम्हारे साथ दुनिया में नहीं रहेगी ,,तब यही ,, तुम्हें ,, और तुम्हारे बेटे के लिए एक माँ की भूमिका भी निभाएगी !     ,,,मैं तो एक  अजन्मा ,," मामा " हूँ ,,तुम्हारे लिए ही नहीं बल्कि  सबके लिए ,!,  जो भी बेटी ,,वहां ,,ज़मीन पर माँ का रूप धारण करती है ,,मैं ही उसके बेटे का पहला मामा होता हूँ !
  अब मुझे धरती की  एक नयी बहिन मिल गयी है ,,जो तुम्हारे साथ रहेगी  ! इसे दुखी मत करना ,,, वरना मैं  तुम्हारी कुंडली से हमेशा के लिए गायब हो जाऊंगा ! मेरे न रहने पर अमावस्या का घनघोर अन्धेरा ही तुम्हारे पीछे  शेष बचेगा ! और अन्धेरा तुम झेल नहीं पाओगे ! ",,,,

   मैंने सर झुका कर चाँद  को प्रणाम किया ! मैंने कहा --" तुम सदा मेरे साथ ही रहना ,,,चाहे मेरे मामा की तरह , चाहे मेरी गृहिणी की तरह ,,और चाहे मेरे बेटे के मामा की तरह ,,!  तुम्हारे बिना  तो मेरे  जीवन की गणना भी संभव नहीं ! वह शून्य है ! " 
,,,,,, !   तब से हर करवाचौथ पर  पहले मैं अपनी माँ को , फिर चाँद को ,  को प्रणाम करता हूँ ,और फिर अपनी पत्नी, को धन्यवाद देता हूँ   जिन्होंने मुझे हमेशा के लिए चाँद से फिर  जोड़ दिया  !

 ---  सभाजीत
     
     
   

रविवार, 21 अक्तूबर 2018

   सीख

    *****


 (  यह नीति कथा है , जो कभी लिखी नहीं गयी !  यह सिर्फ  अनुभव की गयी !  यद्यपि राम कथा  लिखने वाले   महर्षि बाल्मीक  और गोस्वामी तुलसीदास  की नज़रों में यह आयी होगी , किन्तु इसे  किन्ही कारणों से वे   टाल गए ! बाद में रावण वध के बाद से  अयोध्या में जन्मी कई घटनाओं से इस सीख की उपस्थिति सत्यापित हुई है  , तथापि यह आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है , जिसका अनुगमन , आज के राजनीतिज्ञ भी करते हैं ! और  खुद भी घटना क्रमों का कारण भी बनते हैं   )

       ********



 नाभि में , लगे घातक वाणों से  ,  चोटिल  हो कर , रावण पृथ्वी पर गिर पड़ा !   उठने  की कोशिश की तो उसे लगा ,  की  उसकी संचित ऊर्जा का अमृत कुंड जैसे अचानक सूख  रहा  है ! वह जान गया की , अब  उसका  उठना  मुश्किल है !  शक्ति धीरे धीरे क्षीण होने लगी , और  असह्य  दर्द के   साथ   उसकी आँखों के आगे   अन्धेरा  छाने लगा !  ,  उसके चारों और  , उसकी रक्षार्थ लड़ने वाले  लंका के सभी योद्धा , दौड़ कर उसके पास आये , और उसे उठाने की मदद  करने लगे ,, लेकिन उसने उन्हें  मना कर  दिया !
  उसने थोड़ा सर उठा कर  दूसरे पक्ष में खड़े विभीषण की और निहारा ,, और असह्य वेदना के साथ  भी  मुस्करा दिया!
   उधर राम के   समीप खड़े  विभीषण ने भी भांप  लिया की राम के  विषाक्त वाण अपने लक्ष्य पर काम कर गए हैं ,,और रावण अब मृत्यु के मुंह में जा रहा है ,! तभी अपने भाई की चिरपरिचित मुस्कान में उसे , अपने  बाल्य काल   के उस  भाई की स्नेह  दृष्टि दिखाई दी , जो कह रही थी , की अब तो आओ , मुझे सम्हालो , या मैं सिर्फ अनुचरों के हाथों में ही प्राण त्याग दूँ ,,? ,  आखिर तो ,,, इस राज पाट की लालसा में तुमने अपने मन की कर ही ली है ,,,अब अंतिम समय में मुझसे कैसा द्वेष ,,?? "

   उस दृष्टि से  आहत  हो कर , विभीषण के मुंह से भी दुःख भरी चींख निकल गयी , और वह दौड़ता हुआ  रावण के समीप जा कर  उसके  सर को  अपने हाथों पर ले लिया ! अब कोई द्वेष नहीं बचा था ,,, ना कोई मतांतर , ! अब सिर्फ वहां दो भाई थे ,  , जो एक ही कोख से जन्मे थे , लेकिन  जिनमें ,, सत्ता ,,, और नीति के कारण इतना विरोध हो गया था ,,,की वे एक दूसरे के जान के दुश्मन बन गए थे  , लेकिन अब जब विरोधी ही शेष नहीं बचने वाला था , तो विरोध क्या शेष बचने वाला था !

     ,,,  विभीषण की आँखों से अश्रुधार बह निकली !  बोला ---"  मुझे क्षमा करना भैया ! मुझसे भूल हुई !  मुझे लंका त्याग कर राम का साथ नहीं देना चाहिए था ,,, लेकिन आप मेरी और आदरणीय भाभीश्री , मंदोदरी की बात बिलकुल नहीं मान रहे थे , ,, मैंने कई नीति की बातें भी आपसे निवेदन की , किन्तु आप सभी निर्णय , अपने तक सुरक्षित रखते गए !  यहां तक की आप मेरी सीख को भी अपने लिए घातक मानने लगे , और मुझे लगा की अगर मैं ज्यादा दिन लंका में रहा तो आप मुझे या तो कारागार में डाल देंगें ,,या फिर मेरी ह्त्या करवा देंगे ! "
   रावण ने दर्द में कराहते हुए भी , मुस्कराने की कोशिश की  और बोला --" यह बात छोटे भाई ,, सोच सकते हैं ,,लेकिन बड़े कभी नहीं सोच सकते ! छोटे भाई को भय तो दिखाया जा सकता है , किन्तु बड़ा भाई कभी उसका अहित नहीं कर सकता ,,,क्यूंकि वह उसे पुत्रवत मानता है !  अच्छा हुआ तुमने लंका छोड़ दी ,,,लेकिन मंदोदरी भी तो मेरी आलोचक है ,,, उसने मुझे क्यों नहीं छोड़ा ,,? "
   विभीषण को कोई उत्तर नहीं सुझा ! वह और भी ज्यादा विलखता  हुआ अश्रु पात करने लगा !
     रावण कराहते हुए बोला -- ' अब दुखी मत हो ,,! मेरे बाद तुम्हें ही वंश और कुल को चलाना है ,, !  हाँ मंदोदरी मेरी सबसे प्रिय है ,,उसका ध्यान रखना ! "

     राम दूर से यह दृश्य देख रहे थे !  वे समझ गए की रावण अब कुछ क्षणों का ही मेहमान है !  उन्होंने कुछ सोचा और लक्ष्मण से बोले --" रावण अब इस पृथ्वीलोक से जा रहा है ! वह एक  राजा था ,, भले ही उसकी नीतियां सफल नहीं हुई ! तुम जाकर उससे पूछो की वह अंतिम समय में क्या महसूस कर रहा है ,,, किस कारण से इतना बलशाली होते हुए भी वह आज पराजित हुआ है ,, इसका भेद वह खुद खोले ,,!  तुम उससे राजनीति के ज्ञान के याचक बन कर  शिक्षा ले कर मुझे बताओ ,, , ! "
   लक्षमण अनमने मन से , राम की आज्ञा शिरोधार्य करके  रावण के पास गए ,, और वही प्रश्न पूछा ,,,जो राम ने कहा था ! रावण ने उन्हें अनसुना कर दिया ! तो वे वापिस लौट आये ! राम   समझ गए ,,और बोले ,,की----"
            ""--  लक्ष्मण ,,!!  वह भले ही धराशायी है , किन्तु एक पंडित है ,,और राजा भी ,   तुम उसके कर्मों पर मत जाओ ,,उसके ज्ञान और अनुभव को देखो ,,और उसके कदमों की तरफ खड़े हो कर फिर पूछो , वह जरूर जबाब देगा ! "
         लक्षमण दोबारा गए ,,और रावण के क़दमों की तरफ खड़े हो  खड़े कर   वही प्रश्न फिर दोहराया,,! इस बार रावण ने आँखें खोलीं ,, और बोला ---
      --- "  हे लक्ष्मण ,,!! राम तो मुझ से भी ज्यादा नीतिज्ञ हैं ,, लेकिन अगर पूछा ही है तो  मैं बताता हूँ की ,,  एक राजा को सभी की सलाह जरूर सुननी चाहिए !  भले ही वह छोटे से छोटा व्यक्ति हो या कोई बड़ा व्यक्ति हो !  राज्य कर्म सिर्फ अपने अनुभव , और अपनी नीतियों से नहीं चल सकते !    राजा सिर्फ अपने लिए राजा नहीं होता , वह सबके लिए होता है ! इसलिए किसी की भी अवहेलना करना ठीक नहीं ! "
             इतना कह कर रावण के मुंह पर संतोष के भाव आ गए , उसे  लगा की उसने अपने मन की बात कह दी है ! , और वह आँखें बंद करके गहन मूर्छा में चला गया !
   लक्षमण वापिस राम के पास गए और उन्हें रावण के उत्तर से अवगत करवा दिया ! राम चुपचाप मनन करते रहे और  फिर उन्होंने हनुमान को बुला कर कहा ,, " हे हनुमत ,,आप जाओ ,,और विभीषण के  शोक संताप को कम करवाने में सहायता करो !  रावण की मृत्यु हो चुकी है ,,उसके ,, अंतिम संस्कार की भी व्यवस्था करवा दो , ताकि ,, उसे राजोचित सम्मान मिल सके !

           रावण के अंतिम संस्कार के बाद , सीता की अग्नि परिक्षा हुई , और तब राम उन्हें ले कर वापिस अयोध्या आ गए , जहां उनका राजतिलक हुआ !  राम ने  राजा का दायित्व निभाया ,, और पूरी प्रजा उनके राज में सुख अनुभव करने लगी !

    लेकिन एक दिन अयोध्या में एक धोबी ने बखेड़ा खड़ा कर दिया !  उसने जो सवाल अपनी पत्नी को ले कर उठाये ,,उससे  राम विचिलित हो गए !  इस अवसर पर उन्हें क्या करना चाहिए ,,,यह प्रश्न बार बार उनके मन में कौंधता रहा ! उन्होंने मनन किया , और अंदर टटोला , तो  एक राजा के बतौर , रावण की दी सीख उन्हें बार बार याद आने लगी !
 ,,,,,,,, "  एक राजा को सभी की सलाह जरूर सुननी चाहिए !  भले ही वह छोटे से छोटा व्यक्ति हो या कोई बड़ा व्यक्ति हो !  राज्य कर्म सिर्फ अपने अनुभव , और अपनी नीतियों से नहीं चल सकते !    राजा सिर्फ अपने लिए राजा नहीं होता , वह सबके लिए होता है ! इसलिए किसी की भी अवहेलना करना ठीक नहीं ! "
          इस बात पर मनन करके ,,  उन्होंने अपने साथियों से सलाह ली , और अंतिम निष्कर्ष यह निकाला की , धोबी के कथन पर हुई , प्रजा की प्रतिक्रया की अवहेलना उन्हें नहीं करना चाहिए !  इसलिए उन्होंने  निर्णय लिया की वे अपनी प्रिय पत्नी को भी बनवास हेतु भेज देंगें ,,और तदानुसार उन्होंने लक्षमण को बुला कर आज्ञा भी दे दी !
          रावण की सीख ने  रघुकुल को भी वेदना दे दी !  सीता को वनवास क्या मिला ,  ,, अयोध्या ही , श्री रहित हो गयी !

                   ************

    आज भी राजनीति इन दो सिद्धांतों के बीच झूल रही है !  क्या राजा को स्वविवेक से , अपनी  नीति पर अडिग रह कर   निर्णय लेने चाहिए , या फिर प्रजा की भावना अनुसार ,  मंत्री परिषद् की राय से  निर्णय  लेना  चाहिए ! यह प्रश्न अनुत्तरित है !
 अपने विवेक और अपनी नीति और अपने निर्णय  पर रावण चला ,,,किन्तु उसका  परिणाम ठीक नहीं  हुआ   ,,,
,,, और लोगों की भावना को सर्वोपरि मान कर , मंत्री परिषद् की सलाह से राम चले , तो उनका अपना दाम्पत्य  जीवन बुरी तरह  प्रभावित हुआ !
   सर्वथा  दो विपरीत आचरण , और सिद्धांत की नीतियों  के बीच  ,  सफल नीति क्या है ,,,यह तो ज्ञानी  लोग ही बता पाएंगे , किन्तु यह सच है की दोनों एकल  नीतियां ,, " लोकतंत्र , और राजतंत्र , उस त्रेता युग में भी ,   असफल नीतियां ही सिद्ध हुईं  थीं !

   ---सभाजीत 

 " शोध " 


सफाई पर लेख लिखना था !
दोस्तों ने कहा , तुम गप्पें ज्यादा मारते हो , यथार्थ कम होता है ! इसलिए शोध पर्यक लेख लिखा करो ! तो सोचा ,,,कलम घसीटने से पहले थोड़ा शोध ही कर लूँ ,,!!
सुबह सुबह घर से निकल पड़ा !
इधर उधर देखता चल ही रहा था की एक लड़का मिल गया !
उम्र सिर्फ दस साल ,,,कपडे मैले ,,बाल उलझे ! इतने सुबह बेचारा यह लड़का , काम ढूंढने निकल पड़ा ,,,यह सोच कर मेरा ह्रदय द्रवित हो गया !
पता नहीं कब यह देश नौनिहालों के प्रति जाग्रत होगा !
यही विचारते विचारते मैं थोड़ा ठिठक गया !
वह बोला --" क्या ढूंढ रहे हो बाबूजी ,,?
कुछ नहीं ,,कोई सफाई वाला है तुम्हारी निगाह में ,,??
वह हंसा , बोला --" सफाई तो मैं ही कर दूंगा ,,,मौका दीजिये ,,! "
" क्या तुम भी सफाई करते हो ,," ?
" आजमा कर देख लीजिये ,,! अभी अभी ,,दस ट्रेनों में घूम कर वापिस लौटा हूँ ,,! "
" तो तुम ट्रेन में सफाई करते हो ,?'
" हाँ ,,! भीड़ में भी करता हूँ ,,,बाज़ार में भी करता हूँ , मंदिर में भी करता हूँ ,, जहां मौका लगे वहीं करदेता हूँ ,,! "
" भीड़ में ,,? मतलब ,,? "
" मैं जेब साफ़ करता हूँ ,,! " ---वह हंसा ,,!!
मैं घबरा गया ! उसे वहीं छोड़ कर , अपनी जेब टटोलता आगे चल दिया !
आगे खद्दर धारी मिल गए !
वे सुबह सुबह अपने दो कुत्तों को सैर करवाने निकले थे !
दोनों कुत्ते दो अलग अलग विपरीत दिशाओं में उनको खींच रहे थे , और वे संतुलन बनाते हुए , उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे !
कुत्ते शायद अलग अलग अपनी भोज्य सामग्री देख कर लपके थे ,,,जो शायद एक और कुछ मैला जैसी थी और दूसरी और एक सड़ी हड्डी !
मुझे देख कर वे खद्दर धारी नेताजी ,,,झेंपते हुए बोले ---" सुबह सुबह कहाँ चल दिए भाई ,,? "
मैंने उन्हें अपने अभिप्राय के बारे में बताया ,,,!
वे बोले हम विपक्ष में हैं ,,! तुम तो देख ही रहे हो ,, सफाई का हाल , मेरे दोनों कुत्ते गन्दगी देख कर मचल रहे हैं ,,सरकार का काम है सफाई करवाना ,,,अगर करवाती तो ये क्यों भागते ,,?
" सही कहा भाईसाहब ! लेकिन मैं तो सफाई का यथार्थ ढूंढने निकला हूँ ! ,,,मुझे लेख लिखना है ! "
अगर यथार्थ पर लिखना है तो मेरी विरोधी पार्टी पर लिखो ना ,, वह तो सफाई में अव्वल रही है ! "
" कैसे ,,? "
" अरे वे तो सफाई मास्टर हैं ! पार्टी का चन्दा वे साफ़ कर गए ! योज़सनाओं की राशि वे साफ़ कर गए , अनुदान राशि , रिलीफ फंड , बैंक लोन वे साफ़ कर गए ! सब्सिडी वे साफ़ कर गए ! खनिज वे साफ़ कर गए , पहाड़ , जंगल वे साफ़ कर गए ! यही तो असली सफाई हुई है ,,पिछले सत्तर वर्षों में !
" भाई साहब ,,! कुछ साल तो आपकी पार्टी ने भी राज किया है ,,,क्या आप पर यह सफाई लागू नहीं होगी ,,? "
" तो क्या वे हमें छोड़ देते हैं ,,? वे भी तो वही कहते हैं ,,,जो हम कहते हैं ! "
" इसका मतलब तो आप लोगों ने बारी बारी से सफाई की है ,,,! "
वे हंसने लगे ! बोले _ " आप लिख रहे हो और यथार्थ लिखना चाहते हो तो जो मैं बता रहा हूँ वही लिखो ,,, बाकी तो पढ़ने वाले समझेंगे ! "
तभी उनके दोनों कुत्ते , अपना भोज्य पदार्थ छोड़ कर सीधे मुझ पर ही भोंकने लगे ! मैं घबरा कर पीछे हट गया ! वे उन्हें पुचकार कर " लाड " भरे सम्बोधन से बुलाने लगे !
मैंने हाथ जोड़े और आगे बढ़ लिया !

आगे थोड़ा सुनसान पड़ा ,,, तो जल्दी जल्दी पैर उठाने लगा ,,,यह इलाका थोड़ा बदनाम था !
तभी ना जाने कहाँ से टी तहमद पहने , बड़ी बड़ी मूंछे रखाये , मुंह पर रुमाल बांधे एक आदमी सामने आ गया ! बोला--" बाबूजी जहां हो वहीं रुक जाओ ,,!"
मैं रुक गया तो वह बोला ---" जो भी पहने हो उतार दो फ़ौरन ,,आवाज़ मत करना समझे ,,! "
मेरी घिघ्घी बांध गयीं ! लेकिन मेरे पास तो कुछ था ही नहीं ! सोना चांदी पहनने का शौक था नहीं , घड़ी बांधता नहीं था , मोबाइल में टाइम देख कर काम चला लेता था , जो आज घर पर ही धोखे से छूट गया था ! हाँ बटुआ ,,जरूर जेब में था !
मैंने कहा --" मेरे पास कुछ नहीं है भाई ,,चाहो तो तलाशी ले लो ! "
उसने तलाशी ली ,,,बटुआ निकाला ! लेकिन उसमें एक भी नॉट नहीं था ,,,खाली पड़ा था !
बोला --" फालतू टीम खराब कराया ,,,बोनी भी नहीं हो रही है ! कैसे फटीचर हो ,,?? क्या करते हो "
"
मैंने कहा ,,," भैया ,,!! लिखने का फितूर है सफाई पर लिखने का मूड था ,,तो यथार्थ लिखने के लिए सुबह सुबह ही निकल पड़ा ,,!
" तो क्या दिखा सफाई पर तुम्हे अब तक ,,?'
" आप जैसे ही लोग ही दिखे ,,! और कुछ तो नहीं दिखा ! "
" ठीक कहते हो बाबू ,,! अब हमारे बारे में कुछ ना लिखना वरना हम भी " साफ़ " कर देते हैं ,,,आदमी को भी ,,समझे ,,? "
" कैसे ,,"-- मैंने नादानी में यथार्थ जानने के लिए पूछ लिया !
वह मुस्कराया ,,,उसने एक रामपुरी चाक़ू निकाल लिया ,,और मेरे मुंह के पास लहराते हुए कहा ,,," ऐसे "
मैंने डर के मारे घरघराती आवाज़ में कहा ,,," बिलकुल नहीं लिखूंगा भाई ! ,,, मैं तो फेसबुकिया लेखक हूँ ,, ये तो दोस्तों की बेवकूफी में आकर यथार्थ ढूंढने आ गया ,, मुझे कौन कोई पी एच डी,, लेनी है ! "
वह हंसा ---" पी एच डी ले कर भी क्या करते बाबू ,,? मैंने ली है ,,,तो कौन सी नौकरी मिल गयी ,,? आखिर करना तो यही काम पड़ रहा है ! "
मैंने हाथ जोड़े और वापिस लौट लिया !
घर आकर पत्नी को बताया तो वह हँसते हुए बोली __ " मुझे धन्यवाद दो ,,,! मैंने तुम्हारा बटुआ रात में ही साफ़ कर दिया था ,,एक भी पैसा नहीं छोड़ा था ,,,वरना आज कुछ ना कुछ नुक्सान तो तुम्हें होता ही ! "
मैं सफाई के यथार्थ को अब पूरी तरह जान चुका था !
--- सभाजीत

बुधवार, 29 अगस्त 2018

  कल सड़क पर एक चोर उचक्का मिला !

    चोर उचक्का इसलिए , क्यूंकि पहले २००७, फिर २०१२ में वह इन्ही आरोपों में जेल काट आया था !  अदालत ने खुद   अपनी धारदार कलम से उसे सज़ा सुनाई थी , और वह अपने कृत्य के लिए दोष सिद्ध किया जा चुका था !
 उससे हाल चाल पूछा तो उलटे वह मुझी से पूछने लगा _

   कहो साहब ,,? ,,, कुछ घर में " माल-वाल "   जोड़ा की नहीं ,,??
   " तुम्हें क्यों बताऊँ ,,? " - मैंने सशंकित हो कर इधर उधर देखते हुए कहा !
     वह हंसा   फिर बोला --" तुम्हारा " डाटा " है मेरे पास ,,!   तुम्हारी पेंशन , तुमने क्या खरीदा , तुम कहाँ गए , तुम्हारे घर में कौन से ताले लगे हैं ,,तुम रात में कितने बजे तक जागते हो , ,,,सब मेरी जानकारी में  रहता  है ,,समझे ,,?? "
   मुझे पसीना निकल आया ! मैंने डरते हुए पूछा --" तुम्हें कैसे मालुम है यह सब ,,?? मैं अगर चाहूँ तो मोहल्ले की एक खबर भी नहीं बताता कोई ,, और तुम इतना सब जान जाते हो ,,?'
    वह हंसा  फिर बोला ---" किस दुनिया में जी रहे हे दोस्त ,,? यह डिजिटल युग है ,,मेरे पास तो शहर के सभी छोटे से ले कर बड़े आदमी के सभी डाटा मौजूद हैं ,,  एक परसनल " डाटा बैंक " बना कर रखता हूँ ! "
 -- " चलो ठीक है ,,,   क्या  उठाईगिरी करना बंद कर दिया है आजकल ,,? " - मैंने पूछा !
     उसने एक सिगार निकाला और एक चीनी लाइटर से उसे जला कर मेरी और धुंआ छोड़ता हुआ बोला ---" किस ज़माने की बात कर रहे हो बाबूजी ,,?? ,,सबने प्रगति की ,,,तो मैं  क्यों   " प्रगतिशील "  ना बनता ,,?? "
   --" प्रगतिशील ? "
   -- " हाँ जो प्रगति की चाह में प्रयत्नशील रहे ,,वही तो हुआ --" प्रगति शील " ,,तो मैं भी हुआ प्रगति शील ,,! "
   - " चलो ठीक ,,,लेकिन तुमने इस बीच क्या प्रगति की भाई ,,? "
  - " तुम्हें तो मालुम ही था ,, मैं कोई अनपढ़ उठाईगीर तो था नहीं ,, " हिस्ट्री " में " एमए " था ,, तभी सोच लिया की यह उठाईगिरी अब सभ्य ढंग से करूँ ,, तो मैंने एक संस्था बनाई ,,," अखिल भारतीय उठाईगीर समूह " ,,जिसमें मेने  देश के सभी  उठाईगीरों ' को जोड़ा !  मैंने बड़े लोगों से कहा की इससे पहले , तुम्हारा पूरा माल उड़वा दूँ ,,,तुम खुद हमें एक मुश्त बड़ा चन्दा देना शुरू कर दो ,,फायदे में रहोगे ! "
  - " अरे ,,!!    तुम्हारी  संस्था रजिस्टर कैसे हो गयी ,,,? उठाईगिरी तो आपराधिक शब्द है ,,? "
     उसने सिगार का जोर दस कश लिया ,,और इस बार धुंए का एक गुबार मेरे मुंह पर उंडेल दिया ,,फिर थोड़ा तल्खी से बोला --"  " अपराध क्या है ,,,क्या तुम जानते हो ,,?? ---अपराध वह  होता है  जो अदालत मान ले , पुलिसिया भाषा में लिखा गया शब्द ,,,अपराध नहीं होता समझे  चश्मुद्दीन ,,? ,समझे ,  जब तक अदालत ना कह दे की अपराध हुआ है तब तक इस देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आज़ादी है और मानव अधिकार की सुरक्षा की छतरी उसके सर पर तनी मानो  ! ,,,
  ---" ठीक है ठीक है ,," ,,मैं घबरा गया की यह नाराज़ ना हो जाए ,,वरना मेरा घर साफ़ हुआ समझूँ !
     समझ गया की मैं घबरा गया हूँ  तो मुस्करा कर मेरी खिल्ली उड़ती हुए बोला --" डरो मत ,,,अब मैं छोटे मोटे शिकार नहीं करता ,, अब मैं वो पुराना  व्यक्ति नहीं हूँ ! "
        '--" धीरे धीरे मैंने एक एनजीओ  बना ली ! "-- वह आगे बोला --" जानकारी के अधिकार ' के तहत मैंने सरकार से   जानकारियां लीं ,,,और फिर उसी के विरुद्ध तीखे लेख लिखने लगा !  सरकार मुझसे डरने लगी  तो मैं " एक्टिविस्ट " कहलाने लगा !  आजकल कविता में छंद  सोरठां  तो लिखना नहीं पड़ता , तुकबंदी के भी जरुरत नहीं ,,,तो मैं  वर्ग वाद , गरीबी अमीरे को ले कर कवितायें रचना शुरू कर दिया ,,,और आज मैं एक चर्चित   कवि हूँ !  नकल करके मैंने हिस्ट्री में एमए किया था ,,, तो खुद को " इतिहासकार " सिद्ध कर दिया !   इस देश का कोई लिखित इतिहास तो है नहीं , तो मैंने अपनी दृष्टि से बहुत सी जगहों और घटनाओं का इतिहास लिख मारा ,,तो  मुझे ,, पी एच डी  मिल गयी ! "
    --- मैं अपलक उसे ताकता रह गया !
       ---- " मुझे माफ़ करना यार ,,! ,,मैंने तुम्हारे पुराने धंधे के बारे में पूछ लिया था ,,,मुझ से गलती हो गयी ! " -- मैं करीब करीब घिघयाते हुए बोला !
     --- अरे तुम अगर कहोगे भी तो क्या आज लोग तुम्हारी बात सुनेंगे ,,? ,,,अब में राजनीति में कूद गया हूँ ,,, मैं इस देश में अब समाजवाद लाना चाहता हूँ ,,,! और इसलिए  आजकल जगह जगह मेरे भाषण होते हैं ,,,भारी जनता जुड़ती है ,,,!  कई पार्टियां मेरे ऊपर डोरे डाल  रही है ,,, की मैं उन्हें ज्वाइन कर लूँ ,,,मगर मैं  उन्हें घास नहीं  डाल  रहा हूँ ! "  ,
  "  क्यों सर ,,! " --मैंने उसका सम्बोधन आदर में बदलते हुए पूछा !
     --" इसलिए की पहले वे मुझे टिकट कन्फर्म करें ,,, और मंत्री बनाने का वायदा करें ,,,तभी मैं उन्हें ज्वाइन करूंगा ! "
       --- वह,,,! वह,,,!! " ,,, अब मेरे पास तारीफ़ के शब्द भी नहीं बचे थे !
       --- अरे क्या वह,,,वह ,,?? ,,,अभी तो हमारी मंजिल बहुत दूर है ,,, !  अभी तो हमें बहुत कुछ करना है ,,! "
       --- " जब इतना हुआ तो आगे भी होगा ,,,गाते रहिये ,,," हम होंगे कामयाब ,,,हम होंगे कामयाब ,,एक दिन ,," --- मैंने हँसते हुए कहा !
            उन्होंने मुझे  घूर  कर देखा ,,,,तभी एक लम्बी कार ,, आकर उनके पास रुकी ,,ड्रायवर ने उतरकर उन्हें सेल्यूट किया !  मैंने आश्चर्य से पूछा --" आप आज पैदल कैसे चल रहे थे ,,,बिना कार के ,,? "
             वे हांसे फिर बोले --" कभी कभी फिर से साधारण आदमी की तरह जीने की तमन्ना होती है ,,,तो कार पीछे छोड़ कर पैदल चलने लगता हूँ , देखना चाहता हूँ ,,की जहां से कभी मैंने माल पार किया था ,,,उन लोगों ने भी कितनी तरक्की की है ,,! ,!   दो फायदे हैं ,,,लोग और आप जैसे पत्रकार , मुझे सरल व्यक्ति मान लेते हैं ,,,और मेरी तमन्ना एक आम आदमी बन कर घूमने की पूरी  हो जाती है ! "

   मैंने हाथ जोड़े ,!,,
     वे एकबार कार के अंदर से अपनी मुंडी उचका कर बोले --

     " इसे छाप ना देना ,,वरना तुम्हें जेल करवा दूंगा ,,,' मानहानि ' के आरोप में ,,समझे ,,,,,??? "

    इस बार फिर मेरे मुंह पर बहुत बड़ा धुंए का गुबार आया !,,,लेकिन यह कार का था ,,,सिगार का नहीं ,,!

   इसकी सरकार बन जाएगी तब क्या होगा ,,??

    यह सोचते सोचते मैं आगे बढ़ गया !

--- सभाजीत


गुरुवार, 23 अगस्त 2018








" मनीषा ,,,,,,," 


     बहुत दिनों तक ,   यूनियन लीडर होने  की विद्रोही छवि के कारण , मेरा विभाग , ,मुझे   तहसील स्तर की   जगहों पर पोस्ट करता रहा    ! कभी कभी तो शुद्ध डकैत क्षेत्रों में  सहायक यंत्री  के ,    उपसंभागीय पद पर मुझे  तहसील क्षेत्र के सघन वनो के अंदर ,  विद्युतीकरण का कार्य देखना पड़ा ! जब बच्चे बड़े होने लगे , तो स्थायित्व  की चिंता सताने लगी ! ईश्वर का  सहारा था तो   ईश्वर  ने साथ दिया , और स्वयमेव बिना किसी की शिफारिश के , कमिश्नरी स्तर  के एक  बड़े  शहर में पोस्टिंग  मिल गयी !

   एक शुभाकांक्षी , वरिष्ठ साथी ने कहा की अब , प्रशाशन से लड़ाई बंद करो , और यहां जम कर रहो , ताकि बच्चे स्थिर हो कर अपनी पढ़ाई पूरी  कर सकें ,,,,, तो बात मान ली !

   यह राजनीति ग्रसित शहर था , किन्तु ब्राम्हणो का वर्चस्व होने के कारण , मुझे स्वयमेव ही सुरक्षा की छतरी , ब्राम्हण होने के कारण मिल गयी , और धीरे धीरे मैं भी उस शहर में ' अंगद का पैर  " बन गया ! फ़ायदा यह हुआ की मेरे बच्चे स्थिर हो कर पढ़े , और उनकी पढ़ाई इस शहर में ही पूर्ण हुई !  इस शहर में रहते हुए कई अनुभूतियों का पिटारा मेरी यादों में है , जिसका ,,जिक्र  आगे  फिर कभी   करूंगा !
       कई वर्ष पूर्ण होने पर बदलाव ने दस्तक दी , और उसी के साथ , ब्राम्हण वर्चस्व का गणित बदल गया !  ,,,लेकिन बदलाव होते ही , जो लोग शहर के देवता की तरह पुजते  थे , वही अब दानव मान लिए गए ! शिकायतें यह हुईं  की " ब्राम्हणो " ने मिल कर इस क्षेत्र में बड़ी मनमानी की है   , और जो ब्राम्हण यहां पदस्थ हैं  , अगर उन्हें नहीं हटाया गया , तो  क्षेत्र गर्त में  डूब  जाएगा ! दुर्भाग्य से मैं भी ब्राम्हण , था और बहुत समय से  , वहां राज कर रहा  था तो मुझे पहली लिस्ट में ही चिन्हित कर लिया गया  ,,, और तुरंत मेरा स्थानांतरण , प्रदेश की उत्तरी सीमा से सीधी दक्षिणी छोर पर बने एक आदिवासी जिले ,  में कर दिया गया !!

  नौकरी में , जातिवाद , इतना ज्यादा प्रभाव करेगा , यह मैंने सोचा ना था ! लेकिन मन  ने कहा ,,,यार ,,!!  इतने दिनों तक ब्राम्हण होने का सुख उठाये हो , तो अब विभाग में ब्राम्हण होने का दुःख भी  झेलो ! ईश्वर वादी होने के कारण , मन ने यह भी कहा ,,,," जो होता है भले के लिए होता है ,,,यह जान लो " ,,तो चुपचाप छह चकों के ट्रक में , चार बच्चों के कारण ,पिछले ३५ वर्षों की जोड़ी गृहस्थी , ठूंस ठूंस कर ,  भर कर,   वहां आदिवासी  जिले में  चला गया जहां आने जाने का साधन सिर्फ सड़क मार्ग था !  उबड़ खाबड़ मार्ग पर  सामान तो टूटा ही , मन भी , एक शहर में बने साहित्यिक मित्रों   को छोड़ने के दुःख के कारण  दुखी हो  गया !

    माँ  नर्मदा के किनारे बसे  इस शांत शहर को देख कर  लगा की सच में जो होता है भले के लिए ही होता है !  विभागीय कालोनी में क्वार्टर अलॉट हो गया , और बच्चे भी पढ़ाई पूरी  कर लेने के बाद , अपने अपने लक्ष्य पूरा करने अन्य विभिन्न शहरों में बिखर गए !  सिर्फ सबसे छोटी बेटी  अपनी शेष पढ़ाई के लिए मेरे साथ थी ! ,, यह क्षेत्र पूरी  तरह आदिवासी क्षेत्र था , जिन्हे  विकसित करने के लिए , सरकार कई वर्षों से भागीरथी प्रयास  कर रही थी ! जिला छोटा था ,और मुझे अब शान्ति चाहिए थी ,,,,तो ,, मुझे ईश्वर कृपा से मेरा मनचाहा काम , जिले के  आफिस के अधिकारी के रूप में मिल गया ! आफिस का काम , और बिलिंग , तथा , कम्प्यूटर सेक्शन के प्रभारी के रूप में , मुझे नयी नयी योजना बनाने  का काम भी सौंप दिया गया !

  जल्दी ही वहां भी बदलाव हुआ  और हमारे एक उच्च अधिकारी ,' शिवांग '   साहब की पोस्टिंग हुई ! उनकी पोस्टिंग के साथ  ही  ,  सभी दफ्तरों में , बाबुओं में कानाफूसी होने लगी , और ' शिवांग " का अर्थ जानने की जिज्ञासा  की सब के मन ,में हिलोरें उठाने  लगीं !
      तब तक कुछ लोग जान चुके थे की मेरी साहित्य में रूचि है , तो वे मेरे पास आकर , फुसफुसा कर पूछने लगे ,,," सर ,,,ये  "शिवांग " किस  जाति  में आते हैं ,,,? , अभी तक तो हमने ऐसा कोई सरनेम नहीं सुना  है ,,क्या आप जानते हैं ,,ये कौन हैं ,,,कहाँ से हैं ,,?? "  !
     लेकिन यह सरनेम तो मैंने भी नहीं सुना  था और दुर्भाग्य से मैं उन्हें पहले से जानता भी नहीं था ! मुझे लगा , की बाबू लोग , आदतन , नए अधिकारी के बारे में जान कर , अपनी गोटी बैठाने के लिए मुझसे इंक्वायरी कर रहे हैं !  तो मैंने कहा --" यह नाम तो मैं भी नहीं जानता , और जानने से मुझे क्या फर्क पडेगा ,,?? जब आ जाएँ तभी जान लेना ! "
       उस आदिवासी बाहुल्य जिले में , मेरे आफिस में , जो कुछ  सीनियर बाबू थे , वे सवर्ण  भी थे ! वे लोग किंचित मुस्करा कर बोले ,,," सर हम जानते हैं ,,,यह सरनेम '   एस सी / एस  टी  में होता है ,,,और यह साहब , इस कोटे से ही जल्दी जल्दी प्रमोशन पा कर इस पोस्ट पर आये है !  यह एस सी हैं ,,,! "

    मैं समझ गया ,,,  एस सी मायने --" दलित " ,,!!
   ,,,  मुझे लगा की सरकारी हर विभाग में , अभी भी व्यक्ति अपनी तकनीकी , और अनुभव की  योग्यता से  ज्यादा ,  जात  पांत से ही जाना जा रहा है ! पिछले शहर में भी ब्राम्हण होने की योग्यता ने मुझे वहां टिक कर रहने का अवसर दिया था ,,,यहां भी बहुत से लोग ब्राम्हण होने के कारण  मुझे मान्यता दे रहे हैं , जबकि एक उच्च पद पर आने वाले अधिकारी की पहली जांच वे उसकी जाति   आधार पर ही करने को आतुर हैं !
 भले ही विभिन्न सरकारें , सामाजिक न्याय और सामान अधिकार के नाम पर , पानी की तरह पैसा बहा कर , सामाजिक समरसता की ककहरे बांच रही थी ,,,लेकिन विडम्बना ही थी की अभी धरातल पर यह समभाव नहीं उतारा था !
   जल्दी ही नए अधिकारी आ गए ! कुछ ही मीटिंगों में हमने और बाबू स्टाफ ने यह जान लिया की वे कार्य में चतुर , अनुभवी , और दृढ निश्चय के साथ फैसले लेने वाले व्यक्ति हैं ! उन्हें बाबुओं की बैसाखी पर चलने की आदत नहीं थी , और वे विभाग में भी एक  अच्छे  ,  विशिष्ट  , अधिकारी के रूप में अपनी साख रखते थे  ! उन्होंने अपनी अनुभवी पारखी निगाह से जल्द्दी ही आलसी , कामचोर , बहाने बाज , बाबुओं , और मेहनती , लगनशील बाबुओं को अलग अलग पहचान लिया , और छटनी करके , महत्वपूर्ण कार्य , लगनशील लोगों को , तथा , अनुपयोगी कार्य बहानेबाज बाबुओं को बाँट दिए !
     फलस्वरूप , कुछ लोग उनकी तारीफों के  पुल  बांधने लगे , और कुछ उनकी जाति  पर तरस खाकर ,उन्हें कोसने लगे !

 ,,,,दफ्तर का काम तो सुचारु रूप से चलने लगा , किन्तु घर अभी अव्यवस्थित ही था ! एक कामवाली की तलाश जारी थी ,,,लेकिन सही कामवाली नहीं मिल रही थी ! अचानक एक दिन , एक लड़की हमारे घर के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी ! वह  युवा थी , और बहुत सलीके से वेश भूषा बनाये  हुई थी ! पूछा ,,, तो बोली--"  मैं काम करना चाहती हूँ ,,, जो सही लगे वह दे दीजियेगा ,,,मुझे काम की जरुरत है,,"  !
     पत्नी ने पूछा ,,, " किस   जाति  से हो बाई ,,?? ",,,
    तो वह सकुचाते हुए बोली ,,,' अहीर  हैं ' ! नाम "    मनीषा  " है  "  ! ,
     ,,  पत्नी आश्वश्त हो गयी ,,,,,,अहीर  मायने ,गाय चराने वाला  ,,!
       तो अहीर  से तो काम लिया  सकता है  क्यूंकि पत्नी नहीं चाहती थी की वह किसी छोटी  दलित जाति  से काम करवाए ,,,! उसे लगता था की ,,,चौके में जा कर , बर्तन समेटने में भी अच्छी  जाति  की ही कामवाली प्रवेश करे ! इसीलिये वह बहुत दिनों से ऐसी ही कामवाली के इंतज़ार में थी !
----- लिहाजा उस लड़की को तुरंत काम पर लगा लिया गया ! वह बहुत सुघढ़ ढंग से काम करने लगी ,,,और बिना किसी शिकायत के समय पर घर आ जाती !
      धीरे धीरे ,, मेरी पत्नी का विश्वाश बढ़ता गया ,,और वह लड़की भी अपने मन से कई दायित्व आगे बढ़ कर सम्हालने लगी ! मेरी सबसे छोटी बेटी , मेरे साथ ही रहती थी ! उसने वहीं कम्प्यूटर कोर्स ज्वाइन कर लिया था और बीएससी की डिग्री की पढ़ाई करने लगी ! जल्दी ही मेरी बेटी का लगाव भी उस लड़की से हो गया , और वह उसके घर की बातों के बारे में पूछने लगी ! लड़की ने कहा की वह सिर्फ पांचवी तक ही पढ़ पाई थी , तभी उसके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया और उसकी  माँ  को छोड़ दिया ! मजबूरी की स्थिति में वह गावं छोड़ कर माँ  के साथ  इस शहर में चली आयी थी  ! माँ  अक्सर बीमार रहने लगी तो उसने काम ढूंढा  , और अब धीरे धीरे उसे काम मिल गया है इसलिए अब उसके  घर की  जीविका चलने लगी है !
  मेरी बेटी को उससे सहानुभूति हो गयी !  उसने  उसके लिए छठवीं  कक्षा की किताबें  खरीद , दीं   और  उसे  एक घंटा घर में ही पढ़ाने लगी ! !

    लड़की बहुत प्रसन्नता से समय देते हुए , मनोयोग से पढ़ने लगी ! इधर , मेरी पत्नी भी उससे खुश हो कर उससे किचिन में चाय बनवाने लगी , और धीरे धीरे , वह  किचिन में उसके साथ  रोटियां सेकने की मदद भी करने लगी !  छोटे मोटे  ,, नास्ते ,,,पकौड़ी   तलने का काम भी उसने अपने हाथ में ले लिया और सुबह आकर वह  सेंडविच , और पकौड़ी भी  सुघड़ता से बना लेती ! हमने धीरे धीरे उसे घर का मेंबर ही मान लिया और वह  हमारे घर में एक सदस्य के रूप में रम गयी !

   घर व्यवस्थित होने पर , घर में , साथी इंजीनियरों का , और अधीनस्थ बाबुओं का भी आनाजाना शुरू हो गया ! कभी कभी छोटे पद पर कार्य रत चौकीदार , और चपरासी पद के लोग भी आ जाते ,,तो वे चाय पीने के बाद   हमारे घर में ,काम करने वाली  लड़की से अलग से पानी मांगते  , और कप खुद धो कर  वापिस रख देते ! मेरे मना करने पर वे जीभ निकाल कर कहते , --" वर्षों से चाकरी और सेवा की है , आप ब्राम्हण हैं !   , हम आपके घर झूठा  कप छोड़ कर कैसे जा सकते हैं" ?,,,
 मेरी पत्नी मुझे टोक देती थी की ,,,"  जो रिवाज है , उसे चलने दो , ,,वे मन से करते हैं तो तुम्हे क्या पडी है जो तुम अपनी अलग मुर्गे की डेढ़  टांग लगाओ " ,!

  लेकिन  एक दिन,,,एक विचित्र बात हुई ! हमारे आफिस के बड़े बाबू ,,,,, जिनसे हमारी थोड़ी  मित्रता  हो गयी थी , अपने दो भाइयों के साथ , मुझसे मिलने मेरे घर आये ! बड़े बाबू एक कुलीन ब्राम्हण थे , और उनका बड़ा आदर  शहर के  समाज , और शहर में , पूज्य ब्राम्हणो के रूप में होता था ! वे नगर के  सर्व  ब्राम्हण समाज के अध्यक्ष भी थे ! वे मुझे आग्रह करके एक बार सर्व समाज ब्राम्हण की बैठक में भी  ले गए थे ,, जहां मेरा भी बहुत आदर किया गया ! एक तो मैं एक  बड़ा विद्युत् अधिकारी था , , और वह भी ब्राम्हण ,,,,, तो ब्राम्हण  समाज ने मुझे खासी इज्जत दी !
   बड़े बाबू अक्सर आ जाया करते थे और मेरी पत्नी उनके लिए चाय नास्ते का इंतजाम कर दिया करती थीं !       वे ,पहले भी  कई बार आ कर हमारे  घरमें चाय नास्ता कर गए थे !
 उस दिन जब वे अपने भाइयों के साथ आ कर बैठे , और विभिन्न बातों पर चर्चाएं होने लगी , तभी  मनीषा , मेरी पत्नी के निर्देश पर , एक प्लेट में पकौड़ी और तीन चाय ले कर बैठक में  आयी ! उसे देख कर , बड़े बाबू के भाइयों ने कौतुहल से पूछा --" यह  आपकी  बिटिया है क्या ,,?? "
  मेने बताया  _  "  नहीं यह कामवाली है , इसके हाथ की बनी  चाय पकौड़ियाँ तो आप पहले भी कई बार खा चुके हैं ,,बड़ी स्वादिष्ट बनाती है ! "
 बड़े बाबू के भाइयों ने उससे पूछा  --" कहाँ की हो बिटिया ,,?  इसी शहर की ?? "   तो मनीषा चुप हो गयी ! मैंने कहा --" यह निकट के किसी गावं की है ,, वक्त की मार के कारण ,   अपनी  माँ  के साथ यहाँ शहर में आ कर रह रही है ,,,बहुत अच्छा काम करती है ! "
 इस बार बड़े बाबू के तिलकधारी , और बड़ी सी पाण्डित्याइ  चोटी  रखे , एक  भाई ने पूछा --" बताया नहीं    बिटिया किस गावं की हो ,,?
 "  मनीषा ने अटक अटक कर बताया ---" परसवाड़ा  की " ,,!
" ----" परसवाड़ा की ,,?? " ,,,अरे वह तो हमारा ही गावं है ,,,तुम किसकी बेटी हो ,,?? "  इस बार बड़े बाबू ने    खुद भौंहे सिकोड़ते हुए  पूछा  !
  मनीषा के मुँह पर हवाइयां उड़ने लगी , वह नर्वस हो गयी !
बड़े बाबू के भाई ने  पूछा ,," अपने पिता  का नाम बताओ ,,"!
 मनीषा मेरी और ताकने लगी ! मुझे साफ़ दिखाई देने लगा की वह घबरा गयी है !
 मैंने कहा --"  डरती  क्यों हो ,,अपने पिता का नाम बता दो ना ,," !
 मनीषा ने धीमे स्वर में बताया ---" रामदीन " ,,!
   " रामदीन ,,,?? " वह तो अहिरवार था ,,  ,,,हमारे घर में हरवाहे का  काम देखता था ,,,क्या तुम उसकी बेटी हो ,," ?
   मैंने विवाद किया ,," नहीं ,,,यह तो अहीर है ,,, हो सकता है वह कोई और होगा "
   वे बोले -- " तुम्हारी माँ  का नाम रामकली ही है ना ,,?? "
  मनीषा चुपचाप नीचे देखने लगी !
  बड़े बाबू के भाई बोले ---" इसका पिता ने दूसरी औरत  रख ली थी  ! ये लोग अहीर नहीं अहिरवार हैं ,,, ,,,,,,बाद में इसकी  माँ  घर छोड़ कर चली आयी थी ,,और रामदीन सट्टेबाज़ी में जेल चला गया था ! - मैं इसे   अच्छी तरह से जानता हूँ ! "
   मुझे भी थोड़ा धक्का सा लगा !
 मैंने मनीषा से कहा ,," तुम इन्हे अपने बारे में  सही सही क्यों नहीं बताती कि ,,तुम कौन  हो "
  मनीषा बोलने में खुद को  अशक्त महसूस करने लगी !
   वह  जैसे  असहाय मृगी की तरह खुद को  चतुर शिकारियों से घिरा पा रही हो  , और उसके बोलने की शक्ति ही  जैसे समाप्त हो गयी हो , उसकी हालत ऐसे ही हो गयी ! !
   वह चुपचाप  उन लोगों को ताकती खड़ी रही !
  बड़े बाबू के भाई बोले --" इसकी माँ  अहिरन  थी  , उसने दूसरे गावं से भाग कर रामदीन के साथ शादी की थी ,,,,, लेकिन जल्दी ही दोनों में लड़ाई  हुई  , और राम कली को  उसने छोड़ दिया ! हम लोग इसकी कहानी जानते हैं ! "
   मैं चुप रह गया !
      पकौड़ियाँ और चाय ठंडी हो चुकी थीं ! बड़े बाबू उठ खड़े हुए ,,साथ में उनके तिलकधारी दोनों भाई भी !
     मैंने कहा --" अरे रुकिए चाय तो पी कर जाइये ,,"
  वे बोले---" माफ़ करें शर्माजी , अब हम कुछ नहीं खाएंगे  ! आप  निम्न जाति  के  लोगों  के हाथों की चाय    हमें पिलवाते हैं ,,और उनके ही हाथ का बना नास्ता भी खिलवा  रहे हैं   !  आप ब्राम्हण हो कर , किचन में इन छोटी जाति  के हाथ का बनाया खाना खा रहे हैं ! यह गलत बात है ! "
  वे उठ कर खड़े हो गए , और हाथ जोड़ते हुए बाहर निकल गए !
  पत्नी भी क्रोध करती हुई बाहर निकल आयी !
   वह  बोली --" मनीषा ,,! तुमने तो खुद को अहीर बताया था ,,फिरयह अहिरवार कैसे हो गयीं ,,"
   मनीषा बुझे मन से बोली ,," आंटी ,,! मेरी माँ  तो अहीर ही है ना ,,?? तो मैंने क्या गलत कहा ,,?? मानती हूँ की मेरे पिता ," अहिरवार " हैं , छोटी जाति  के ,  पर  मेरे पिता ने   तो हमें  कब से   छोड़  दिया है  ! "
   ---" वह तो  ठीक है ,,! लेकिन  जाति  तो पिता की ही मानी जाएगी ना ,,??,,, तुम्हारे जाति  छिपा लेने के कारण ,   आज हमें   उन    लोगों से बातें  सुनने  को मिल गयीं   जो हमें ,,, समाज में बहुत मान  देते हैं !  ! "
 
      मैंने बीच में पड़ते हुए कहा --" कोई बात नहीं मनीषा ,,! हमें फर्क नहीं पड़ता ,,,बहुत होगा तो बड़े बाबू हमारे घर नहीं आएंगे ,,,अब अगर नहीं आते हैं तो ना आएं ,,! "

        लेकिन  मनीषा जब वापिस ट्रे ले कर किचिन की और जाने लगी तो मेरी पत्नी  थोड़े सकुचाते हुई बोली   _ " ---" अब आज रहने दो मनीषा,,! मैं देख लुंगी ,,,तुम घर जाओ ,,,कल आना तब बात करेंगे ,,! "

        मनीषा की आँखें भर आईं ,,, बोली --" मेरी गलती माफ़ करें आंटी ,, मैंने कोई झूठ नहीं बोला , ,,मेरी  माँ  अहीर है ,,तो  मैंने खुद को अहीर कह कर काम शुरू कर दिया !   अब मुझे काम से ना हटाइएगा ,,, यह घर अब मुझे अच्छा लगने लगा है,,, दीदी ,,मुझे पढ़ाती भी हैं ,,और मैं काफी पढ़ चुकी हूँ ! "

       तभी मेरी बेटी भी  कालिज से वापिस आ गयी ! उसने पूछा - क्यों रो रही है मनीषा ? "
     ,,,,   अब   हम क्या बताते ,,!
 
      मनीषा ही बोली ,, " मेरे  कारण आज अंकल को कुछ  बातें सुननी पडी !  सब गलती मेरी है ! "

              मेरी बेटी को जब पूरा प्रकरण पता चला तो वह उलटे हम पर ही बिफर गयी !
            बोली --- " जब मेरी सहेलियां आतीं हैं , तो आप   पूछती  हो वह कौन है ,,? , किस  जाति की है ,,?? ,,आप किस युग में रह रहीं है ,शायद जानती नहीं !,, अब कोई जाति  पाँति  नहीं होती ",,! ,,
  ,,,,उसने मनीषा से मुखातिब हो कर कहा ,," मनीषा ,,!!  तुम कहीं नहीं जाओगी यहीं काम करोगी ,,"


          लेकिन मनीषा ने जैसे कुछ  सुना  ही नहीं !  शायद उसे हृदय में कोई गहरी ठेस लगी थी !  वह  चुपचाप , अपनी आँखें पोंछती हुई बाहर चली गयी !

  दूसरे दिन दफ्तर में जब अपने चैंबर में बैठा ,,,तो मुझे लगा कुछ मौहोल अलग सा है ! बड़े बाबू ने बात चारों और फैला दी थी !
  एक नजदीकी मातहत ने पूछा --" अगर आपको खाना  बनाने वाली कोई बाई चाहिए तो बताइयेगा ,,हमारे यहां एक बूढ़ी ब्राम्हणी है ,,, जो कई घर में  खाना बनाती है  ,, थोड़ा चार्ज  जरूर  ज्यादा है ,,लेकिन मेरे कहने से  कम ले लेगी ! " !
 मैंने उसे धन्यवाद कहा और कहा की,,,फिलहाल मुझे कोई जरुरत नहीं !
  उस शाम घर लौटा तो , पत्नी बोली   कि ,,,,मोहल्ले की कई औरतें पूछ रही थीं ,,मनीषा के बारे में ,,!  वे कह रहीं थी कामवाम तो करवा लीजिये , लेकिन किचन का काम ये लोग करें यह ठीक नहीं ! आप को अगर जरुरत है तो किचन के लिए कोई औरबड़ी  जाति  की औरत रख लीजिये !  लोग अच्छा नहीं मानते ,,,छोटी जाति  के हाथों का ,बना   खाना ,,,,,, खाना ! "
मैंने पूछा --"  मनीषा  आयी थी फिर ,,?? "
 पत्नी ने बताया --" नहीं ,,,! वह भी नहीं आयी ,,! कल मैंने चौके में जाने से रोक दिया था तो शायद वह भी बुरा मान गयी !"
--" चलो ,,! अपने काम अब तुम खुद करो ,,इसी में सार है ,,! " ,,मैंने लम्बी सांस छोड़ी !

समय चक्र आगे बढ़ चला ! जल्दी ही बर्तन आदि के लिए नयी कामवाली  आगयी ,,और चौका पूरी तरह पत्नी के द्वारा संचालित होने लगा !  जिस तरह मनीषा के आने की बात फ़ैली थी , उसी तरह उसके काम छोड़ने की बात फ़ैल गयी और वातावरण जैसे पूर्वतः  शांत हो गया !

    कुछ दिन बाद ही बड़े   बाबू  के घर में , उनके पुत्र के जन्म दिन की पार्टी का आयोजन हुआ !  बड़े बाबू को लोगों ने कहा की इस समारोह में,,,बड़े साहब " शिवांग " सर को भी बुलाया जाए ! बड़े बाबू  भी शायद मन से ऐसा ही चाहते थे तो मुझ से बोले --" सर ,,! आप चलिए ,,आपके साथ जा कर में शिवांग साहब को पार्टी में आने का आमंत्रण देना चाहता हूँ !  आप रहेंगे तो वे आ जाएंगे ! " "
  मैंने बात मान ली और हम लोग दो चार स्टाफ के साथ , बड़े बाबू , शिवांग साहब के घर पहुंचे !  वे अंदर थे !
   , तभी , हमारे ही आफिस का एक चपरासी , जो निम्न   जाति  का था , कुछ नास्ता और पानी के गिलास टेबिल पर रख गया !  बड़े बाबू चुपचाप बड़े साहब के बाहर आने की बाट  ,जोहने लगे  !
 बड़े साहब ने बाहर आ कर   देखा और बोले ,---," अरे ,,!  नास्ता तो ज्यूँ का  त्यूं रखा है ,,,पहले नास्ता लीजिये ,,,! "
 मैंने बड़े बाबू की और देखा ,,,लेकिन उसके पहले ही वह हाथ बढ़ा कर , बड़े  साहब के घर की किचन की  बनी पकौड़ी हाथ में ले कर , मुंह में रख चुके थे ! साथ आये  सभी  लोग  सर झुका कर नास्ता करने में लग गए ! सबने नास्ता ले कर ,,इत्मीनान से पानी पीया !  तभी बड़े साहब ने मुझ से पूछा--" आज कैसे इतने लोगों को ले कर आना हुआ शर्माजी ,,? "
 बड़े बाबू ने हाथ जोड़ते हुए कहा --" सर आज हमारे घर में मेरे पुत्र की जन्म दिन पार्टी है ,,आप सपरिवार आएं ,,यही निवेदन ले कर हम आये हैं ! "
  बड़े साहब ने थोड़ी उपेक्षा के साथ उन्हें देखा और फिर मुझे देखते हुए बोले --" आज तो बाहर का टूर है ,, मुश्किल है ,,शायद लौट ना पाऊं ,,"
 बड़े बाबू  आग्रह के साथ जोर डालते हुए बोले ,," नहीं सर !,,आप को तो आना ही पडेगा ,,आपके बिना पार्टी सूनी हो जाएगी ,,! ,,,अगर आप देर से आएंगे तो भी हम इंतज़ार कर लेंगे ,, लेकिन आप आएं जरूर ,,! "
   " देखता हूँ। .. पूरी  कोशिश करूंगा ,,,! "---- कह कर बड़े साहब उठ खड़े हुए !
   हम लोग बाहर निकल आये !  मैंने बड़े बाबू की और थोड़ी रुक्षता के साथ निहारा ,,,वे शायद समझ गए ,,लेकिन बोले कुछ नहीं !
 शाम पार्टी हुई तो दफ्तरों के सारा स्टाफ बड़े बाबू के घर इकट्ठा हुआ !  बड़े बाबू के सभी रिश्तेदारों के साथ , उनके दोनों भाई भी कार्यक्रम में डोलते नज़र आये !
 देर रात तक बड़े साहब भी आ गए !  बड़े बाबू ने अपने हाथों से प्लेट सजा कर उन्हें दी , और जैसे हर कौर को ताकते हुए धन्य होते रहे !  उनके पंडित भाई दौड़ कर पानी के गिलास ले आये , और आगे बढ़ कर उन्हें पानी प्रस्तुत किया ! पानी पी कर वापिस गिलास करते हुए , बड़े साहब के हाथों से वह गिलास भी बड़े बाबू के भाइयों ने बिना किसी हिचक के थामा !
   मुझे बड़ी वितृष्णा हुई !  मैंने एकांत होते ही बड़े बाबू  और उनके भाइयों से पूछा --" आप को मालूम  है  वे कौन हैं ,,"
   वे हंसने लगे ! बोले---"  जानते हैं  भैया के सबसे बड़े साहब हैं ,", !
  मैंने पूछा ,,और उनकी   जाति  मालूम  है ? "
   वे खिसयाते हुए बोले। ---" जानते हैं ,,,वे एस  सी  हैं ,,निम्न जाति वाले ! "
  --" फिर आपने आज उनके घर ना सिर्फ पकौड़ी खा ली , बल्कि उनके घर, उस चपरासी के हाथ का लाया पानी भी   पिया , जिसे आप वर्षों से जानते हैं की वह निम्न जाति  का है  ! ,,,,,, क्या तब आपका  'जातिबोध  '  नहीं  जागा  ,,??   जिस चपरासी के आपके घर आने पर , चाय पीने पर,  आप उसे अपने घर के  कप भी धुलवा लेते हो , उसी जाति  के अफसर के हाथ का झूठा गिलास आपने खुद आगे बढ़ कर थाम लिया ,,?? आपने तब जरुरत नहीं समझी की  वह  निम्न जाति का होने के कारण ,  गिलास धो कर वापिस करे ,,??

बड़े बाबू दबी आवाज़ में बोले --" आपत्तिकाल ,,मर्यादानास्ति " ,!
  उनके भाई भी कुटिलता से हो हो करके हंस दिए !
 
    कौन सी " आपत्ति " ,,,??   कैसी मर्यादा ,,?? ,,,,मेरे मुंह का स्वाद कसैला हो गया ! मैंने नास्ता नहीं किया !     ,,,चुपचाप वहां से बिना बताये  लौट आया !

   बहुत दिनों तक मैं ,,,मनीषा को ढूंढता रहा ,,,लेकिन वह नहीं दिखी !

   लेकिन एक दिन वह नर्मदा  घाट  पर दिख गयी ! मुझे देखते ही  उसके मुँह पर आत्मीय मुस्कान बिखर गयी ! दोनों हाथ जोड़ कर उसने नमस्ते की ,,तो मैंने पूछ लिया--

   --" कहाँ चली गयीं थी मनीषा ,,??   उस दिन गयीं तो लौट कर वापिस ही नहीं आईं ,,??
     वह गंभीर हो कर बोली --"  जब आंटी ने किचन में जाने को मना किया तो मैं उनकी मजबूरी समझ गयी  ,,,!   आप अच्छे हैं यह बात सही है , लेकिन आपके अच्छे होने से क्या होगा ,,?? दूसरे लोग आपको बुरा भला कहते , व्यवहार तोड़ देते ,,तो मुझे अच्छा नहीं लगता ! इसलिए मैं खुद जान बूझ  कर  वापिस नहीं गयी "

   मैं खामोश रह गया ! फिर रुक कर पूछा --" अभी भी कहीं काम करती हो या नहीं ,,? "
   -  " क्यों नहीं ,,," ,,वह चहक कर बोली ,," अब मैं एक क्रिश्चियन साहब के घर में काम करती हूँ ,, इरिगेशन में इंजीनियर साहब हैं ! ,,वहां कोई  दिक़्क़त  नहीं ,,पूरा किचन मैं ही सम्हालती हूँ ,,मेडम  बीमार रहती  हैं ,, वे खुश रहती हैं ! "
    मैं स्तब्ध सा देखता रह गया !  फिर पूछा --" ,,,,, कहीं वे लोग क्रिश्चियन बनने को  तो  नहीं कहते ,,? "
  मनीषा  खिलखिला कर  बोली --" मैं क्यों बनूं  क्रिश्चियन ?? ,,,मैं तो अहीर हूँ ,,, अपनी  माँ  की बेटी ,,वही रहूंगी  "  !
         वह नमस्ते कह कर चली गयी
     ,,और मैं नर्मदा की शांत बहती धारा को ताकते रह गया !  मन में उठ रही अशांत तरंगों को शांत करने की कोशिश  करते हुए मुझे लगा कि मैं नर्मदा से पूछूं --
       " किस जात की हो  मां ,,तुम ,,?? "



----सभाजीत 

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

   हिन्दू ,,,
हम सबके एक सर्वमान्य देव ,,," शिव " 

वोट के लिये निरंतर बंटते  हिन्दू समाज को एक अहम् जरुरत है , ऐसे बंधन की , जो उन्हें एक एक सूत्र में पिरो सके !  अलग अलग समुदायों के अलग अलग भगवानो ने , उन्हें पहले ही , एक दूसरे से अलग थलग कर रखा है ! हर समाज अपने अपने भगवान् की जयन्ती , चल समारोह आयोजित कर अपने ढंग से मनाता है , किन्तु वे समारोह सर्वथा , एक विलग भावना को ही जन्म देते हैं ! 
  वर्षों पूर्व , अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए , सबसे पहले , लोकमान्य  तिलक  ने ,  एक ऐसे धार्मिक बंधन की महाराष्ट्र में कल्पना की , जो सर्वमान्य हो , और आस्था से सभी महाराष्ट्र वासियों को एक सूत्र में पिरो सकें ,,! इसी भावना के तहत , गणेश उत्सव में ,  सम्पूर्ण महाराष्ट्र में , घर घर एक गणेश की मूर्ति स्थापित करने का आह्वान किया गया  , और पूरा महाराष्ट्र एक सूत्र में " गणेश मय  " हो गया ! समाज एक ईश्वर की छवि को ले कर चेतन हो गया , ! इस उत्सव को ले कर हर घर एक दूसरे से जुड़ गया , ,,,,एक आस्था , एक रूप , एक चेतना !
    आज फिर लोकमान्य तिलक की तरह , अथवा , आदि शंकराचार्य की तरह , एक आह्वान की सख्त जरुरत है , कि ,,, साकार , अथवा निराकार,  दोनों स्वरूपों में  विद्व्मान  , एक ईश्वरीय छवि को हिन्दू समाज अपने मन में धारण करे !, वह छवि  समानरुप से हर घर पूजी जाए , जिस की पूजा अर्चना में , कर्मकांड , और सनातनी  गूढ़ पद्धतियों का समावेश ना हो !और जिसकी पूजा हर व्यक्ति के लिए सहज हो ! 
   सुखद यह है की ऐसे ईश्वर की छवि हिन्दू समाज में पूर्व से ही सर्वत्र व्याप्त है ,,और वह है ,,," शिव " ,,! 
      आदि  देवों  में विष्णु के मंदिर बहुत कम  मिलेंगे , , ब्रम्हा की पूजा पूरी  तरह वर्जित है , जबकि शिव सर्वत्र व्याप्त हैं !  वे प्रकृति के देव हैं , प्राकृतिक स्थान ,," पर्वत " उनके निवास का चिन्ह है ,  वे भोग विलास से दूर , आडमबर से मुक्त हैं ! सर पर , मनुष्य का जीवन आधार  ,," जल " ,, अपने साथ लिए ,  गंगा उनकी जटाओं में विराजमान है !  अपनी कलाओं से मन मोहता , समय की  गणनाओं का प्राकृतिक माध्यम , चंद्र भी उनके माथे पर सोहता है ,,! ललाट पर , भविष्य को देखने में सक्षम , और हर पाप को भस्म करने वाला एक , तीसरा न्रेत्र  भी उपस्थित है, जो आवश्यकता अनुसार खुलता भी है ! कानो में , वे जीव जंतु , जो प्रकृति को संतुलित करने के माध्यम हैं , और जिनमे , किसी भी रोग को नष्ट करने का विष , एक दवा के रूप में विदवमान है ,,,," बिच्छु "  के आभूषण के रूप में , कुण्डल की तरह विदवमान हैं!  !  गले में वह "  हलाहल  " , स्थिर हो कर अवरुद्ध है , जो क्षण मात्र में सारी श्रष्टि को समाप्त कर सकता है ,   और जो मृत्यु का कारक है !,,, किन्तु मानो वह उनके कंठ के कारागार में सदा के लिए कैद है !  कंठ में प्रकृति के विषधारी , वे विषधर भी , हार बन कर पड़े हैं ,  जिनके विष का तोड़ मनुष्य अभी तक नहीं पैदा कर पाया है !  गले में ही , मुंडों  की वह माला है , जो सदा याद दिलाती है की जीवन नश्वर है , और अंत में वही  व्यक्ति की आधारभूत पहचान है ,  !  शरीर पर वह भस्म है , जो  पाँच तत्वों का , मृत्यु के बाद एकसार बन कर  श्मशान में धरती पर शेष रह जाती है ,  बाजुओं में प्रकृति प्रदत्त , वे फल हैं , जो बाजूबंद के रूप में , एक मुखी रुद्राक्षों के रूप में , बंधे हुए हैं ,  वे किसी को रिझाने , आकर्षित करने के लिए , कोई रंगीन तड़क भड़क वाले वस्त्र नहीं पहनते , बल्कि , मरे हुए बाघ की खाल को वस्त्र की तरह धारण करते हैं , जो दर्शाती है , की प्रकृति के पशु भी , अपनी स्वाभाविक मृत्यु के पश्चात , अपनी खाल के रूप में किसी मनुष्य के काम आ सकते हैं ! पैरों में वे ' खड़ाऊं ' पहनते हैं , जो सूखे हुए बृक्ष की , उस लकड़ी के बने हुए हैं , जो अपनी उम्र जी कर समाप्त हो चुका है !

       शिव गृहस्थ हैं , एक पत्नी धारी हैं , और उनके दो  पुत्रों  का  परिवार है !  पुत्रों में जिस ' गणेश ' को प्रथम पूज्य माना गया है , उनका स्वरूप भी प्राकृतिक है ! उनका मुख , सबसे बुद्धिमान , जीव , हाथी का है , और शेष शरीर , इस दुनिया में उपस्थित मानव का ! शिव का वाहन भी प्राकृतिक है ,," बैल " का ,,,जो शक्ति का प्रतीक है ,,और जिसे बाद में मनुष्य ने भी अपने जीवन के आधार कृषिकार्य में भी उपयोग किया है ! 

   शिव के पास जो वाद्य यंत्र है ,," डमरू " ,,,,,वह ,' नाद ' , और ' लय ' , दोनों को एक साथ  उत्पन्न करती है !  वह नृत्य की उमंग देती है , और स्वर का आनंद भी ! उनके पास जो अस्त्र है  वह " त्रिशूल " है , जो  शस्त्र  की तरह भी उपयोग में आता है , और " अस्त्र " की तरह भी ! वह रक्षात्मक भी है , और आक्रामक भी !

   शिव का स्वरूप निराकार भी है , !  प्रकृति के हर स्थान पर उपलब्ध , पत्थर के एक गोल  टुकड़े को , आप शिव स्वरूप में , आसानी से पूज सकते हैं !  पूजा में ना तो कोई कर्मकांड है , ना पद्धति , !  सर्वत्र उपलब्ध " जल " को आप उन पर उड़ेल दीजिये ,  प्राकृतिक बेल पत्र को उन पर रख दीजिये !  हो गयी पूजा ! 

   शिव का यह स्वरूप , आदिकाल से ले कर अब तक ,  हिन्दू धर्म के जनक , आर्यों और अनार्यों को एक  मतेन  स्वीकार था !  , अनार्यों  ने उन्हें उसी सम्मान के साथ पूजा , जिस सम्मान के साथ  आर्यों  ने !  शिव ने किसी भी वर्ग , जाती में कोई भेद नहीं किया ! उन्होंने प्रसन्न हो कर , सरल और सहज रूप में हर व्यक्ति की  आकांक्षा  पूर्ण की !  यहां तक की उसे भी वरदान दे दिया , जो उन्हें ही भस्म करने उनके पीछे दौड़ गया !

  तो जरुरत है , की आदिदेव " शिव " को सम्पूर्ण हिन्दू समाज आज  प्रमुख रूप से अपना पूजनीय इष्ट माने ! शिव के पास , ना भव्य मकान है , ना  भव्य गृहस्थी , ना दिखावा , ना गरीबी अमीरी का कोई भेद ! उनकी पत्नी , एक राजा की पुत्री है ,," पार्वती " ,,,,!,,,लेकिन वह शिव के साथ उसी हिमालय पर , उन्ही की जीवन पद्धति में रहती है , जिसमे शिव रहते हैं ! वे शाकाहारी हैं , प्राकृतिक फलों पर जीवन यापन करते हैं ! वे दो स्वरूपों में रह कर भी एकाकार हैं ,,," अर्धनारीश्वर " के रूप में !  वे नृत्य और संगीत पारंगत हैं , और समस्त जीवों के प्रति सहज दयालु हैं !

  हिन्दू एक जीवन पद्धति है ! आज का हिन्दू " आर्यों " और अनार्यों " की सम्मलित संतान  है !भले ही सामाजिक कारणों से हम आज कई वर्गों में  बँट  गए हों , या राजनैतिक धूर्तता  के षडयंत्र से अलग थलग किये जाने के कुचक्र में फंस गए हों , किन्तु यह सच यह है , हमारा  ईश्वर का सर्वमान्य रूप एक ही है ,,और वह है ,," शिव " !  जरुरत है कि  शिव के इस स्वरूप को हम घर घर में प्रतिस्थापित करें ,   जो मात्र एक पत्थर के गोल टुकड़े के स्वरूप में सहज ही उपलब्ध हैं , और जिन की पूजा अर्चना में किसी तरह की पद्धति , वस्तु  , या धन की जरुरत नहीं है ! शिव हमारे आदिदेव हैं ,,,जो चाहे दलित वर्ग हो या  धनाड्य , सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले सहज देव हैं ! 


,,,,,सभाजीत 

रविवार, 13 मई 2018





  फटे चिथे  कपड़ों में  लिपटी ,
 किसी गावं की ,
 एक गरीब लड़की की पेंटिंग ,
 रखी  गयी एक कला दीर्धा में,

लोग निहारते रह गए ,
 अपलक ,,मुग्ध भाव से ,
  और लोगों के मुख से निकला ,
   वह ,,,!
क्या रचना है ,,!!

 अखबारों , मेग्जीनो में ,
  छपे  कई लेख ,
 और पढ़े गए कसीदे ,
पेंटर के चित्रण पर ,
सबने कहा
 वह ,,!!  क्या पेंटर है ,,!!

 कई लोगों ने लगा दी बोली ,
हज़ार से लाखों की ,
 और कड़ी प्रतिस्पर्धा में,
 बिक गयी पेंटिंग ,
लोगों ने कहा ,
 वाह  ,,!!
,इस देश में अभी भी शेष हैं ,
 कला के जौहरी ,,!

 पेण्ट,,
 बिकते हैं बाज़ारों में ,
केनवास भी ,
 और स्टेण्ड भी ,,,
कई तरह के ब्रश ,
बिना इनके ,
  शायद नहीं था सम्भव ,
जन्म किसी पेंटर की ,
 रचना का ,,!
और शायद संभव नहीं था ,
 बिना उस उस मूल फोटो के ,
जिसे खींचा गया था ,
कीमती कैमरे से , कीमती लेंसों के जरिये ,
जो बिकते हैं बाजारों में ,
औजारों की तरह ,
  बड़े दामों में ,


बिक गयी जिसकी छवि ,
मजबूरी के लिबास में ,
ऊँचे दामों में ,
उसी की खबर , जब छपी ,
 एक अखबार में ,
तो बहक उठी चैनलें ,
तमक उठे  बुद्धिवादी ,
गतिशाल , विगतशील , प्रगतिशील ,
 पहुँच गए , राजधानी के चौराहों , सडकों पर
  लेकर हाथों में मोमबत्ती ,,!
 एक बेटी की सुरक्षा की गुहार ले कर ,,!
सबसे आगें  था वह  पेंटर ,
पीछे  थे , कला समीक्षक ,
,अखबारी लोग ,
 फिर वे सब ,
 जिन्होंने  घंटों  गुजारे थे ,
कला दीर्धा में , अपलक ताकते हुए ,
 उस लड़की का लिबास ,
उसकी मायूसी , उसकी आँखों में जमे निराशा के भाव ,
और वे भी , जिन्होंने चुकाई थी कीमत ,
उस रचना की ,
अपने ड्राइंग  रूम  की शोभा के लिए ,

सबने ,,नाम दिया लड़की को ,
" रचना "
जो मर गयी थी असुरक्षित , क्षत - विक्षत ,
और पायी गयी थी घूरे पर ,
 उसी फटी चीथी लिबास में ,
जिसका फोटो लेते समय ,
किसी संवेदनशील कलाकार ने ,
नहीं सोचा  उस समय  उसे बचाने को ,
क्यूंकि ,,
 शायद  उसके लिए भी ,,
सोचने से ज्यादा जरूरी था ,
 दुनिया में
   खुद को दिखाने को ,,!

----सभाजीत








सोमवार, 30 अप्रैल 2018

 ,,   बाली " ,,,

     रात देर घर पहुंचा तो  माँ ने बताया कोई आया था स्कूटर से ,,,तुमको पूछ रहा था !
     सन ,,1970 ,, में बालाघाट में नौकरी लगी थी , विद्युत्  मंडल में ,,,, शहर में नया नया था ,!
    अभी तो ठीक से विभाग में ही जान पहचान नहीं हुई थी ,,,तो ऐसा कौन होता जो मुझे ढूंढता आता ??   वह भी स्कूटर से ,,??

   कौतुहल इसलिए  हुआ   क्यूंकि उन दिनों स्कूटर का किसी के पास होना एक रईसी की निशानी थी  और कोई  रईस  व्यक्ति मुझे खोजे यह तो मेरे लिए   अचम्भे   की बात थी !

   दूसरे दिन , सुबह सुबह मेरी मकान मालकिन दरवाजे पर आईं ,! उन्होंने कहा की,,,' भैया ,,, शाम को  सोनवाने  जी आये थे ,,आप से मिलने  वे आपका नाम पूछ रहे थे ,, !  मैंने तो उन्हें बैठने को भी कहा ,,,लेकिन बैठे नहीं ,,यह कह कर चले गए की साहब आएं तो उन्हें मेरी दूकान पर मिलने को कह दीजियेगा ! '

     सोनवाने ,, नाम सुन कर मुझे कुछ कुछ याद आया ,,! मुझे नौकरी ज्वाइन करते ही तीन बड़े गावों के विद्युतीकरण का काम सौंप दिया गया था ! तीनो इस जिले के बड़े गावं थे , शहर से लगभग १२ किलोमीटर दूर ,,!  इन गावों में लिफ्ट इरिगेशन की योजना अंतर्गत , विभाग को मिले वर्ड बैंक के बजट से , अधिकतम खेतों में धरती के अंदर से पानी उलीच कर सिंचाई करने के लिए पम्प कनेक्शन देने का प्रावधान था ! इसके लिए अलग से एक ११ के वी का फीडर शहर के एक किनारे बने सब स्टेशन से खींच कर , गावं तक ले जाना था ! इन गावों की साइट के लिए जाते समय एक बहुत बड़ी आइल मिल दिखती थी ,,जिसमें   सोनवाने   आइल मिल लिखा हुआ था !  तो यही मिल मालिक हो सकता हो घर आये हों !  लेकिन   दुकान  से क्या अर्थ था ,,??
  मैंने मकान मालकिन से पूछा ,," वो तो मिल है ,,,   दुकान  नहीं ,,,फिर मुझे  दुकान  में मिलने को क्यों बोला होगा उन्होंने ,,?? "
  मकान मालकिन उत्साह दिखाती हुई बोली ,," अरे भैया ,,,उनकी  दुकान  भी है ,,,सोने चांदी की बड़ी  दुकान    मैं तो वहीं से गहने खरीदती हूँ ,,   आप नहीं जानते वे नगर सेठ हैं ,,बहुत से कारोबार हैं ,,, लेकिन राम भक्त हैं ,,हर साल रामायण के व्याख्यान करवाते हैं ,,, बड़े बड़े संत आते हैं ,,, देर रात तक रामायण पर व्याख्या होती है ,,,हम लोग वहां भी रोज जाते हैं ,,, पूरा शहर उमड़ता है ,,, सेठ जी द्वार पर खड़े हो कर सबका अभिवादन करते हैं ! "
    मैं चिंता में पड़ गया ,,,!  एक संत स्वभाव  का  आदमी मेरे घर तक  ,आया था ,!,  उसे  मुझसे क्या काम पड़  गया होगा ,,??,,,,अब  मैं जाऊं या नहीं ,, ?!
 अंत में दिल ने कहा ,,,तुम क्यों जाओ भाई वहां ?? ,,,,,, उन्हें जरुरत होगी तो वे फिर बुला  लेंगे  या खुद आ जाएंगे ,,!
 लिहाजा में नहीं गया !

  दो दिन बाद सुबह सुबह ही मेरे घर के सामने , स्कूटर का हार्न बजा !  मैं बाहर निकलता  इससे पहले ही मकान मालकिन हड़बड़ाती हुई आयी और बोली ,,," सेठ जी आज फिर आये हैं ,,,बाहर खड़े आपको याद कर रहे हैं " !   बदन पर  शर्ट  डाल   कर मैं बाहर आया तो देखा की एक अति सौम्य  सा  व्यक्ति स्कूटर पर बैठा मेरा इंतज़ार कर रहा था !  उनके मस्तस्क पर गोल टीका,  सूर्य की तरह देदीप्यमान हो रहा था ,,, और धवल धोती कुर्ता का परिधान ,  उनकी सौम्यता की गवाही दे  रहा था  ! गले में एक मुखी रुद्राक्ष की माला थी ,,,जो एक भारी सोने की चैन के साथ साथ , मानो  युगलबंदी कर रही थी ! मैं नमस्कार करूँ ,,, इससे पहले उन्होंने खुद नमस्कार करके  दोनों हाथ जोड़ कर मेरी और सर झुका दिया ! मैं झेंप गया ,,,,यह व्यक्ति कितना विनम्र है ,,,और एक मैं हूँ की ,,,पहले नमस्कार करने में भी आलस्य कर गया !
मैंने कहा। ---.."आइये। .बैठिये " !
वे बोले -- " थोड़ा सा समय चाहिए था आपका ,,! अगर दे सकें तो मेहरबानी "
मैंने कहा __ हाँ हाँ !! बताएं ,,! "
वे स्कूटर से उतर गए , स्टेण्ड पर गाड़ी खड़ी की ,, फिर मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोले ,---" चलिए चलते हुए बाहर ही बात करते हैं !,,,  आप हमारे जिले के विकास के लिए गावों में बिजली लगाने का काम कर रहे हैं ,,,मैं आपको रोज अपनी मिल के आगे से गुजरते देखता हूँ   कई बार सोचा की आपको मिल में बुला कर , आपको जलपान करवाऊं ,,,लेकिन आप तेजी में निकल जाते हैं   ! "
मैंने कहा  --  " वह तो काम है ,,ड्यूटी है ,,,उसके लिए ही तो तनख्वाह पाता हूँ ! "
वे मुस्कराये -- ' सही है ,,,लेकिन हमें भी लगता है , हमारे क्षेत्र में कोई अफसर काम करवा रहा है तो उसकी खिदमत भी मैं करूँ !"
" कैसी खिदमत " ,,??
 " अरे युहीं छोटी सी खिदमत " ,,!"    कहते हुए उन्होंने एक लिफाफा मेरी ऊपर की  जेब में डाल दिया !
  मैं चिंहुक गया ,,!  मैनी लिफाफा जेब से निकाला और उनकी और वापिस  बढ़ाते हुए पूछा -- " यह क्या है ? "
  " अरे कुछ नहीं एक भेंट है , इसमें दो सौ रूपये हैं ,! "
   मैं अचकचा गया !उस जमाने में दो सौ रुपये बड़ी रकम होती थी !   मैंने कहा  ---  " भला क्यों  ,,?? क्यों दे रहे हैं आप मुझे यह भेंट ??  मैंने ऐसा कौन सा नेक काम किया है ,,??
  " नहीं किया है तो कर दीजियेगा  कोई  ,,  नेक काम "
 "  क्या काम   ?? "
  " काम छोटा सा है ,,!"  वे मेरे कान से मुँह  सटाते  हुए बोले --- " ,,,जहाँ से आप बिजली की लाइन निकाल रहे हैं ,,,वहीं पर मेरे भाई का एक खेत है ,,! ,,,

   ' कहाँ ,,?? "

    " गोंदिया रोड पर मेरी मिल के आगे बांयी और "
  ,,,"  तो "
    " तो यह कि ,,, उस खेत को खरीदने के लिए मैं कई साल से कोशिश कर रहां हूँ ,,,!  भाई गरीब है ,उसकी माली हालत ठीक नहीं है , ,,वह बेचना चाहता है ,,,लेकिन उसके बच्चे  उसे रोक देते हैं ,,वह उसे बरगलाते  हैं की जल्दी ही बिजली का विकास होने पर यहाँ दुकाने बना लेंगे ,, कुछ काम शुरू  कर देंगे ! "
   " वे बात तो सही कर रहे हैं ,,,वहां विकास तो जल्दी ही होगा ही "
   " यह तो मैं भी जानता हूँ ,,,इसीलिये तो अब वह जमीन हर हालत में खरीदना मेरे लिए जरूरी है  मेरा प्लान वहां शॉपिंग  सेंटर बनाने का है  ! "
  "  तो आपका ही तो भाई है ,,,खरीद लीजिये उससे जमीन "
  " अरे आप नहीं जानते हैं  " ,,,,वे दांत कसमसाते हुए बोले ,,,"  नहीं राजी है ,,, दुने तिगुने दाम माँगता है ! "
     " चलिए ,,,तो इसमें मुझ से क्या काम है आपको ??"
    " आप बिजली की लाइन उसके बीच खेत से निकाल दीजिये ,,,बीच खेतों में तीन चार खम्बे गढ़वा दीजिये ,  ,,जैसे ही गड्ढे खुदेंगे   मेरा भाई खुद दौड़ते हुए आएगा मेरे पास ,,,,और सस्ते में खेत बेचने को राजी हो जाएगा ,,,, आखिर सरकारी काम थोड़े ही रुक सकते हैं  उस  के चाहने से ,,! " --  वह यूँ हंसा जैसे मारीच हंसा हो !
   "  तो यह बात है " ,,,मैंने उन्हें घूर कर देखा    फिर कहा ---" लेकिन लाइन का सर्वे तो मैं पहले ही से कर चुका हूँ ,,,मेरी लाइन तो सड़क के दाहिने और से निकल रही है ,,,जबकि आप  अपने  भाई के खेत बाईं और बता रहे हैं ! "
    वे अचानक  उचक पड़े,,,!   जैसे उनका पैर  सांप पर पड़  गया हो ! ,,,, हकलाते हुए   से बोले --
    " अरे यह क्या कह रहे हैं आप ?? ,,,सड़क के दाहिने तरफ तो सब  मेरे प्लाट हैं ,,वहां मैं एक कालोनी बनाने जा रहा हूँ ,,,!  मेरा तो सत्यानास हो जाएगा ! "
    मैं तब तक उनका दिया लिफाफा वापिस उनकी ही   ऊपरी जेब में रख चुका था ! दुर्भाग्य से मैं एक  मास्टर का लड़का था ,,,मुझे लालच से ज्यादा मूल्यों की घुट्टी ज्यादा पिलाई थी मेरे पिता ने ! और संयोग यह था की छोटी कक्षाओं में पढ़ते समय  अपने गावं की रामलीला में मैंने राम का अभिनय किया था !  राम  बन कर मूर्च्छित लक्षमण के सीने पर मैं फूट फूट  कर रोया था ,,,अपने भाई को बचाने  ! रामलीला में ,  सुग्रीव के कहने पर बाली का बध  जरूर किया था ,,,लेकिन उन कारणों को बताते हुए की "  ,,अनुज वधु , भगनी  सुत  नारी , सुन  शठ  ये   कन्या सम  चारी,,,इन्हहि कुदृष्टि विलोकहि जेही , ताहि  बधे  कछु पाप ना होही ,,! "   तो  यहां उस चौपाई  के अनुसार कोई कारण भी नहीं था की मैं सोनवाने  जी के भाई पर धर्म की रक्षार्थ , प्रहार करता !
     लिहाजा , मैंने  सोनवाने  जी  को  उन्ही की  शैली में उत्तर देते हुए कहा ---" अब तो जो सर्वे होना था हो चुका !   ,,यह  सरकारी काम है ,  रोका थोड़े ही जा सकता है !  ,,,कल से गड्ढे खुदना शुरू हो जाएंगे ,,,और हम लोग एक दिन में चार  पोल खड़े कर देते हैं ! "
 " लेकिन साहब !,",,,  वे  मिमयाती आवाज़ में बोलने लगे --," ,वह मेरी जमीन है ,,, वहां तो रहवासी मकान बनाये जाने हैं ,,, बड़ा गज़ब हो जाएगा ,,,आप काम रुकवा दें ,,! "
   मुझे हंसी आ गयी ,,, किसी तरह हंसी  रोकते हुए बोला ---" काम कैसे रुकेगा ,,?? अभी तो वह सब खेत हैं ,, कोई प्लाट नहीं ,,,और ना आपने अभी तक लेंड डायवर्सन करवाया होगा ! "
    उन्होंने  जेब टटोलकर सौ  के दो  नोट  और  निकाल लिए ,,, लिफ़ाफ़े  के ऊपर रख कर बोले ,,," आप फीस ले लें ,,,लेकिन काम तुरंत रुकवा दें ,,,मैं तब तक इंतज़ाम कर लूंगा ,,,स्टे ले लूंगा ! "
   अब मेरा स्वर तल्ख़ हो गया ,,!  मैंने कहा -- " आप मुझे क्या समझ रहे हैं ,,, ""  आप करोड़ों रुपये भी दे दें तब भी में अपने ईमान से डिगने वाला आदमी नहीं समझे ,,!  अपने ये पैसे अपनी जेब में रखें     मुझे लालच देने की कोशिश ना करें ! "
  वे निरीह से मुझे देखते रहे ,,,फिर मुस्करा कर बोले ,,,_  "  सोच लीजिये ,,,, मेरे काम तो हो ही जाएंगे ,,,लेकिन आप घाटे में रहेंगे ! "
 " घाटा नफ़ा आप जैसे लोग सोचते हैं ,,, जो भाई की बर्बादी में अपना नफ़ा देखे उससे घटिया आदमी कौन होगा ,  अब आप जाइये ,,,मैंने आप से  इतनी बात इसलिए कर ली क्यूंकि मुझे किसी ने बताया था की आप धर्म परायण व्यक्ति हैं ,,, हर साल रामायण के व्याख्यान कराते हैं ,,, लेकिन अब आप जाइये ,,,आप का काम मेरे जैसे व्यक्ति के माध्यम से कभी पूरा नहीं होगा ! " ,??
   इतना कह कर मैं बिना उनकी और देखे , बिना नमस्कार किये घर के फाटक के अंदर घुस गया ! थोड़ी देर बाद स्कूटर की आवाज़ आयी ,,, और दूर चली गयी ,,,! स्पष्ट था की वो खिसिया कर वापिस चले गए थे !

    नहा  धो कर आफिस पहुंचा तो लाइनमेन ने बताया की ऐ ई   साहब का  दो बार फोन आ चुका है  ! उन्होंने आप को तुरंत बात करने के लिए कहा है ! मैं धर्म भीरु तो था ही , अनुशाशन भीरु भी था !  धड़कते दिल से अपने बॉस , ऐ ई  साहब  को नंबर डायल किया !
   ऐ ई  साहब का सरनेम सलूजा  था ! पक्के पंजाबी ! स्वभाव से कड़क ,,,, जो सोचलें वही करने में माहिर !   ,,,  वे हर महीने अपने अधीनस्थ वितरण केंद्रों का निरीक्षण करने के आदि थे !  गलतियां पकड़ लें तो फिर सुई की नोक बराबर गलती भी उनकी निगाह से ना बचे  , और नज़रअंदाज कर दें तो हाथी जैसी गलती भी ना देखें ! मेरे साथी सब इंजीनियर बताते थे ,,,की हर बार निरीक्षण करने के बाद , उन्हें मुर्गा खाने की आदत थी ,,! शायद घर में मुर्गा बनाने के लिए मेडम मना कर देती थी !  जब वितरण केंद्रों में निरीक्षण के बाद मुर्गा बनता ,,,तो उसे पचाने के लिए , शुद्ध विदेशी मदिरा का भी इंतजाम सब इंजीनियरों को करना पड़ता था !   भोजन के बाद वे सहृदय हो जाते थे ,,,अधीनस्थों को गलतियां सुधारने की तरकीब स्वयं बता देते थे   इसलिए स्टाफ  उन्हें देवता मानता था !
    फोन उठाते ही सलूजा साहब भड़की आवाज़ में बोले ---" अरे क्या शर्मा ,,,क्या लफड़ा कर रहे हो खम्बे खड़े करने में ,,?? "
   मैंने हकलाती आवाज़ में कहा --" कुछ नहीं सर ,,,काम तो बिलकुल सही चल रहा है ! "
   " क्या ख़ाक चल रहा है ,,?? ----वे बोले ,,,,,," किसी के प्लाट के ऊपर से लाइने खींच रहे हो ,,,झगड़े को निमंत्रण दे रहे हो ! "
    मेरी तीक्ष्ण बुद्धि  में तुरंत मामला समझ में आ गया ,,,!  सोनवाने ने अपना दावं खेला है !
  मैंने संयत हो कर कहा --- ' सर लाइन बिलकुल सही खींची जा रही है ,,, पूरे  खेत हैं ,, कोई प्लाट नहीं ,,,और में भी कोशिश करता हूँ की पोल मेड पर ही गाड़ें  जाएँ  ,,ताकि किसी के खेत बर्बाद ना हों ,,! "
     "  यही तो गलती है ,,, पोल की दूरी तुम क्यों घटा बढ़ा देते हो ,,??   और तुम्हे कैसे पता की सब खेत ही हैं ,,,वहां प्लाट नहीं ,,,क्या रेवेन्यू रिकार्ड चेक किया ,,?? "
  "   नहीं सर ,,,! "
  " देखो अगर कोई कहे की वहां प्लाट हैं ,,,तो मान लो की वहां प्लाट होंगे ,,,!   वहां से लाइन मत  निकालो,,,समझे  ! "
   जी सर ,,! " --- " लेकिन फिर कहाँ से निकालूँ ,,, ?? सड़क के के तो दोनों और खेत हैं ,,,वहां कोई भी प्लाट हो सकता है ! "
  " सड़क के दाईं और अगर कोई कहे की प्लाट हैं ,,,तो झगड़े को दावत मत दो ,,  बाईं और से लाइन निकाल दो ,,, समझे। .!! "
    " लेकिन सर   ऐसा करने में तो रोड पार करनी होगी , रोड क्लीरेंस के लिए रेल पोल लगाने होंगे ,  गार्डिंग करनी होगी ,,! पोल गाड़ने के लिए अलग से सीमेंट लगेगी   ,,विभाग का ,खर्चा बढ़ जाएगा ,,,एस्टीमेट ओवर हो जाएगा ! "
    "  हूँ ,,, ठीक है ,,,तुम मुझसे अलग से एक एप्रूवल ले लो ,,, मैं दे दूंगा ,  रेल पोल लगा दो , कांक्रीट कर दो , क्लीरेंस बना दो    सब चलेगा ,!  लेकिन लाइन को रोड की बाईं और से ही निकाल दो ,,,वहां कोई नहीं आएगा शिकायत ले कर ,,,विभाग का काम बिना झगडे झंझट के पूरा हो जाएगा ,,,समझे ! "
----"   ठीक है सर ,,! "

  उन्होंने फोन पटक दिया !  मैं सोचने लगा ,, दो रेल पोल , स्टे , कांक्रीट , गार्डिंग ,,,जिसकी कतई  जरुरत नहीं थी ,,, वह विभाग क्यों वहां करेगा ,,?? आखिर विभाग का मतलब क्या है ,,,??    अफसर या इंजीनियर ,,,या फिर वित्त ,,??
    तभी मेरा एक साथी इंजीनियर भी आ गया !   बोला - " सर ने तुम्हारी मदद के लिए मुझे भेजा है !  लाइन को बाईं और से निकालना है ,,, सर्वे करवा कर दो दिन में ही पोल खड़े करवा दें ,, लाइन खींच कर काम जल्दी करवाना है ,,,उदघाटन की डेट तय हो गयी है,,,,समझे ,,,??  !

   " समझे " एक अंदाज़ में कह कर वह हंस दिया !  में कहा---" अब भी ना समझूँ तो मुझसे बड़ा गधा कौन होगा भाई ,,!! "
      दूसरे दिन ही अचानक मेरे दादाजी की तबियत के बहुत खराब होने का टेलीग्राम मिला ! मैंने ऐ ई  साहब से सात दिन की छुट्टी  माँगी ,,,उन्होंने तुरंत दे दी !  शायद यह छुट्टी जितनी मेरे लिए जरूरी थी उतनी ही ऐ ई   साहब , के साथ साथ  सोनवाने के लिए भी जरूरी थी ! मैंने  अपना काम साथी इंजीनियर को सौंपा और तुरंत ट्रेन  ट्रेन पकड़ कर घर चल दिया !
   ट्रेन में बैठे बैठे   मैं सोचता रहा ,,,क्या हम सचमुच इंजीनियर है ,,,या एक " औजार " ! ऐसे औजार ,,,जिनके पास अपना कोई दिमाग नहीं होता ,,,! उसे यह भी नहीं मालुम होता की वह किस जगह क्यों कुछ छील रहा है ,,,!  सिर्फ उसका काम   खोदना  , तोड़ना , छीलना है ,,,, निर्माण की गुणवत्ता से उसका कोई सम्बन्ध नहीं ! फिर हमारी पढ़ाई से क्या लाभ ,,? अगर हम सिर्फ औजारों की तरह ही उपयोग हो रहे होते हैं  तो हमारे घर के लोग पढ़ाई की मोटी रकम खर्च कर के हमें क्यों पढ़ा रहे हैं ?? !

    मन में तर्क उठा --- क्या रामायण के पात्रों के बीच लड़ाई ख़त्म हो गयी है ,,??  क्या आज भी   बाली  अपने छोटे भाई सुग्रीव को राज निष्काषित करके , उसकी जमीन नहीं छीन लेना चाहता है ,??  क्या सहोदर भाई के ऊपर कोई बाली उदार है ,,?  क्या  आज भी  बाली के पास.."  कोर्ट' ,' अधिकारी' , 'पैसे',, जैसे घातक हथियार नहीं है और क्या वह   पलक  झपकते ही , सामने वाले  का  बल आधा नहीं कर देने में  समर्थ नहीं  है ,,??   और  क्या राज्य  निष्काषित  सुग्रीव का दर्द कोई  राज्य  निष्काषित राम ही जान पाता  है ,,,कोई दूसरा नहीं ,,,और क्या तब तक सुग्रीव को दीन हीन   बन  कर भय के साथ जीवन बिताना जरूरी है ,,,जब तक उसे राम ना मिले ,,??

     कुछ दिनों बाद जब में लौट कर आया तो मेरे साथी इंजीनियर ने लाइने , रोड के बाईं और से खिंचवा दी थी !  शायद सोनवाने का भाई अपना  खेत आने पौने दामों में  सोनवाने को  बेच गया था !  इसकी  तस्दीक काफी दिनों बाद तब हुई , जब में कई वर्षों बाद एक बार बालाघाट गया तो मुझे वह पूरा इलाका विकसित दिखा !  सोनवाने के भाई के जिन प्लाटों में कभी खम्बे गाड़े गए थे ,,वहां से वे शिफ्ट हो गए थे !  वहां पर एक बड़ा मैरिज  हाल बन चुका था !  मैंने पूछा की यह किसका है तो लोगों ने बताया की  ' मिल वाले सोनवाने जी '  का !

   शाम को शहर में घूमते हुए यूँही फुल्की खाने की इच्छा हुई ,,,तो एक ठेले पर खड़ा हो गया ! उस पर लिखे बोर्ड पर ध्यान दिया तो पाया वह सोनवाने फुलकीवाला है !  मुझे   कौतुहल हुआ तो फुल्की बनाने वाले से पूछ लिया ,, क्या तुम्हारा एक खेत कभी गोंदिया रोड पर था ,,,रोड के बाईं और   मिल के पास ,,??
    उसने सर हिलाते हुए कहा--- " हाँ सर था वहां ,,,मेरे पिताजी के नाम ,,पर उन्होंने बेच दिया था ,,, ताऊ जी को ,,  वे अपने बड़े भैया को बहुत मानते थे ,,, हमारे मना करने पर भी नहीं माने ,,!"
     " तो अब क्या है तुम्हारे पास ,,?? "
     " यही फुल्की वाला ठेला है   गुजर बसर के लिए "
     " तुम्हारे दूसरे भाई ,,वगैरह नहीं है ,,?"
       " नहीं सर ,,,एक फौज में भर्ती हो गया था ,,,वह काश्मीर में शहीद हो गया ,, आतंकवादियों से लड़ते ,,! दूसरे भाई की अभी दो महीने पहले ही मौत हुई है ,,,कैंसर से ,,,सिर्फ अब मैं बचा हूँ ,,!

            अंत में मुझे " सलूजा  साहब " याद आये ,,,जिन्होंने इन तीनो भाइयों को तो वर्षों पहले ही मार दिया था ! शायद एक टीन  सरसों के तेल के बदले , जो सोनवाने आयल मिल से , उनकी जीप में उनके बंगले के लिए ,  जीप ड्रायवर ले कर गया था ,,!  यह बात उनके तबादले के बाद , खुद ड्रायवर ने ही बताई थी मुझे !

   सोनवाने फुल्की वाला मुझे पूछ रहा था ,," चटनी खट्टी लेंगे या मीठी ,,??,,

               ,और मेरी जीभ थी की सारे स्वाद खो चुकी थी !


---सभाजीत

 






मंगलवार, 3 अप्रैल 2018







मैं ब्राहमन हूँ ...!!

मैं क्यू ब्राह्मंण हूँ .? ..
.यह मुझे नही पता ...!!

.....बस .
.एक ब्राहमन के घर जन्म लिया ..
तो मैं एक ब्राहमन हो गया .!!

मेरी शिक्षा है ..एम एस सी .!!

आप पूछेंगे,
 तब यह वेश क्यू धारण किया
पंडित्याई का ??

हाँ ...!!
 मैं पंडितयाई करता हूँ !
घरों में,
 कथा ,हवन , महाभीषेक , पित्र पूजन , करके,
 अपनी जीविका चलाता हूँ !!

यह मुझे किसी ने नहीं सिखाया .
.क्यूँकी,
 यह मेरा पैत्रिक कार्य था !

इसके लिये कहीं इमतहान देने नही गया !
ना टाप टेन में आने की ज़रूरत पडी !
 ओर ना ही दिनरात पढाई करनी पडी ...
.जैसी मैने कालेज में की !!

,,ना कोई बडी फीस लगी .
..ना ट्युशन ..!.
..जैसी कि मुझे शिक्षा ग्रहण करने के लिये लगी .
..जिसे जूटाते जूटाते
..मेरे व्रद्ध पिता स्वर्ग सिधार गये !
,,,
वे एक गरीब व्यक्ति थे
..बहुत गरीब ..!!
भिक्षाटन से ज़िन्दगी शुरु की थी उन्होने ..!!
लेकिन सरकारी सूची में,
 ब्राहमन को गरीब माना ही नही गया था !

उल्टे ,
जब भी मैने किसी नौकरी के लिये फार्म भरा .
...तो लिखना पड़ा ....' ब्राहमन '..!
क्यूँकी,,
 " गरीब " का कालम था ही नही वहां ..!!
मेरे लिये नही था कोई ..
." आरक्षण .."..!!
मेरे लिये थी .
..' प्रतीक्षा " की अंतिम सीट .
 क्यूँकी में ब्राहमन था .!!

,,,हां ...!.
..मुझे मिला था ,
मेरी योगयता के लिये ,
 स्कूल में ..' बेस्ट साइंस माडल ' का पुरस्कार ..!
लेकिन मैं नही था .,
..योग्य ..,
 उस नौकरी के लिये .
..जहां ब्राहमन होना गलत था !

सही था तो पिछडा होना !
मुझे नही मालूम,
 मैं क्यू ब्राहमन था ...ओर क्यू नही पिछडा था !
लेकिन आज पिछडा हूँ !
पिछडा हूँ ...अपनी योग्यता में ...!
पिछडा हूँ अपने देश में ..!!
ओर अब पिछडा हूँ ...अपने कर्म में ..!!
आरोप है .
.कभी मेरे पूर्वजों ने किया था दमन ..
पिछडो पर
...ज़िसका प्रतिकार मैं झेल रहा हूँ !
....
लेकिन मैं तो आज हूँ ..,
बीता हुआ कल नही ....!!
मैं ब्राहमन हूँ ...!!
ए मेरे देश ..!
क्या मेरी जगह भी सुरक्षित हो सकती है
..तेरी गोद में ..??
ना सही एक पिछडे की तरह .,
एक गरीब की तरह ही सही ..!!
कि कर सकूँ तेरी सेवा ..
अपनी ' योग्यता अनुसार ..!!
ना .! ..ना ..! ...मुझे आरक्षण नही चाहिये ..,
मुझे सिर्फ अपना हक चाहिये ...,
अपनी योग्यता का,, हक ...!,
कि मै कब का छोड चुका ...,
' भीख मांगना '....!!

,,सभाजीत