मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

" लाइफ आफ्टर डैथ "



( मरणोपरांत जीवन )



'लाइफ आफ्टर डैथ ' एक रहष्यमय विषय है वर्षों से लोगों के लिए एक कोतुहल रह़ा है कि , मृत्यु के बाद क्या होता है ? हम कहाँ जाते है , क्या करते है , और क्या मृत्यु के बाद भी कोई जीवन है ?



इस विषय पर पश्चिमी समाज में कई तर्क , कथाएँ प्रचिलित है रहस्यवादी शोधकर्ताओं ने ऐसे कई लोगों के इंटरव्यू लिए - जो कुछ समय के लिए मृत घोषित किये जा चुके थे करीब करीब सभी तथाकथित मृतकों का अनुभव एक जैसा ही सामने आया -एक लम्बी सुरंग की यात्रा , एक प्रकाश पुंज से साक्षात्कार , और फिर लाख टके का एक प्रश्न - " क्या तुमने अपने सभी काम पूर्ण कर लिए है - क्या तुम संतुष्ट हो ?" उत्तर अगर 'हाँ ' में हुआ तो निश्चित मृत्यु और अगर ' ना ' में हुआ तो पृथ्वी पर वापसी



भारत में हिन्दू धर्म में एक पूरा पुराण ही " लाइफ आफ्टर डैथ " के लिए लिख दिया गया है । प्रत्येक घर में - " गरुण " पुराण के रूप में , किसी मृत्यु के वाद इसका वाचन किया जाता है । पंडितों के अनुसार , पुनर्जन्म से बचने के लिए ' मोक्ष ' की कल्पना की गई है -और मोक्ष पाने के लए विधि -विधानों की । किसी मृत्यु के बाद यदि मृतक का कर्म नहीं हुआ , पिंड दान नहीं हुआ , 'प्रयाग' - 'गया' जाकर श्राद्ध नहीं किया गया , ब्राम्हणों को भर पेट भोजन नहीं दिया गया , तो मृतक मृयु क्र पश्चात भी इसी लोक में रहेगा -" भूत योनी " में । मरणोपरांत कोई भी नहीं चाहता की उसके परिजन भूत योनी का जीवन जियें , इसलिए सभी , अपनी हेसियत से बढ़ चढ़ कर इन कर्म कांडों को करते है ।





आर्य समाज के प्रवर्तक , स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक - " सत्यार्थ प्रकाश " इस विषय पर व्यापक चर्चा की है - जो सनातनी धर्मावलम्बियों को मंजूर नहीं है । मेरी पत्नीk घोर सनातनी है - वह इश्वर के कई स्वरूपों में विश्वास करती है - हर देवालय में माथा टेकती है - वर्ष के प्रत्येक तीज त्यौहार - बिना भूले चूके- कलेंडर देख कर मुहूर्त के अनुसार मनाती है । दिन भर वृत रहकर , शाम को विशेष व्यंजन -" फलाहारी " बना कर खाती है , जिसे खाने में मेरी भी रूचि रहती है । विवाह बेदी पार सात फेरे लेते समय मेने कुछ कसमें खाई थी जिनमें धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने की एक कसम भी शामिल थी । यह कसम गाहे बगाहे में पूरी करता रहता हूँ - उनके साथ - " कथा कीर्तन , धर्म व्याख्यानों में भाग लेकर ।
लिहाजा एक धार्मिक व्याख्यान माला में उनके साथ में भी गया । आयोजकों ने विशाल मंडप तैयार किया था । मंच फूलों से सजा था । स्त्री और पुरुष वर्गों के अलग अलग बैठने की व्यवस्था थी - ताकि धर्म के बीच स्त्री पुरुषों के बीच का प्रेम सिर ना उठा ले । मंच पर व्यास गद्दी थी और व्यास गद्दी पर , क्लीन शेव्ड , रेशमी भगवा वस्त्र धारी ,ललाट पर त्रिपुंड लगाए, गले में रुद्राक्ष धारण किये , उँगलियों में कई करामाती पथ्थरों की अंगूठियाँ पहने , गोर वरनी पुरुष विराज मान था । मंच के बाएँ और आर्केस्ट्रा था , जिसमें बांसुरी प्रमुख थी । ' संगीत, प्रकाश , और दवानी का अद्भुत करिश्मा व्याख्यान में घुल मिल गया , जिसे सुन कर सभी रस विभोर हो गए ।
कथा सुन कर जब वापिस घर आया तो मन बोझिल हो उठा मेने सोचा - मेने तो कुछ भी नहीं किया है - इह लोक और परलोक सुधारने के लिए मृत्यु के बाद चौरासी लाख योनियाँ मुंह बाए मेरा इंतज़ार कर रही है " कूकर - शूकर , जलचर- नभचर , कीट- पतंग , सभी तो बनना पडेगा फिर इन जन्मों के बीच एक टाइम स्लाट और भोगना पडेगा - " भूत - योनी " का - पीपल पर लटक कर , इस बात का इंतज़ार करना होगा की कब मेरे पुत्र गया जाकर मुझे मोक्ष दिलाएं मुझे अपने पुत्रों पर विश्वास नहीं है वे बहुत ही आलसी और काम टालू प्रवत्ति के है
भरी मन से चुपचाप आँखें बंद कर के मैं लेट गया सोया ही था की अचानक एक बजे मेरी नींद खुल गयी घबरा कर उठ बैठा तो देखा कि एक व्यक्ति मेरे पलंग के पास , कुर्सी पर बैठा मुझे ताक रहा है मेरी पूरी तंद्रा भंग हो गयी उस आदमी को अपने शयन कक्ष में पाकर , मेने डरते हुए पूछा -
" भाई साहब !! आप कौन है और मेरे शयन कक्ष में इतनी रात में कैसे घुस आये ? "
जबाब में वह मुस्कराने लगा
मेने सोचा - जरुर ही यह चोर है पूरी गेंग होगी इसके बाकी साथी मेरे परिवार के अन्य कमरों में माल असबाब कि तलाशी कर रहे होंगे और यह मेरे ऊपर पहरेदारी करने के लिए बैठाया गया होगा मेने हिम्मत बाँध कर फिर पूछा -
" भैया !! कृपया मेरे सवाल का जबाब दें आप अन्दर मेरे कमरे में कैसे प्रवेश किये ?"
वह व्यक्ति गंभीर हो उठा मुझे ताकने लगा फिर धीरे से गहन आवाज़ में बोला -
" हम कहीं भी -जा सकते है हमारे ऊपर कोई बंधन नहीं है "
" भला कैसे ? बिना मेरी परमिशन के आप मेरे निजी शयन कक्ष में कैसे कर बैठ सकते है यह क़ानून विरुध्ध है "
उसने फिर मुझे ताका और ठंडी आवाज़ में बोला-
" क्यौकि हम 'हवा ' है हम 'मरे' हुए व्यक्ति है "
" मरे हुए ?? - यानी भूत ?? " - में सिहर उठा तो पुराण सही कहते है प्रमाण स्वरूप एक भूत मेरे कमरे में उपस्थित था मेने पूछा-
" भूत ?? तो आप भूत है ? "
जबाब में वह चुपचाप मेरी और एक टक देखता रहा फिर बोला -
" भूत तो जो व्यतीत हो गया वह 'समय' है , हम भूत नहीं "
"नहीं ? तो फिर क्या है ?"
" आत्मा !! सिर्फ आत्मा !! इश्वर का एक अविनाशी अंग !!"
" क्या आपका मोक्ष नहीं हुआ ?"क्या आपके पुत्रों ने आपका तर्पण , मोक्ष नहीं करवाया ? "
इस बार वह थोड़ा मुस्कराया फिर बोला -
" हमें मोक्ष कि आकांक्षा नहीं "
" मोक्ष की आकाक्षा नहीं - भला क्यों ? "
" क्योंकि हम मरणोपरांत जीवन जीने में विश्वाश करते है , हम मरणोपरांत जीवन जीने वाले लोग है "
" अजीब बात है !! आप जीवित रहते हुए भोग विलास से तृप्त नहीं हुए , जो मृत्यु उपरान्त भी जीवन चाहते है ? "
" भोग-विलास तो शरीर करता है आत्मा नहीं "
" यदि भोग - विलास नहीं चाहिए तो आप जीवन क्यों चाहते है ? "
" इसलिए की हम जीवित रहेंगे तो समाज भी जीवित रहेगा "
कैसी अजीब आत्मा है - मेने सोचा धर्म व्याख्यानों में तो मृतक के नाम पर कई कर्म कांडों और अच्छे भोजन की बात कही जाती है मृतक का दायित्व परिजनों तक सीमित रहता है और यह है कि मरने के बाद भी ' समाज ' के लिए बात किये जा रहा है मेने सोचा- बड़े काम की आत्मा है क्यों ना इससे मृत्यु उपरान्त जीवन का रहस्य पूछ लू। मेने पूछा -
" महोदय !! क्या मृत्यु उपरान्त भी जीवन होता है ? "
" जरुर !!- हम तो उसे जी ही रहें है "
" " क्या आप स्वेक्षा से उसे जी रहे है ? "
वह थोड़ी देर खामोश रहा फिर उदास भाव से बोला -
" आप उसे स्वेक्षा या मज़बूरी कुछ भी कह सकते है "
" यदि मज़बूरी हो तो वह क्या हो सकती है ? " - मेने अब उससे चुटकी लेना शुरू कर दिया ।
"मृत्यु के उपरान्त भी हमारे ' नाम ' अभी संसार में जीवित है , लोग हमें याद रखे है । जब तक नाम जीवित है हम मर ही नहीं सकते ।
मृत्यु उपरान्त जीवन के रहस्य की कुछ परतें मेरे समक्ष खुलने लगी । मेरी दिलचस्पी बढ़ गयी ।
" महोदय !! क्या में आपका वह नाम जान सकता हूँ जिसके कारण आप अभी भी संसार में विद्यमान है ? "
" नाम ?? कुछ भी कह सकते हो हमें क्योंकि हम नाम से ज्यादा , अपने काम के कारण जीवित है यह बात और है की यह पार्थिव दुनिया हमें अब सिर्फ नाम से ही जानती है ।" " मान लो की मैं 'शेलेन्द्र ' हूँ ! गीतकार शैलेन्द्र ! मेने कई गीत लिखे , लोग अभी भी गुनगुनाते है । मुझे याद करते है । इसलिए मेरा नाम मर नहीं रहा है । "
यह एक कड़वा सत्य था । शैलेन्द्र के गीत अमर थे । उन्होंने फ़िल्मी गीतों में साहित्यिक उपमाओं का सहज प्रयोग किया था । पहले एच , एम् वी, वालों ने अपने व्यवसाय हित में रिकार्ड बना कर , उन्हें बेच कर , गीतकार का नाम जीवित बनाए रखा , अब वे ही गीत यु ट्यूब पर फिर से चहक रहे थे । लोग भी उन गीतों को अभी भी गा रहे थे , भूल ही नहीं पा रहे थे ।
" आप से यह पाप कैसे हो गया महानुभाव ? लोग तो आज कुछ भी उलटा सीधा लिख देते है । धड़ल्ले से बिक जाता है - लोगों को यह याद भी नहीं रहता की गीतकार कौन है उसका नाम क्या है । "
" हम तो आदतन अच्छा लिखते रहे , चाहते तो भी सस्ता नहीं लिख सकते थे । फिर एसा पाप करने वाले तो बहुत लोग है । "
" यानी बहुत सी आत्माएं है जो अभी भी जीवित है ? "
" हाँ !! मिलना चाहोगे और लोगों से ? "
" लेखकों में भी हैं कोई ?"
" सभी वर्गों में है । जो मृत्यु उपरान्त जीवन जी रहे है , लेखकों में बहुत है । किससे बात करना चाहोगे ?- " शरत चन्द्र जी से करोगे ? '
" शरत चन्द्र ?? ' यानि बंगाल के प्रसिध्ध लेखक - । " क्या वे भी मरणोपरांत जीवित होंगे ? "
" क्यों ना होंगे ? उनका भी तो समाज से सरोकार रहा । सभी रचनाएं मर्मस्पर्शी , सभी कथाएं समाज के लिए । "
" एक बात बताएं "- मेने हिचकिचाते हुए पूछा - ' मरणोपरांत आप कहाँ निवास कर रहे है ? क्या पीपल पर - जैसा की पुरानो में कहा गया है ? "
" पीपल पर ??- " वह हंसा - " हम भला वहां क्यों निवास करेंगे ?? हम तो विभिन्न कई जगहों पर बस रहे है ."
" जैसे ?? "
" जैसे में गीतों में , शरत चन्द्र साहित्य में , गांधी भारतीय मानस में , विवेकानंद ज्ञान में , मुकेश गायकों में , राज कपूर अभिनय में ....."
" लम्बी फेहरिस्त है । मेने मन में सोचा । लकिन फिर एक प्रश्न मन में उठा -ये आज मुझसे मिलने मेरे शयन कक्ष में क्यों आये इन्हें मुझसे क्या सरोकार है ? प्रकट में पूछा -
" में बहुत कुछ जान गया हूँ । किन्तु एक बात नहीं समझ पाया । "
" क्या ? "
" यही की आप आज यहाँ मेरे शयन कक्ष में कैसे आये ? "
वे गंभीर हो गए । फिर धीरे से बोले -
" कुछ नहीं सिर्फ तुमसे मुलाक़ात करनी थी । "
" मुलाक़ात !! मुझसे ?? भला क्यों ? "
" क्योंकि देर सबेर तुम भी हमारे साथी बनोगे । हमारे साथ रहोगे । "
" आपके साथ क्यों ? मुझे मोक्ष नहीं मिलेगा क्या ? "
" मोक्ष तो होता ही नहीं । "
" मोक्ष नहीं होता ? पुराण , पंडित , कर्मकांडी कह रहे है की मोक्ष होता है ।"
" वे अपनी क्षुधा से मोक्ष पाने के लिए यह व्यवस्था बनाएं है , वरना मोक्ष तो होता नहीं । "
" तो क्या सभी जीवों को मृत्यु के पश्चात इस योनी , यानि आत्मा योनी में विचरना पड़ता है ? "
" नहीं "
" नहीं ?? " - " तो फिर हम आप ही क्यों विचरेंगे इस योनी में ? '
" क्योंकि हमें समाज की चिंता है ।"
" और जो समाज की चिंता नहीं करते ?'
" उनके लिए " चौरासी लाख योनी " का क्रम है ही । ' कीट-पतंग', शूकर - कूकर, जलचर- नभचर , ...."
में पेशोपेश में पड़ गया । मेने सोचा , इन्ही से पूछ लूँ , की मैं क्या करूँ ।
" मुझे बतलाएं की मैं क्या करूँ ? "
" यदि कीट- पतंग , शूकर कूकर बनना पसंद हो तो वही करो , जैसा दुनिया कहती है - " हल्का- फुल्का , मनोरंजक , विषयों पर विचार विनमय करो , लिखो । चौरासी लाख योनियों की यात्रा करो , भोग करो , जनन करो , बार बार मरो । "
" और यदि कीट पतंग नहीं बनना हो तो ? "
" तो अपना नाम जीवित रखो । मरणोपरांत जब तक तुम्हारा नाम जीवित रहेगा तुम भी रहोगे - हमारी तरह समाज के लिए साहित्य में समाये रहोगे सदा के लिए । "
एक और कुवां था तो दूसरी और खाई । कुँए से तो बाहर निकला जा सकता था , किसी प्यासे के द्वारा लटकाए गए घट को पकड़ कर बाहर आया जा सकता है , लकिन खाई से ? वह तो निगल ही जायेगी । मेने देखा वह व्यक्ति धीरे धीरे धुवां हो रहा था । मेने उससे कहा -
" एक आखरी बात ! मरणोपरांत जीवन का क्या यही अर्थ है । "
" हाँ , बिलकुल यही !! और कुछ भी नहीं । " - उसने ओझल होते हुए कहा ।
में बड बढाने लगा - में ' आत्मा योनी में रह लूंगा किन्तु लिखूंगा तो सिर्फ सामाजिक सरोकार के लिए । में किसी भी हालत में कीट पतंग नहीं बनना चाहूँगा ।"
तभी किसी ने मुझे झाझ्कोरना शुरू किया । उठ कर देखा तो पाया की पत्नी मुझे उठा रही है - " क्या बडबडा रहे हो ? उठो दिन निकल आया है - आज आवला नवमी है पंडित जी ने बत्ताया है की आज के दिन मुहूर्त पर पूजा करने पर सीधे मोक्ष मिलता है , मुझे मंदिर जाना है , चलो कार ड्राइव करो ।"
__________ सभाजीत शर्मा ' सौरभ'

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