शुक्रवार, 17 जून 2016


    "  सावित्री " -' सत्यवान '  और ' यम ' ,,



  ' सत्यवान  ' के प्राण हरण करके ,,,,' यम '  गहन अंधकार के उस मार्ग पर चल पड़े जहाँ कुछ भी दृश्य नहीं था ! यह वह मार्ग था जहां पर सिर्फ अंधकार था ,,,अनन्त अन्धकार ,,,और प्रकाश   का प्रवेश जहाँ वर्जित था! वे सदैव की  भाँति  आश्वस्त थे  कि  उनके इस एकाकी मार्ग पर सिवा उनके कोई और  यात्रा नहीं कर सकता!   तभी उन्हें लगा ,,, कि  आज कुछ असम्भव सा होने वाला है !  उन्होंने  चारो और देखा , फिर पीछे मुड़े तो उन्हें एक ' साया ' अपने साथ साथ चलता प्रतीत हुआ !
 उन्होंने पूछा --" कौन ' ,,,?
  किंचित हास्य भरे स्वर में एक स्त्री कंठ उन्हें सुनाई दिया ---' 'सब कुछ   जानने  वाले , अंधकार में भी  चलने वाले देव ,,,क्या आप को नहीं मालुम की आप के पीछे कौन है ,,??
  यम की छठी इंद्री जाग्रत हुई !
 उन्होंने भी हास्य भरे स्वर में उत्तर दिया ,,, ' जानता हु ,,, किन्तु पहचानना नहीं चाहता !  तुम ' अश्वपति ' की पुत्री  ' सावित्री ' हो ! "
  ' आप  मेरे पिता को  पहचानते  हैं किन्तु मुझे नहीं ,,,ऐसा क्यों देव ,,?? "
  यम  गम्भीर हो उठे ,बोले ---  ," इसलिए , क्यूंकि ,,, ' अश्वपति '  एक तपस्वी है ,,, वह राजा के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुआ ,,,और  ' अश्व ' रूपी अपनी सभी इंद्रियों की रास को अपने ' बस ' में रखने में समर्थ है !  ' तपस्या ' एक साधना है ,,,और जो इसमें सफल होता है , 'यम ' की निगाहों में वह हमेशा आदर का पात्र होता है !'
  --- तो आप जैसे ' समर्थ देव को मुझे पहचानने में  शंका क्यों ,,??
 यम इस बार जोर से हँसे ,,,__ " तुम्हे ना पहचानू यह कैसे संभव है ,,? तुम,, '  सविता ' हो ,,, भले ही तुम्हे लोग ' सावित्री ' कह कर बुलाते हैं ,,,किन्तु मैं अपनी परम शक्ति  ' अंधकार '  की एक मात्र ' शत्रु  '   सविता को ना  पहचानूँ ,,,,?,, यह संभव नहीं ,,, तुम्हारा उदय किस क्षण हो जाएगा ,,,और तुम कब मेरे इस अंधकार के साम्राज्य को छिन्न भिन्न कर दोगी ,,, उस क्षण को पहचानना कठिन है !,  इसलिए में जान कर भी तुम्हे पहचानना नहीं चाहता !  "
 अब सावित्री भी मुखरित हो गयी  !  वह बोली --' देव  आप सूर्य ' को तो पहचानते ही हैं ना ,,? '
--- हाँ सूर्य को पहचानता हूँ ,,,जैसे अंधकार  एक ' सत्य ' है उसी प्रकार  प्रकाश ' भी ,,,और वह सूर्य का ही रूप है !   "
   --  तो '  देव ' ,,, मैं इन दोनों सत्य के बीच की  वह बिंदु  हूँ   , जहाँ से ' सत्य अपना स्वरूप बदलता है !,,,, क्या में  अंधकार और प्रकाश की तरह ,  उसी कोख से उत्पन्न हुई वह  शक्ति नहीं हूँ  जो ' सत्य ' के स्वरूप को एक क्षण में  बदल देती है  ,? "
  यम थोड़ा  थम  गए ! उन्होंने कहा ---" यह बात में जानता हूँ ,,,इसलिए इस गहन अंधकार में भी  तुम्हे  मेरे पथ का अनुसरण करते देख मुझे आश्चर्य नहीं हुआ !  तथापि अब मेरा अनुसरण छोड़ दो ,,,क्यूंकि मैं इस अंधकार में ही विलीन हो जाऊंगा ,,,,जबकि  तुम्हारा ' विलीन ' होना संभव नहीं ! "
  सावित्री हंसी !   बोली ---' आप सहर्ष विलीन हो देव ,,!  किन्तु उस ' सत्य ' के साथ नहीं  जो कभी विलीन नहीं होता ! "
    ---' किस सत्य के साथ ? "  यम  थोड़ा  हिचकिचाए  !
   --- उस सत्य के साथ जो आपकी मुट्ठी में कैद है ,,और जिसे आप सदा के लिए अंधकार में  अपने साथ विलीन कर देना चाहते हैं !"
----" मेरे मुट्ठी में तो ' सत्यवान ' के प्राण है ,,, और जिसने जन्म लिया उसे समाप्त होना ही है  यह तो नियति है सावित्री ! "
       ----' देव "   यदि सत्य को धारण करने वाला , सत्य को संचालित रखने वाला , भी अन्धकार में सदा के लिए विलीन हो जाएगा ,,,तो सत्य  किस तरह इस मृत्यु लोक में प्रदर्शित होगा ,,??
    यम अब ठिठक कर खड़े हो गए !    वे बोले--- ' सत्यवान ' अमर नहीं हो सकता सावित्री !"
'----'क्या आपका यह परम सेवक,' अंधकार ' अमर है देव ,,?  क्या 'प्रकाश भी अमर है देव ,,,"  क्या ये नित जन्मते और मरते नहीं ,,?? " सावित्री ने पूछा !
     यम समझ गए थे की वह सावित्री के वाक् चातुर्य में उलझ गए हैं ,,! सबसे बड़ी चिंता उन्हें यह होने लगी की अंधकार  के क्षीण होने का   समय भी निकट आ रहा था ,,,,और तब ' सावित्री ' किसी भी क्षण अंधकार को  प्रकाश  में बदल देने वाली थी ! अंधकार की समाप्ति का अर्थ था उनकी यात्रा में ' अवरोध ' !

   वे बोले ,,,-- तुम चाहती क्या हो  ? अपना अभिप्राय स्पष्ट करो ,,! "
    सावित्री बोली----- ' अमर तो कुछ भी नहीं देव ,,!     जन्म के बाद मृत्यु  और मृत्यु के बाद जन्म एक शास्वत सत्य है !    यही एक ऐसा सत्य है जिसकी निरंतरता बनी ही रहनी चाहिए ,,!  किन्तु देव ,,, जब ' सत्य ' को धारण करने वाले ' सत्यवान ' को ही आप अंधकार में विलीन कर देंगे तो जन्म मृत्यु के इस चक्र का ओचित्य भी क्या  बचेगा ??,,,    सत्य सिर्फ एक शक्ति है ,   किन्तु इसे धारण करने वाला ' शिव ' भी चाहिए !  भले ही निरंतरता बनाये रखने के लिए जन्म मरण हो ,,,किन्तु '  सत्यवान  ' को एक अवसर भी तो मिलना चाहिए की वह अपने सत्य को दूसरे उत्तराधिकारी  को थमा कर जाए ,,!  और मैं यही कहना  चाहती हूँ की सत्यवान ने अपना वह ' कर्म ' अभी पूर्ण  नहीं किया है ,,,,इसलिए अभी आप उसे अपने साथ ले कर नहीं जा सकते ! "

    यम ने दूर नज़रें फैलाई तो पाया की अंधकार क्षीण होने लगा था ,,! सावित्री की आभा बढ़ रही  थी ,,,, अब अंधकार में यात्रा संभव नहीं थी !    उन्होंने पुनः सोचा  और निश्चित किया की "  सत्यवान ' को उन्हें लौटा देना चाहिए ,,, जब तक वह अपना कर्म पूरा ना करे ,,,और सत्य को धारण करने वाला अन्य व्यक्ति पैदा ना कर ले उसे मृत्यु देना उचित नहीं !  रह गयी ' समय ' चक्र की बात तो वह तो चलायमान है ,,,स्थिर नहीं की पुनः लौट कर ना आये ,,!

     यम  ने मुस्करा कर कहा --- ' शब्द ' भी एक ' शक्ति ' है सावित्री ,,,, यह समय को बाँध  सकती  हैं ,,, विचारने को विवश कर  सकती  हैं ,,,शब्द ,,  जय पराजय के प्रतीक हैं !  तुमने जिस शब्द शक्ति के प्रयोग से ' सत्य ' की व्याख्या ' की वह स्तुत्य है !  मैं तुम्हारे लिए ' सत्यवान ' को छोड़ रहा हूँ ,,, किन्तु इसे   निरंतरता देना तुम्हारा कर्तव्य है !   जाओ तुम वापिस लौट कर अपने उस ' सत्यवान  ' से मिलो जिसकी अभी   उस मिथ्या जगत में  जरुरत ,,शेष है " ,,! "
 यह कह कर यम अंधकार में विलीन हो गए !
  प्रकाश की वह ' आभा ' फूट पडी थी ,,, जिसे लोग " पौ फटना ' कहते हैं !


---------"  सभाजीत शर्मा ' सौरभ '

शनिवार, 7 मई 2016

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इधर कुछ दिनो से , कई मित्रों के ब्लॉग मे , प्यार को लेकर कई किस्से लिखे जा रहें हैं !प्यार क़ी कथाओं का अंबार लगा है !बुक में फेस है  , फेस पर पूरी बुक है , वाट्सअप  पर मेसेज हैं ,मेसेज में बूझो तो प्यार  है ,,,   प्यार पर कविता है , कविता में प्यार है ,,  और प्यार क़ी परिभाषाएं भी अपरम्पार हैं ,,! !

ऐसे  मे मेरे टुटपूंजिया विचार वाले ब्लॉग पर जब कोई टिप्पणी मुझे नही मिली तो मेरे  दिल ने कहा,-

 ' यार !! तुम भी तो सोचो ,कुछ  लिखो , लोगों को बताओ की प्यार क्या है ,,!  क्या तुमने कभी प्यार किया ?या फिर तुम्हे भी कभी प्यार हुआ ?'

दिल के उकसाने पर जब  मेने यादों क़ी पिटारी  खोली तो प्यार का एक  वाक़या , जो आक्सीजन लेने के लिए कई सालों से दिल की कोठरियों में , आजीवन सज़ा भोगता ,  अंदर छ्टपटा रहा था, उछल कर बाहर आ गया !उसे देखते ही मेने कहा ;- ' हाँ शायद यही है वह सब कुछ , जिसकी मुझे  जरुरतहै  क्योंकि मैं उसकी पहरेदारी करते करते   चुक  चुका था ,,और वह भी अँधेरे में पड़े पड़े मरणासन्न हालत में पहुँच चुका था ! इसलिए अब उसके आज़ाद होने  न होने  से मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला था !

  
 आज से  करीब ४० साल पहले ,,,सन 1974 मे ,  शायद में चौबीस वर्ष का  रहा होऊंगा ! यह   उम्र प्यार के लिए बिलकुल मुफीद थी ,,क्योंकि तब मैं  जवान था !,,कहते हैं ,, ,,, प्यार के लिए जवानी  उतनी ही जरूरी  होती है , जितनी क़ी बिजली को बहने के लिए तार क़ी ! बिजली को अगर बहने के लिए तार चाहिए तो जवानी को ठहरने के लिए प्यार चाहिए !
उस वक्त़ , प्यार करने के लिए मुझमे पर्याप्त गुण मौजूद थे , जैसे क़ी में गिटार बजाता था, कविता लिखता था,गीत गाता था, और चश्मा लगाता था !
चश्मा लगाना उस समय का एक उच्चस्तरीय गुण था क्योंकि फ़िल्मो मे हीरोइने या तो चश्मा लगाने वाले अमिताभ , जितेन्द्र, जैसे जीनियस हीरो पर मरती थी या फिर अमोल पालेकर जैसे किसी निरे बुद्धू किरदार  पर.!
खैर !!..
,,,, मैं  जीनियस दिखने क़ी कोशिश करता था, और यह अंदाज़ लगाने क़ी कोशिश करता रहता था कि जीनियस दिखने के कारण ,  कितनी युवा लड़कियाँ मुझे आँखों क़ी कोर से निहार रही है ! .,उस समय शर्म और प्यार का कॉकटेल चलता था,,,,  नीट  प्यार नही चलता था,,इसलिए यह जांनना बड़ा मुश्किल था की कोई मुझे प्यार कर रहा है या नहीं ,,! फिल्मों में  भी उस समय  तक ,,सीधे सीधे ,," आई लव यूं  " का डायलॉग पैदा  नहीं हुआ  था !
!एक दिन मेरे एक विभागीय मित्र ने मुझे फिल्म दिखाने को कहा ! मैंने  उसकी बात मान ली ! क्यौकि वह मेरा मित्र ही नही, मेरा हम उम्र और मेरा  गहन प्रशंसक था ! इतना गहन प्रशंसक  कि  अगर  वह कोई लड़की होता तो   मैं शायद  उसके प्यार मे फँस कर उसी से विवाह कर लेता !
उस छोटे से शहर मे बालकनी से फिल्म देखने वालों कि संख्या बहुत थी !इसलिए हमे बालकनी में सबसे पीछे की कतार का टिकट नहीं मिला  बल्कि  बीच क़ी कतार का टिकिट मिला !टिकिट ले कर हम दोनो टाकीज़ मे घुस कर अपनी सीट पर बैठ गए !
थोड़ी देर मे सभी सीटें भर गयी, और स्क्रीन के पीछे  लगा स्पीकर उस समय के  हिट गाने बजाने लगा ! बैठने के बाद ,  आदतन मेने अपने चारों ओर निगाहें घुमाई - कैसे कैसे लोग,और कैसी कैसी युवा लड़कियाँ कहाँ कहाँ बैठी है,, ज़रा देख तो लूँ  ,,!! !
देखा तो मेरे आगे क़ी दो कतार छोड़ कर  , तीसरी कतार से एक सुंदर आकृति , घूम कर मेरी ओर देख रही थी !मुझे खुद  क़ी ओर देखता पाकर वह मुस्कराई और उसने  तुरंत अपना मुँह वापिस मोड़ लिया  !

बला का सौंदर्य था !-
गोरा रंग,सुंदर नाकनक्श,  बड़ी बड़ी  आँखें , सुराहीदार गर्दन पर बल खाती लंबी चोटी , और गुलाबी होंठ ,, ,!! क्या मादक स्वरूप था ,,!!  में हतप्रभ रह गया !
स्क्रीन पर तो सुंदर हीरोइन दिखने मे अभी देर थी ! लकिन यह हीरोइन तो टाकीज़ मे ही विद्यमान थी  और ,, ठीक मेरी पंक्ति के एक पंक्ति के आगे ,,!!
तभी उस मूर्ति ने फिर पीछे मूड कर देखा !- उसके पतले गुलाबी होंठ प्यार क़ी मुद्रा मे हँसे, और फिर फैल गए , छिपे हुए दाँतों क़ी धवल पंक्ति भी अपनी छटा बिखेर गई !

मुझे देख कर उसने फिर अपनी गर्दन वापिस मोड़ ली !
यह घटना फिर से घटती, इस से पहले ही अंधेरा हो गया और स्क्रीन " फिल्म डिवीज़न क़ी ब्लेक एन्ड व्हाइट  करतूतों की  भेंट" चढ़ गई ! थोड़ी ही देर में मूल फिल्म  भी चालू हो गयी !
मेरा मन अब स्क्रीन पर बिल्कुल नही लग रहा था !मेरा मित्र मुझे फिल्म के सोन्दर्य पक्ष के बारे मे बताने लगा !मसलन- फिल्माया गया  द्रश्य कितना सुंदर है, हीरोइन कितनी भोली है हीरा उसे कैसे चाहता है वग़ैरह.वगैरह ! लकिन मे तो अपनी सीट के आगे क़ी तीसरी कतार मे नज़र गडाने लगा - ! ना जाने कब वह सुराहीदार गर्दन मुड़े और और फिर मुझे देख ले और कहीं  मैं उसकी नज़रों के तीर से वंचित न  हो जाऊं ! !
और तभी ,, फिर मेरी आरज़ू पूरी हुई ! जैसे ही स्क्रीन पर रोमांटिक गीत शुरू हुआ , फिल्म के हीरो,, हीरोइन  ने  घास पर लोटें , लगानी शुरू कीं ,,  हीरो ने अपना मुँह हीरोइन के मुँह के पास ले जाकार गाना  गाना शुरू किया  , तभी वह गर्दन फिर पलटी!
इस बार उन आँखों मे रोमांस का नशा था !मेरी ओर देख कर वह फिर उसी अदा से मुस्करा कर ,  वापिस पलट गई ! मेरा दिलतो बल्लियों   उछलने  लगा !

 मन में एक मीठी सी गुदगुदी उठने लगी --
- " हे भगवान !! यह कौन है जो मुझ मे इतनी दिलचस्पी ले रही है ??
    इतनी सुंदर कन्या के लिए तो मे सभी गुणों से पूर्ण होने पर भी खुद को उसके योग्य नही समझता था !
    

 नशे के घूँट  पीता  हुआ बेसुध सा मैं  फिल्म मे क्या हुआ कैसे हुआ   कुछ  नही देख पाया !सिर्फ़ सम्मोहित सा टकटकी लगाए , अंधेरे मे आगे क़ी तीसरी पंक्ति की   सीट पर आँखे गड़ाए बैठा  रहा !
तभी इंटरवल हुआ , और हॉल रोशनी से जगमगा उठा !
लकिन इस बार उस लड़की ने पीछे  मुड़कर नही देखा !
मेरे दोस्त ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे हिलाया और कहा - " चलो सौरभ चाय पिलाओ !"
में अनमने भाव से उठ गया !  चाय के स्टाल पर कुछ  और दोस्त मिले -सभी ने कमेंट किए _ क्या शानदार फिल्म है !! ,तुम्हे कैसी लगी सौरभ ?
 मैं  चुप रहा !,,,,,मुझे जो शानदार दिखा था ,उसके आगे फिल्म  देखने का कोई अर्थ न था ! मुझे जो दिख गया था उसे मैं  भूल नही पा रहा था !
बाहर  निकल कर ,,लाबी मे आकर मेरे मित्र ने  पूछा --
-"क्या बात है यार ? खोए खोए से क्यो हो ? क्या सेंटिमेंटल हो गए हो ?"
मेने कहा - " नही यार !!"
-"तो कुछ तो  है ही ,,,, बतलाओ !!"- मेरा दोस्त मेरे पीछे ही पड़ गया !
मेने सोचा - फिल्मों मे हीरो के प्यार का राज़दार उसकाअपना प्यारा  दोस्त ही तो होता है ! तो क्यों ना मे अपने इस दोस्त को अपना राज़दार बना लू ?
मेने उसे बताया _ "यार ! टाकीज़ मे मेरे सीट के आगे बैठी एक लड़की मुझे मुड़   मुड़  कर,, बार बार देख रही है !मैंने पहले उसे कभी नहीं देखा ,,मुझे समझ में नहीं आ रहा है की वह ऐसा क्यों कर रही है ,,!
दोस्त मुस्कराया ,! फिर रुक कर  धीरे से  बोला -"  यह प्यार का मामला है - 'भाई ! तुम प्यार को पहचान नही रहे हो ! "
-" लकिन मेने तो उसे पहले कभी देखा ही नही !"-
-"  तुमने उसे भले ही ना देखा हो ,पर उसने तुम्हे पहले ज़रूर देखा है ! हो सकता है - कभी तुम गिटार बजा रहे हो और वह श्रोताओं मे बैठी रही हो ! या फिर तुम कविता पढ़  रहे हो और वह प्रशंसकों  में बैठी हो ,, ..तब,..या फिर.कभी तुम ,,,,,,,,!.""
-" बस बस रहने दो भाई !!,,, मैं इतना जानता हूँ की मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा ,, अब  चलो जल्दी अंदर चलो मे तुम्हें उसको दिखाता हूँ !"
में उसका हाथ पकड़ कर वापिस हाल मे आया  !

लकिन मेरी किस्मत !!- उसी समय हाल मे फिर अंधेरा हो गया !
अपनी सीट पर जाकर हम लोग बैठ गये ! मेरे दिल मे थोड़ी थोड़ी गुदगुदी होने लगी! मेने तब तक प्यार सिर्फ़ फिल्मों मे ही देखा था !लकिन ना तो प्यार किया था और ना ही मुझे प्यार हुआ था ! लेकिन आज  यह घटना तो जैसे  मुझे प्यार के पोखरे मे डुबोने जा रही  थी!
यह कैसे मुझे जानती है ..?क्या वाकई मेरे किसी गुण से प्रभावित है ..?क्या वाकई मुझ से प्यार करना चाहती है ..? या इसे  मेरी सूरत शक्ल  भा गयी ,,?   मे धीरे धीरेपोखरे में  डूबने लगा !
तभी मेरे दोस्त ने मेरा हाथ दबाया ! मेने चौंक कर उसे देखा तो उसने अंधेरे मे मुझे इशारा किया - -,
सामने क़ी सीट क़ी गर्दन फिर  मुड़ी  हुई थी !लकिन जब तक मे उसे देखता वह फिर सीधी हो गई !
फिल्म का समय जल्दी ही ख़तम हो गया ' दी एंड ' के पहले ही  अपने अपने परिवारके साथ आये सभ्य लोग उठ कर दरवाजे क़ी ओर बढ़ लिए !जल्दी ही दरवाजे पर भीड़ जमा हो गयी !इस धक्कामुक्की में हम लोग पीछे हो गए !
  मैं धक्का खाते हुए दरवाजे से  जल्दी बाहर निकलने क़ी कोशिश करने लगा - ताकि बाहर निकल कर उस सुंदर कन्या को पूरी तरह ठीक से देख तो  सकूँ !
लकिन ऐसा नही हुआ !

  भीड़ ने मुझे बहुत पीछे  धकेल दिया था  !

-ज्यों त्यों बाहर आकर ,  मित्र का हाथ पकड़ कर मे जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ उतरने को हुआ तो देखा  कि वह कन्या पूरी सीढ़िया उतर कर मुझ से काफ़ी आगे निकल गई है !
 भीड़ मे जगह बना कर मैं  तेज़ी से नीचे उतरा ! लकिन तब तक वह कन्या बाहर लान मे पहुँच गई - और एक लेंब्रेटा स्कूटर पर उचक कर बैठ गई !
मुझे  कुछ  दिखा नही तो मेने उस लेंब्रेटा का नंबर नोट कर लिया !
 नंबर प्लेट यद्यपि बरसात मे पानी खाकर धुंधली  हो गई थी , फिर भी मेने उसका नंबर हथेली पर लिख लिया
- एल ओ वी 22 16... !
  मुझे तसल्ली हुई ,,,कम से कम अब मुझे उस कन्या के बारे मे एक सूत्र मिल गया था ,,,,लॅंब्रेटा का नंबर..!
तभी मेरा दोस्त आ गया !  बोला --
- " क्या हुआ यार !! तुमने उसे देखा..?"
-" नही यार !! नही देख पाया ! लकिन वह लंबी , छहररे बदन क़ी सुंदर लड़की है !! बाकी उसकी अदाएं तो देख ही चुका हूँ !"
दोस्त फिर मुस्कराया , बोला- "मेने काफ़ी कुछ  देख लिया  - यार! वो  मेरी भाभी बनने लायक है !"

" भाभी ??" - मैं  चौंका !

- " हाँ भाभी !! यानी तुम्हारी पत्नी !" -- अब दोस्त भी शरारत से मुस्कराने लगा !

मेरी बची खुची बुद्धि भी ख़तम हो गई !!,,,,मेने कहा -
" लकिन मे तो उसे  जानता  ही नही "
दोस्त बोला -" अब हम उसे जान लेंगे ! लेंब्रेटा का नंबर है  न हमारे पास !"
मेने गिरते पड़ते अपनी मोटर साइकिल क़ी ओर कदम बढ़ाए !! दोस्त को घर ड्राप  कर  के मैं  जब अपने घर पहुँचा  तो देर रात तक पहले तो नींद नही आई,!

और जब आई तो स्वप्न मे मुझे कई लेंब्रेटा दिखे !
   

*********                                     
                                       ..............
दूसरे दिन मेरे प्यारे दोस्त क़ी मेहरबानी से , यह खबर बिजली क़ी तरह मेरेअन्य  दोस्तों के बीच फैल गई !

किसी को विश्वाश ही नही हुआ , कि में प्यार भी  कर सकता हूँ - अथवा  मुझे प्यार हुआ  होगा ! क्योंकि प्यार के प्रयोगात्मक कार्य मेने कभी किये ही  नही  थे !

  जबकि मेरे मित्रों मे सभी तरह  लोग थे !

सिविल कांट्रेक्टर, लेखक, इंजीनियर, प्रोफ़ेसर, गीतकार , संगीतकार वग़ैरह वग़ैरह..,!

मुझ से मिलने पर वे सब  पूछने लगे -

" मिला लेंब्रेटा का पता ..?"
  लेकिन  में क्या जबाब देता ..??

मेरे एक मित्र जो इरिगेशन विभाग मे इंजीनियर थे , प्यार मे बहुत एक्सपर्ट थे ! उन्होने कई बार प्यार किया था !और प्यार के सभी लटकों झटकों से परिचित थे!उनके लिए प्यार तो जैसे कबड्डी थी !
एक और मित्र जो साउथ इंडियन थे , उन्होने प्यार करके एक बंगाली लड़की को अपनी पत्नी बनाया था , अपनी पत्नी के अलावा वे  मुझे  भी बहुत चाहते थे !उन्हें मुझ पर बहुत तरस आता था की मैं इस मामले में कितना नादाँ हूँ !!
एक तीसरे मित्र एक कालेज के  प्रोफ़ेसर थे !उन्होने एक डिप्टी कलेक्टर की बेटी के प्यार मे डूबकर , घर से भागकर आर्य समाज मंदिर मे विवाह किया था ! फिर वे एक महीने गायब रहे थे ,,क्योंकि उनके भावी ससुर ने पुलिस पीछे लगा दी थी ! बाद में बेटी ने ही मामला सुलटाया !
ये सब मुझे प्यार से ग्रसित  मानकर , मेरी मुफ़्त सेवा के लिए तत्पर हो गए !

 और दुसरे दिन ही  ग्रुप बना कर , सब लोग एक साथ मेरे घर आ धमके !
बोले -

" हम आज ही से शुरू करेंगे अभियान..!"

"कैसा अभियान ? "- मैंने  सकपका कर पूछा !

मेरे अभिन्न मित्र ने , जो टाकीज़ मे मेरे साथ था ,  मुस्कराकर  कहा -
" देवी सीता को  ढूंढने  का अभियान "

सभी लोग एक बार ज़ोर से हँसे !फिर मेरी ओर शरारत भरी निगाह उठा कर बोले-
" अपनी भाभी को तलाशने का अभियान !"

 लेकिन मैं  न हंस सका , न गंभीर हो सका!
 और उधर  ,,दिल था की मान ही नही रहा था कि वह लड़की मुझे नही चाहती होगी,
  ,,, उसका टाकीज़ मे मुड़कर देखना और मुसकराना मुझे बार बार याद आ जाता था !
  फिर भी अपने मन को दबाकर मैं  मौन ही रहा !-क्योंकि एक " भाभी " 'शब्द मेरे दिल मे गुदगुदी करने लगा था !

मेने कहा-

" लकिन कैसे ? में तो उसे जानता ही नही, कभी भी पहले उसे नही देखा ! सिर्फ़ एक स्कूटर का नंबर  है मेरे पास !"

वे  हँसते हुए बोले -- -
" वही तो है जादुई चाबी !, अब देखो हम क्या करते है!"

मेरे इंजीनियर मित्र अपने साथ एक परिचित' मेकेनेक ' को लाए थे !

उन्होने उसे नंबर देते हुए कहा-

" शहर के  हर मेकेनेक की  दुकान को छान मारो  !यह स्कूटर कहाँ सुधरता है , शाम तक पता लगा कर बताओ 

 !"
मेकेनेक ने नंबर को कई बार देखा- पढ़ा, शारलक होम्स कि तरह उसकी चतुर आँखे फैली और सिकुड़ी, लकिन उन मे चमक नही आई !

सब लोग समझ गए , वह इस नंबर के बारे में ज़्यादा कुछ नही जानता !

वह बोला -

"में राजदूत मोटर साइकिल बनाता हूँ ! लेंब्रेटा स्कूटर आजकल बहुत कम रह गए हैं - फिर भी में दो घंटे मे आकर आपको बताता हूँ !"

जब वह मुड़कर वापिस चला गया तो दोस्तो क़ी चौकड़ी फिर सक्रिय हुई !

प्रोफ़ेसर मित्र , जो इंग्लिश लिट्रेचर के प्रोफ़ेसर थे, ने पूछा -
कुछ अंदाज़ करो , वह कन्या तुम्हारे किस गुण से प्रभावित हुई होगी ?- जैसे कविता से, या गायन से या...,या तुम्हारे इस जीनियस रूप से ?..

मुझे अपने अपने ढेर सारे गुणों से चिढ़ होने लगी ! पता नही उसे क्या अच्च्छा लगा होगा ?

मुझ से तो अच्छे मेरे ये मित्र गण थे जिनके पास सिर्फ़ एक ही गुण था - ' लड़की को मोहित करने का गुण !'

मोहित करने के लिए प्रोफ़ेसर मित्र ने रोमांटिक नॉविलों का सहारा लिया था !
 साउथ इंडियन  मित्र  ने जोक्स का !
    और  इंजीनियर मित्र ने सुहाने गीतों के केसेट देकर लड़की का दिल जीता था !

सभी एक ही गुण के धनी थे !

 लड़की पटाने के ,,,!!

में ने कहा- " में क्या जानू वह मेरे किस गुण को चाहती है ?"

 साउथ इंडियन मित्र की   बंगाली पत्नी भी साथ आई थी !वह बोली -
-

"बाबा ! क्या तुम रोमांटिक कविता लिखते हो ?"

मेने कहा- " नही"

तो फिर रोमांटिक गाने ज़ोर ज़ोर से गाते हो ?

मेने कहा -
" नही भाभी ! मुझे जो अच्छा लगता है , उसे ही मैं गाता बजाता ,- लिखता पढ़ता हूँ ! मैं   तो कलाकार हूँ ,,  सिर्फ कला से  रोमांस करता हूँ !"

-"लड़की को लड़के कि कौन सी चीज़ अच्छी लग जाए ,ये तुम लोग नही जान सकते ! बासु  ने तो मुझे एक बार अपने हाथों से खाना बना कर खिलाया ,  और  मैं  इन पर मर मिटी ! क्या शानदार मच्हली बनाता है बासु  !"
सब हंस पड़े !

 लेकिन मैं चिंतित हो उठा ,,,घबराने लगा !
 ना जाने किस बात पर रींझ कर वह कन्या मुझसे प्यार कर रही होगी  ! जिस गुण  को वह मुझमें सोच रही होगी और वह उसे नहीं मिला तो आगे क्या होगा ,,? - बहुत ही भयानक बात थी !लड़कियां धोखा खाने पर भी  बहुत खतरनाक सिद्ध होतीं हैं ,,यह मैंने कुछ उपन्यासों में  पढ़ रखा था !  ,,  मैं सोच ही रहा था 
कि  तभी वह मेकेनेक विजेता कि तरह लौट कर वापिसलौट  आया!,,,आते ही बोला -

-"भाई जी ! वह स्कूटर" डी एफ ओ द्विवेदी 'का है ! बहुत बिगड़ता है, बार बार राजू मेकेनेक के गेरेज़ मे जाता है ! कई बार तो पार्ट न मिलने कारण हफ़्तों वहीं खड़ा रहता है  !"

" होय " -- सभी ने ज़ोर से एक हुंकार भरी !

" द्विवेदी डी.एफ.ओ. को  मैं  जानता हूँ !"- इंजीनियर मित्र ने कहा- " वो सिविल लाइन मे मेरे क्वाटर के आगे तीसरी लाइन मे रहते है!"

--'तीसरी लाइन'?,,,,   मैनें  सोचा - यह तीसरी लाइन टाकीज़ मे भी थी और अब फिर सामने  आ रही है ! अजीब संयोग है !

- " तो फिर पहला प्रयोग !!', आज मेरे घर मे संगीत सभा होगी, जिसमे द्विवेदी को सपरिवार बुलाया जाएगा ! सौरभ का  गिटार बजेगा!

'और अगर द्विवेदी नही आए , या वह कन्या को साथ नही लाए तो ?'

प्रोफ़ेसर दोस्त ने आशंका ब्यक्त की !

-"तो फिर हम अपने क्वाटर के उपर  लाउडस्पीकर लगाएँगे ! उसका मुँह' भाभी ' के घर कि तरफ करेंगे , ताकि प्यार कि धुनें सुन कर वह बाहर आए !"

" होय " - सभी ने समवेत स्वर मे फिर जोरदार हुंकार भरी1

में सोचने लगा - ये लोग क्या कर रहे है - !

तभी बासु  बोला -

-"अगले दिन अगला प्रयोग होगा !  मैं  कन्या के घर के ठीक सामने इस आशिक को अपने स्कूटर से हल्की टक्कर मारूँगा !ये गिर कर बेहोश होने की एक्टिंग करे - हम इसे उठाकर लड़की के घर मे ले जाएँगे - फ़र्स्ट मेडिकल हेल्प के लिए !,,,, वहाँ दोनो एक दूसरे को जी भर कर देख लेंगे !"

यह पूरी तरह फिल्मी सीक़वेंस थी ! मुझ मे अन्य गुण तो थे - लकिन मेने कभी एक्टिंग नही की थी !जो कुछ मेरे पास था ,, ओरिजनल ही था !

मेने कहा - " यह मैं  नही कर पाउगा !"

प्रोफ़ेसर ने कहा - " यह बिजली का इंजीनियर है !मीटर चेक करने के लिए वहाँ जाए !वह लड़की इसे बैठाल  कर चाय पिलाएगी और ढेर सारी मीठी मीठी बाते करेगी !"


  इस बार  "होय "- की  सबसे उँच्ची हुंकार उठी !

मेकेनेक बोला - " भाई जी ! आप अपना संदेश मुझे टेप करके देदे मे उसे दे आउग! !"

यह रिस्क थी ! टेप अगर ग़लत हाथो मे पड़ गया तो फ़ज़ीहत है !

   मैंने  कहा - " पहला प्रयोग ठीक है !  मैं  आज इंजीनियर मित्र के घर मे गिटार बजाउँगा !इससे कुछ हुआ तो ठीक  वरना मैं यह घटना भूल जाऊंगा !"
-

-'होय " - सबने फिर हर्ष मिश्रित हुंकार भरी !

   नतीज़न रात को महफ़िल सजी !

   लेकिन डी एफ ओ ने सभा मे आने से इनकार कर दिया !!

उस रात को एक लाउडस्पीकर लाया गया !, उसका मुँह कन्या के घर की तरफ किया गया !  एम्प्लीफायर  का  फुल  वोल्यूम खोला गया !

मेने गिटार पर  गीत बजाने  शुरू किए ! मेरा प्रिय गीत था - ' चंदा मामा दूर के '! उसे सुन कर दोस्तों ने मुंह बिचकाया बोले - "यह ठीक नही" !

मेने दूसरे  पुराने गीत,, शुरू किए - 'ये जिंदगी उसी की है ' , 'आजारे अब मेरा दिल पुकारा ', 'जाग दर्द इश्क जाग ,'

लकिन मेरे दोस्त झल्ला उठे !


- " ये क्या मर्सिया गा रहे हो भाई   ?? रोमांटिक गीत बजाओ  ,,!!"
   जैसे मेरे सपनों की रानी कब आएगी तूँ.... या रूप तेरा मस्ताना ,,,  !"

 लेकिन ,,नये गीतों की मेरी प्रेक्टिस नही थी , मेरी  पसंद के गीत तो पुराने मेलोडियस गीत ही थे ! ,,,फिर भी दोस्तों के कहने पर नए गीत बजाने की कोशिश करने लगा !

गीतों की प्रेक्टिस न होने के कारण गिटार बेसुरा बजने लगा !

थोड़ी देर मे , बगल मे रहने वाले , घर द्वार वाले बंगाली  मोशाय  आ गए !
बोले - " अब बंद कीजिए यह संगीत ! 'रात '' खराब' हो रही है ! सोने दीजिए हमें !"

मेरे मित्र उनसे उलझने लगे !
' हमारा घर है '-हमारा मन है ', हम जो चाहें सो करें ', वगेरह वगैरह  !

तभी मुहल्ले के बहुत से और विवाहित अन्य  सभ्य ब्यक्ति आ गए !

  वे कहने लगे की आप  लोग बेवजह शोर मचा रहे हैं ,,हमारी नींद खराब हो रही है ,,हम डिस्टर्ब हो रहे हैं ,,!
युद्ध का वातावरण बनते देख मेने गिटार बंद कर दिया !

प्रयोग की वह रात निराशा भरी रही ! उसके बाद दो तीन दिन तक सभी मित्र अपने अपने कामों में उलझे रहे , अतः कोई किसी से नही मिल पाया !

हाँ ,  मैं  ज़रूर उस डी एफ ओ के क्वार्टर के सामने से एक  बार गुज़रा लकिन मुझे वह चेहरा दोबारा  नही दिखा !

  बल्कि ,,मुझे उस क्वार्टर के माली ने घूमते देख कर टोका -

" राह भटक गये हो क्या साहब ?"
  मैनें  शरमा कर कहा - " कुछ ऐसा ही है !"

चौथे दिन हम सब दोस्त फिर इंजीनियर मित्र के घर एकत्रित हुए !
सभी लोग मुझे कन्या से मिलवाने के उपायों पर चर्चा करने लगे !

तभी पड़ोसी बंगाली महोदय तूफान की तरह ड्राइंग रूम मे घुसे !घुसते ही बोले -

- " क्यों दत्ता ,,, ! कुछ सुना तुमने ?? "

मेरे मित्र ने पूछा -
" क्या हुआ ? "

बंगाली महाशय - बोले

-" वो डिप्टी कलेक्टर नारंग  मल्होत्रा  का बाइस साल का जवान लड़का , फाँसी लगा कर मर गया !"

" डिप्टी कलेक्टेर नारंग का लड़का ??,,,यु मीन ,,'नीरज ' ?" ,,,,वह दुबला सा काला क़ाला ,,बदशक्ल लड़का,,,' नीरज' ?"

"हाँ ! वही  नीरज , !,,,,,, पुलिस आई है !,,,,"  जानते हो तलाशी लेने मे क्या मिला ??"

-"क्या मिला ?"

- "ढेर सारे प्रेम पत्र ! " - बंगाली महाशय थोड़े ब्यांगात्मक लहजे मे बोले !

-"प्रेम पत्र ?? - किसके प्रेम पत्र ?"

-" और किसके प्रेम पत्र ! ! - उसके क्वार्टेर के सामने रहने वाले डी.एफ.ओ.द्विवेदी  की लड़की के हाथ के लिखे प्रेम पत्र !"

हम सब अवाक रह गये !

मुझे तो जैसे साँप ही सूंघ गया !

हमारे चेहरे पढ़ते हुए बंगाली महाशय बोले -

"- वो लोग प्यार करता था छुप छुप कर ! उधर चार दिन पहले , फिल्म देखने भी गया था दोनों !लड़की अपने पिता के साथ गई थी , नीरज अकेला गया था ! लड़के में कोई  गुण  नहीं थे ,, ं एक  नंबर का आवारा ,, पढ़ाई में कई बार फेल हो चुका था , डी एफ ओ  द्विवेदी तो उससे बहुत चिढ़ता था !- उस दिन मैं  भी गया था फिल्म देखने ! मेने उन दोनो को प्यार भरे इशारे करते भी देखा था !- लड़की का पिता भी  वो इशारे भाँप गया था ! "

हम सब बंगाली महोदय का मुँह तकने लगे !

बंगाली मोशाय - मेरी ओर मूड कर बोले -
"अरे  ओ सोरभ !" तुम भी तो था,,, उस दिन टाकीज़ मे यार ! नीरज ठीक तुम्हारे पीछे वाली सीट पर ही तो बैठा था !-बिल्कुल ठीक  तुम्हारे पीछे !- वही नीरज ,,,,!!,,,आज मर गया !"

मेरे कान सनसनाने लगे ! मुझे कुछ भी सुनाई देना  बंद हो गया !
बंगाली मोशाय शायद आगे कह रहे थे -

" ' सिलि लोग !' ज़रा सी बात पर आज कल ये लड़के जान दे देते है !उसकी चिट्ठी शायद डी एफ ओ ने पकड़ ली थी ! दूसरे दिन ही लड़की को ननिहाल भेज दिया , और लड़के के बाप से लड़के की शिकायत कर दी  ! साला लड़का इतनी सी बात पर फाँसी लगा लिया !"

इतना कह कर बंगाली मोशाय आँधी की तरह वहाँ से बाहर निकल गए !दूसरे घरों मे यही खबर देने !

उसके जाने के बाद में सकपकाया हुआ थोड़ी देर बैठा रह गया !

में समझ गया - ' उस दिन वह कन्या लगातार मुड मुड कर मेरे पीछे बैठे नीरज को देख रही थी !दोनो के बीच नज़रों के तीर , ठीक मेरे सिर के उपर हो करही  चल रहे थे !'

      और ,, मैं ,,?? ,,  मैं उस दिन ,, बीच मे  एक ,बैडमिंटन कोर्ट के   
, 'नैट'   'की तरह था !जिसे छू कर नज़रो की शटल , इस कोर्ट से उस कोर्ट मे जा रही थी ! यानी द्विवेदी की सुन्दर लड़की के कोर्ट से नीरज के कोर्ट में ,,!

  ,,,, बेचारा ,,,' नैट ,,,' बीच मे बेवज़ह ही झूल गया था  !

 तभी बाहर कोई रेडियो बजने लगा !,,,,गीत था - 

,,,,,' मारे गए गुलफाम अजी हाँ मारे गए ..गुलफाम ..,!"
  मैं सोचने लगा ----
गुलफाम कौन था ..???

' मैं  या नीरज या कोई और ???',

 यह पहेली सुलझाने की मैं   बेकार कोशिश करने लगा !

लेकिन मेरा दिल भी तभी  बार बार यह सवाल करने लगा
मुझे उस समय क्या हुआ था ??


    .. प्यार ,,,या प्यार का अहसास ,,???
  और ,,,,,
'   क्या ,, मैनें  प्यार किया था या मुझे प्यार हुआ था ?'.


उसके बाद भी ,,,
बहुत दिनों तक मैं जूझता रहा -
  लेकिन प्यार की यह  गुत्थी  सुलझा  नहीं सका !
   चूँकि मैं  बहुत सोचने के बाद भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा ,,,तब भी नहीं और तब के बाद  अभी तक भी ,,,कभी नहीं ,, ,,,इसलिए ,,,, मेने प्यार के उस वाकये को फिर से कबाड़ की तरह पिटारे मे ठूंस दिया !

   
,,,,,,,शायद प्यार के जानकार, प्यार के  विशेषज्ञ  मुझे कभी  कुछ बता सकें !,,,यह प्रतीक्षा अभी भी है ,,!!



   --' सभाजीत 
         
     चेतावनी  :-  ( यह एक कहानी है , इसे आत्म कथा समझने की भूल ना करें !)

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