गुरुवार, 7 सितंबर 2017



कमर भर पानी में ,
खडे होकर ,
अपलक ताकते हुए .. आसमान में .,

एक अंजुली पानी .
.फेंका था ..,
तुम्हारी तरफ ...,
जो वापिस आ गिरा 
मेरे ही मुह पर ... ,
शायद तुम प्यासे नही थे ,
प्यासा था ...मै ही ..!

हाँ ...प्यासा था मैँ ...,
साल के पन्द्रह दिनो में .,
तुम्हे याद करने के लिये ..,
इन पन्द्रह दिनो में ही तो ..,
एक दिन तुम्हारा था ..,
जन्म का नही .,
तुम्हारी मृत्यु का ...,
उस विदा का .दिन ,
जब तुम चले गए थे ,
सदा के लिये ...!!

य़ाद आने को तो ,
कई बातें थीं ...,
तुम्हारी ऑर मां की ..,
वो मां का कंघी काढ देना ..,
मोजे पहनाना ..,
और तुम्हारा ..
सायकिल में लगी छोटी सीट पर मुझे बैठा कर ,
बाजार ले जाना ..,!
अपना पेट काट कर ,
मुझे पढाना ..,
ऑर मेरे अफसर बनने पर ,
गर्व से मुझे निहारना ..!!

लेकिन पन्द्रह दिन तो ,
यूँ ही गुज़र गये ...,
इधर उधर पानी देते ,
कोवों को बुलाते ..,
पंडित को खिलाते ..,
ना तुम याद आये ना तुम्हारी य़ादें ..!

एक दिन ,तुम्हारे ..,टूटे बक्से में .
दिख गये ...तुम ऑर मां ,...एकसाथ ..!
जब एक पैन ..ओर पुराना टिफिंन ..
एक कोने में धन्से हुए , टकरा गये मेरी ऊँगलियो से ..,
ना जाने क्यू ..
सहसा ..बिलख गयीं ..मेरी आँखे ..,
फफ़क कर रो पडा मैं ..,
वह पानी ,
धार बन कर बह गया , आँखो से ..,
अविरल रुका ही नही ,
ज़िसे मैने फेंका था ...अंजुली भर ..,
नदी में धन्स कर .., 
मेरे होठों को कर गया ..तर ., 
आकंठ की 
लगा अब कोई प्यासा नही ..रहा ..,
ना तुम ..,
ना मैं .. !!



sabhajeet 


शनिवार, 17 जून 2017


पिता ,,,!
 
   तुम्हे याद करता,,,, गर भूल जाता  जब ,,!
 लेकिन तुम्हे भूला ही कब ,,??

मेरे बेटे ने ,
मुझसे बहस की ,,,बराबर हो कर ,
तो मुझे लगा ,,,
 जैसे में खड़ा हूँ ,,,बेटा बन कर ,
और तुम खड़े हो मुझमें  समाये .!
वही धैर्य ,  वही  समझ , वही चुप्पी ,
लगा जैसे गुजरे दिन  फिर लौट आये ,,!

 पत्नी ने   ,
  बेटे  की हिमायती में ,
 बदलते वक्त के तकाजे ,
 जब मुझे समझाए ,
तो लगा ,,,की तुम ही सुन रहे थे ,जैसे ,माँ से ,
 ,
 दुनियादारी की  घिसी पिटी  बातें ,,
देख रहे थे ,,,चुचाप ,,,
  वे गुजरे लम्हे ,
 जो अपनों के लिए ,
 तुमने गवाएं  ,,!

 पोते का मुंह  देख कर ,
 जब तुम्हारे नयन ,, खुशी की बूंदों से छलछलाये ,
वही खुशी के आंसू मेरी भी आँखों में ,
पीढ़ी के आगे बढ़ जाने पर ,
उमड़ आये ,,!
वो संस्कारों की गठरी ,
 जो तुमने अपने पूर्वजों से ले कर ,
 नवागतों को  सौंपी थी , ,,
 वही कर्तव्य मैंने भी दोहराये ,,!

कदम कदम पर जब ,
 तुम मुझसे छूटे ही नहीं ,
तो अब डरता हूँ ,,,की
 कैसे तुम मोक्ष पाए ,,?
जीवंत रहे हर जगह , मुझमें ही ,
तो कहाँ विसर्जित हो पाए ,,??

,,,,,सभाजीत

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