सिंहासन बत्तीसी
एक नाटक
लेखक - सभाजीत
* भाग दो *
(..मंच पर प्रक्काश तीव्र होता है ! )
(..राज़ा का दरबार ,,,कुर्सी पर बैठा व्यक्ति कुर्सी को दोनों हाथों से कस कर पकडे है ! ) कुर्सी के पीछे पुतला और दायें बाएं अन्य चारों पात्र खड़े हैं ...))
( अचानक बादलों की गडगडाहट ,,,विभिन्न आवाजें .., विभिन्न प्रकाश।।)
( कुर्सी पर बैठा राजा ) > " कौन है ..? कौन है ..?? यह क्या हो रहा है ..?? "
(नेपथ्य में एक स्त्री कंठ में गूंजती आवाज़ ) > .... शांत राजन ! शांत ..!! ..में कुर्सी बोल रही हूँ महाराज विक्रमा दित्य की कुर्सी . जिस पर अब तुम बैठ चुके हो ! मुझ पर बैठने के बाद अब तुम मेरे और इस पुतले के मालिक बन चुके हो !अब तुम्ही राज़ा हो .! "
" वास्तव में मैं एक तिलस्मी कुर्सी हूँ .... ! मेरा तिलस्म इस पुतले में और पुतले का तिलस्म मुझमें छिपा है ! यथार्थ में हम दोनों एक दुसरे के हिस्से ही है ! राज़ा बन जाने के बाद अब जो भी बात यह पुतला कहेगा वह सिर्फ तुम्हें ही सुनाई देगा .. इसी तरह जो बात मैं कह रही हूँ वह भी सिर्फ तुम ही सुन पाओगे,कोई और नहीं सुन सकेगा इसलिए तुम परेशान मत होना ! इस कुर्सी के पीछे खड़े पुतले को अब तुम्हारे सिवा कुछ भी नहीं दिखाई देगा क्योंकि उसका तिलस्म ही इस तरह का है ...वह सिर्फ जब तक कुर्सी खाली रहती है .. तभी तक अन्य दुसरे लोगों को देख सकता है, उसके बाद नहीं ! पुतले के संचालन के लिए इस कुर्सी के दोनों हत्थों में कल पुर्जे लगे हैं जिनसे तुम इस पुतले से कोई भी मनचाहा काम ले सकते हो ! !"
" अब ध्यान से तुम वह एतिहासिक तिलस्मी राज सुनो जो मुझे छोड़ किसी को नहीं मालूम ...और मेरे मालिक होने के नाते तुम्हे वह राज बताना मेरा फ़र्ज़ है ! "
" इस कुर्सी पर कई सालो पहले राज़ा भोज ने बैठने की कोशिश की ! ...तब कुर्सी से जुड़े बत्तीस पुतलों ने उन्हें बैठने नहीं दिया ! राजा भोज ने क्रोध में आकर उन बत्तीस पुतलों को मनुष्य बना दिया जो बाद में भोज की प्रजा में जा घुसे ! उन्होंने प्रजा को बरगला कर राजा भोज के अस्तित्व पर हो प्रश्न उठवा दिया और जनता उन्हें राजा भोज की जगह " गंगू तेली " पुकारने लगी ! उसी समय अंतिम पुतला जो अभी इस कुर्सी के पीछे खडा है .. कुर्सी को लेकरअन्दर ग्राउंड हो गया ! प्रजा में हुए प्रचार के कारण राज़ा भोज अपनी स्मरण शक्ति खो बैठे और विक्षिप्त हो कर जंगल चले गए ... वे वहीँ रह कर स्मरण करने की कोशिश करते रहे ... लेकिन वहां भी लोगो ने उन्हें कुछ भी याद नहीं आने दिया ! वही राजा भोज किसान के रूप में अभी फिर लौट आये हैं ...जिनके आँखों पर पट्टी बांध कर तुम कुर्सी पर बैठ चुके हो ! इस कुर्सी के दोनों और खडी यह चारोँ आकृतियाँ भी वस्तुतः वे पुतले ही हैं ! इन्हें यदि पीछे खड़े " तिलस्मी पुतले " से स्पर्श करवा कर अपने आधीन रखा जाये , तो वे पुतलों की तरह ही तुम्हारी आज्ञा मानेंगे ! वे बाकी पुतलों को भी प्रजा में से ढूंड निकालेंगे और उन के साथ मिलकर तुम्हारा हर काम पूरा करेंगे ! इस तरह तुम्हारा राज निर्विघ्न चलता रहेगा ! "
परन्तु सावधान ...! यदि राजा भोज यदि पुनः जाग गए और उन्हें सब कुछ स्मरण आ गया तो मेरा और इन पुतलों का तिलस्म टूट जाएगा और फिर तुम्हारा महत्त्व समाप्त हो जाएगा ! .... अब किस तरह तुम राज करो ...यह तुम्हारी चतुरता पर निर्भर है ! ..."
( गडगडाहट की ध्वनि धीमी होती जाती है और फिर समाप्त हो जाती है )
( मंच पर प्रकाश पुर्णतः तीव्र हो जाता है )
एक प्रहरी > " बा अदब बा मुलाहिजा होशियार ..., दरबारे राज़ा भोज ... होश में आ रहा है ..." ( हलचल होती है )
राजा > ( भाषण के स्वर में ).... " मेरे साथियो ! मेरे दरबारियों ..!! मुझे आपने राजा बनाया , अच्छा किया ! क्यूंकि हम इस योग्य थे ! पहले लोगों ने इस सिंघासन पर बैठ कर बहुत ज़ुल्म ढाए हैं- अब हम ज़ुल्म ना होने देंगे ! पुराने राजा भोज ने जो गलतियां की हैं हम उस की खोज बीन करवाएंगे - उन पर कार्यवाही करेंगे ! हमें बहुत कुछ करना है - पहले अपने विशवास पात्र लोगों को पद बंटाना है जिससे मजबूत दरबार बन सके ! फिर पड़ोसी राजाओं , और उनकी स्थिति के बारे में सोचना देखना है ! हमें बहुत खतरा भी है ..जो पहले भी था ..आज भी है ...और आगे उसके बने रहने के पुरे आसार हैं ! मैं चाहूंगा की आप उन खतरों के बारे में निरंतर सोचा करें ..यदि आप का ध्यान उस और बंटा रहेगा तो बहुत अच्छा रहेगा ! हम आपके आभारी हैं ..और आप हमारे रहिये की हमने यह कुर्सी की कठिन जबाबदारी सम्हाली है ! हमारा सम्बन्ध जन्म जन्मान्तरों का है - प्रजा और राजा का ... जिसमे हम आपको और आप हमें पालेंगे तो अच्छा रहेगा ! . आइये अब हम और लोगों को भी जिम्मीदारियां सोंप दे !
! "
(एक व्यक्ति आगे बढ़ता है- पुतला उसके सर पर हाथ रखता है - झन्न की आवाज़ आती है - वह व्यक्ति कांपता है ! )
राजा > " तुम कौन।।? "
व्यक्ति > आपका सेवक "
राजा > "अब से तुम्हारा नाम हुआ - " हाकिम " जाओ फटता झाड पोंछ कर , आसन जमाओ .., "
(दूसरा व्यक्ति आगे बढ़ता है पुतला सर पर हाथ रखता है - झन्न की आवाज़ )
राजा < " तुम कौन ..? "
व्यक्ति > " आपका चाकर "
राजा > " हमने तुम्हे खोज बीन के लिए रक्खा ...!जाओ खोजो और बीनो ... ख़ास बातें हाकिम को बताओ "
(तीसरा व्यक्ति आगे बढ़ता है - पुतला हाथ रखता है - झन्न की आवाज़) )
राजा > " तुम कौन ?/"
व्यक्ति > " आपका गुलाम .."
राजा > ' हमने तुम्हें काटने छांटने और बसूल करने के लिए रक्खा ..., जाओ कंधे पर एक वसूला रखो ... काँटों ..छांटो ... और वसूलो ... ! "
(चौथा व्यक्ति आगे बढ़ता है )
राजा > " तुम कौन ..? "
व्यक्ति ( पलट कर तेज स्वर में ) > " तुम कौन।।।।??"
राजा हतप्रभ हो जाता है ! ..
पुतला > राजन इसका शरीर पुतले का हो सकता है लेकिन दिमाग नहीं ..! वह बिगड़ चुका है ! "
राजा > " यह कैसे काबू में आयेगा ,,,? "
पुतला > "इसकी दिमागी खुराक कागज़ , स्याही - विज्ञापन , प्रचार है इसका कोटा बाँध दें ... कभी कभी इसे राजकीय भोज पर आमंत्रित करते रहें ! "
राजा > जाओ तुम उन तीनो के पीछे लगे रहो ...! कागज़ स्याही में दूंगा ...! तुम अकल लड़ाते रहो ..उनके बारे में लिखते रहो ! "
व्यक्ति > ( आँखे तरेर कर ... ) " याद रहे की मेरी खुराक मुझे मिलती रहे ! " .. ( चला जाता है )
( मंच पर प्रकाश मद्धिम हो जाता है ...) मंच के बाएं कोने में आगे की तरफ कमर में पेटी बांधे सांकल से कुर्सी तक जुडा किसान , सर पर हाथ रखे हताश बैठा है ... तभी खोजे और वसूले आते हैं ... वसूले कंधे पर एक वसूला रक्खे है )
खोजे > " महाराज ने खोजने बीनने के नियम बड़े कठिन बनाये हैं ..!"
वसूले > " हाँ ! जिसे खोज लें उसे बीने ना .. और जिसे बीन ले उसे खोजें ना ..!! "
खोजे > " पता नहीं महराज किसे धुंधवा रहे हैं ..? "
वसूले > " मैं तो वसूला कंधे पर रक्खे रक्खे थक गया ! "
खोजे > " जब बिना वसूला चलाये ही वसूल हो जाये तो क्यों लादे फिरते हो ( अचानक सामने किसान को बैठे देखा कर ) ... अरे !! देखो देखो !! कौन बैठा है वहां ..? "
.वसूले > ( हाथ आँखों पर लगा कर दूरबीन बना कर देखते हुए ) - हाँ मिस्टर खोजे कोई बैठा है उकडू ..सर पर हाथ रक्खे हुए ! "
खोजे > कोई फ़कीर ना हो ..! "
वसूले > " फ़कीर वहां क्यों होगा ,, वह तो आश्रम में मिलेगा चेलो चमचो से घिरा .. ...,
खोजे > " तब कोई हिप्पी न हो ..., शांति की खोज में गांजा उड़ा रहा हो ! "
वसूले > " बिना हिप्पानियों के हिप्पी कैसे . इसके तो हिप भी नहीं है ..? और फिर हिप्पी तो समुद्र तट पर पाए जाते हैं ."
खोजे > ' तो फिर कोई लुटेरा न हो ... यानि ' क्रिमिनल "..! "
वसूले > अह।।! हः।।!! क्या लुटेरे भी कभी सोचते हैं ... इस तरह सर पर हाथ रख कर ...?? "
खोजे > भैया मुझे यह सुपर स्टार लगता है .... किसी गरीब की एक्टिंग कर रहा है वहां बैठ कर ..! "
वसूले > " बिना कैमरे और लाइट के ...? भीड़ भी तो नहीं है उसे घेरे ..! "
खोजे > ( परेशान होकर ) .." तब कौन हो सकता है वह ... जो सरकारी ज़मीन पर बैठा है ...?"
वसूले > " खास बात है की उकडू बैठा है ... " मुर्गे " की तरह ...!! "
खोजे > ( उछलकर ) ... मुर्गा ...!!! ...ही ही ही ... मुर्गा !! ...,"
वसूले > " चलो पूछ लें कही मुर्गा ही ना हो ..., इससे पहले की वह " बांग " दे , और कोई दूसरा जाग जाये ... क्यों ना हम ही उसे दबोच लें ..!! "
खोजे > .." बिलकुल " ..!!
( दोनों किसान के पास जाते हैं )
खोजे > " क्योँ भाई किस " फ़ार्म " के हो ..? "
वसूले > " देशी हो या विलायती " ..?
किसान . > ( हाथ जोड़ कर ) ' मर्जी " ...! "
दोनों एक दुसरे को देख कर ) - " क्या मतलब ..? " ( निराशा से सर हिलाते हैं (
खोजे < " क्यों भाई पहले कब कटे थे ..? "
वसूले > " " तुम्हारे पंख कब नोचे गए ..? "
किसान ( हाथ जोड़ कर ) _ " हुकुम " !
( खोजे वसूले प्रश्नवाचक द्रष्टि से एक दुसरे को देखते है )
खोजे > क्या नाम है तुम्हारा ..? "
किसान > " भोज "
वसूले > " नाम तो ' शाही " है ... शाही मुर्गा है ! "
खोजे > " आगे।।। जात- पांत ...? "
किसान > " राजा ..! राजा भोज।। "
वसूले > ( चौंक कर उछलते हुए ) .. " यह मालिक का खानदानी है ...! रिश्तेदार लगता है ... "
खोजे > " ( ..! हंसता हुआ ) अरे नहीं भाई ..यह चिन्तक है स्कीम सोच रहा है प्रगति के नए चरण "
वसूले > ." फारेन रिटर्न हो सकता है ! "
खोजे > " फारेन का आदमी ! रिटर्न भी दे सकता है ... लेकिन रिटर्न सीधे मालिक को ही देगा।। समझे ? "
वसूले > " चलो मालिक को खबर कर दें .."
खोजे > " पहले हाकिम को बतला दें ! "
वसूले > " हाकिम खुश हो जायेंगे ! " ..हमें ओहदा दे देंगे ..!! "
खोजे ..." दौड़ो ...!! "
वसूले > " भागो।।" !
( दोनों दौड़ कर मंच के दुसरे कोने पर जाते हैं जहाँ " हाकिम " खड़ा खड़ा ..हवा में कलम चला रहा है ! उसके सामने एक लम्बी मेज़ है .. जिस पर कई ' डिब्बे ' रक्खे हैं ! वह कागज़ इधर उधर कर रहा हिया ..., हाथ उठा कर फोन करता है ! एक और मुंह करके चिल्लाता है ... डांटता है ... फिर कलम चलता है )
खोजे वसूले दोनों वहां पहुँच कर थोड़ी देर हाथ बांधे ' हाकिम " के एक्शन देखते रहते हैं फिर बोलते हैं )
खोजे > " हुजुर ..हाकिम जी ! लेटेस्ट न्यूज़ ..!! "
वसूले > " ब्लास्टिंग - सीक्रेट न्यूज़ "..!
अफसर > " बको .."
खोजे > " वहां मैदान में एक रहस्यमय आदमी उकडू बैठाहै ! "
वसूले > " नाम है भोज ...जात है राजा "
खोजे > " कमर में सुनहरा पट्टा लगाये है .. राज दरबार की परम्परागत पेटी "
अफसर > " पुरातत्व के दिब्बेमें नीले फार्म के साथ - पीली चिट चिपका कर - एक अर्जी के साथ डाल दो ..! "
( खोजे - वसूले , दोनों एक दुसरे की और देख कर भौं चक्के हो जाते हैं )
खोजे > ' हुजुर वह सोच भी रहा है "
अफसर > " साहित्यकारों की बही में सबसे आखिर में , सफ़ेद चिपकी लगा कर एन रोल कर लो और हरे डब्बे में डाल दो ..! "
खोजे > " हुजुर !! वह सरकारी ज़मीन पर है ! "
अफसर > " नगर पालिका के डब्बे में मुह घुसा कर फूस फुसा दो वे बुलडोज़र से उखडवा देंगे ..! "
( दोनों एक दुसरे को परेशान हो कर देखते हैं )
खोजे > ( चिंता से ) क्या करें ..?? "
वसूले > " हाकिम व्यस्त है ... रात भर सोया नहीं है ! "
खोजे > " सूचना तो देनी पड़ेगी ... वरना नौकरी भी जा सकती है ! "
वसूले > हाँ भाई खोजे ... सूचना तो देनी ही पड़ेगी ! "
खोजे > ( अफसर से ) - सर !! वह " मुर्गा " भी हो सकता है उकडू बैठा है ! "
अफसर > ( चौंककर ) " क्या।।।???" ... उकडू बैठा है ..?? फ़ौरन लाल नीले डब्बे में रिपोर्ट करो -- आज कल यहाँ बहुत मुर्गे दिख रहे हैं ..! या खतरनाक होते हैं ... ' मुर्गियों ' का जीना हराम कर रक्खा है इन्होने ..! "
( दोनों झुक कर एक कागज़ पर कुछ लिखते हैं और फिर वसूले लपक कर उसे एक डिब्बे का मुह खोल कर अन्दर डालता है .. अचानक ' खट ' की आवाज़ होती है डिब्बे का ढक्कन बंद हो जाता है ... वसूले का हाथ डिब्बे के अन्दर ही रह जाता है !)
वसूले > ' अरे ... अरे मर गया .."
खोजे > ( घबरा कर ) ..." क्या हुआ वसूले ,,,?? "
वसूले > "( कराहते हुए ) मेरा हाथ फंस गया ! "
खोजे ( घबरा कर ) ( - " अफसर से ) - सर !! वसूले का हाथ फंस गया ! "
अफसर > " खाली हाथ डाला था क्या ..? "
खोजे > " यस सर ! "
अफसर > " व्हाट नानसेंस !! ...इसने चूहे वाले कटघरे में हाथ क्यों दाल दिया .. वो भी खाली ..? "
खोजे > " सर उसे पता नहीं था .. न समझ है .. बच्चा है सर ..! "
अफसर > " वसूले और न समझ ..??.... किस गधे ने नौकरी दी ... ? "
पहला > " सीधा अप्वाय्मेंट है सर ... मालिक की तरफ से ..! "
अफसर > ... ओह।।।!! ..सारी ...!! ..लेकिन मालिक ने नोकरी देते समय अकल तो नहीं ले ली थी ... वो कहाँ गयी ..! " .
खोजे > " वसूलने में खर्च हो गयी सर ..! उसे छुडवा दीजिये ! "
अफसर > " तुम्हे मालुम है ..?? इस पिजरे की चाबी सीधे मालिक की कमर से बंधी है ...? "
खोजे > " नहीं मालूम सर !! सीक्रेट बातें नहीं मालूम ..! "
अफसर > " कटघरे को खोलना आसान नहीं ...! खोजे।।।। वह विदेशी हाथ फंसाने के लिए रखा गया है ! "
वसूले > ( आर्त स्वर में ) ..." अब क्या होगा सर !! मुझे बचाइये ..!! "
खोजे > " अब कोई सही रिपोर्ट आपको नहीं देंगे सर सर ... इस बार बचवा लीजिये ! "
अफसर > " कौन बचा सकता है इसे ..? इसका हाथ तो गया ..! "
खोजे > ( आश्चर्य से ) क्या सर ....???"
वसूले > ( आर्त स्वर में चीखते हुए ).... नहीं सर।। ! प्लीज़ सर ..!! "
अफसर > " हाथ तो काटना ही पडेगा वसूले ..! अब यह बतलाओ कहाँ से काटूँ ..??
वसूले > " नहीं सर ..!! प्लीज़ सर ...!! "
अफसर . " जल्दी बोलो ..! मालिक को पता चले इससे पहले बोलो ..! "
खोजे > " ... लेकिन सर ... बिना हाथ के यह कैसे वसूलेगा ...? "
अफसर > " नए नियम बिना हाथ के ही वसूलने के आ गए है ! "
वसूले ( ( चिल्ला कर ) नहीं सर ..! प्लीज़ सर ..! "
( तभी पत्रकार आता है )
पत्रकार > " क्या हाल है मिस्टर " गड़बड़ी !! " ..क्या चीख पुकार मची है डिपार्टमेंट में ..? "
अफसर > ..." ओह आप ...!! आइये क्या लेंगे ..? "
पत्रकार > " न्यूज़ और सिर्फ न्यूज़ ..!! "
अफसर ( हंसते हुए ) .... न्यूड ..?? भैया ... न्यूड तो बाहर मिलेगा .. यहाँ विभाग में कहाँ ..? "
पत्रकार > धन्यवाद ..!! मुझे तो सिर्फ ' न्यूज़ " ही चाहिए ... हाँ अगर न्यूड -... न्यूज़ हो तो और भी शुक्रिया !
अफसर > " कहाँ फ्लेश करेंगे ..? "
पत्रकार > " दैनिक कन्फ्यूज़ में "
अफसर > .." देखिये आप कुछ भी लिखते हैं ...! पिछली बार मेरे पीले डिब्बे के पेंट पर लिख डाला आपने ..! .. डिब्बा खड्खादा गया ! मुझे नया पेंट करवाना पडा ..! मालिक का खर्चा हुआ ! "
पत्रकार > " अब हमें क्या मालूम की " पीला डिब्बा " काम का भी है या नहीं ....कभी प्रेस नोट तो दिया नहीं और ना कभी विज्ञापन ! .."
खोजे ( बेचेनी से हाथ मलते हुए ) .." कुछ कीजिये सर !! वसूले का हाथ अभी फंसा हुआ ही है ! "
अफसर > " अरे हाँ ..! लाओ वसूला ! "
पत्रकार > " क्या कर रहे हैं ..?? "
अफसर > " आपके लिए समाचार बना रहा हूँ ! ... वसूले का हाथ वसूले से कट रहा है ! " मजबूरी है ... फंस गया है ! "
वसूले > '' नहीं सर प्लीज़ सर ..!"
खोजे > " कुछ कीजिये सर !! हम लोग बड़ी इम्पार्टेंट रिपोर्ट लाये थे ..! "
पत्रकार > " क्या रिपोर्ट थी भाई ..?? ... कितनी इम्पार्टेंट थी ..?
अफसर > " अरे जाइए यह आपको ना बताई जायेगी ..! "
खोजे > " हाँ मैदान में उकडू बैठा आदमी क्या है .. यह सब हम नहीं बताएँगे ! "
अफसर > ( खोजे से ) ( जोर से ).... चोप्प्प ....!! "
पत्रकार > ' बस बहुत है ! ( लिखते हुए ) मैदान में ... उकडू आदमी ... अभी देखता हूँ ... ( भागता है )
अफसर > ( खोजे को डाँटते हुए ) .. कर दिया ना लीक ..मोस्ट इम्पार्टेंट टॉप सीक्रेट ... अभी डब्बे में गया ही नहीं नहीं ...और उसे मालुम पद गया .!!
खोजे > " ( दबे स्वर में ) - अब क्या होगा सर।।?? "
अफसर > " होगा क्या ...?? ... जीप में डीज़ल डलवाओ ..! चलो फील्ड पर चेक करो ..!! थोरो चेक करो ..! डिटेल्ड रिपोर्ट लगेगी ..! "
वसूले > ( चिल्लाकर ).." नहीं सर प्लीज़ सर .."
( अफास र्खोजे भागते हैं ... दौड़ कर मंच के दुसरे कोने में किसान के पास पहुँचते हैं वहां पत्रकार पहले ही पहुँच चुका है और कैमरे से विभिन्न एंगल से उसके फोटो ले रहा है )
अफसर > ' बस।।! बस।।!! इट इज अवर प्रापर्टी ..हमने खोजी है ... आप फोटो नहीं ले सकते ! "
पत्रकार > " आप मुझे नहीं रोक सकते ! यह आपका माल नहीं है ! "
अफसर > " व्हाट आई से .. इस करेक्ट .. ! "
पत्रकार > " व्हाट आई राईट इस परफेक्ट ..! "
किसान > ( बद्बदते हुए ) ... " मर्जी .."
अफसर > " क्या नाम है तुम्हारा ..? "
किसान > " भोज .."
अफसर ( कड़क कर )> ...' जात ..?? "
किसान > " राजा .... आदी राजा ..!! "
अफसर > " पटवारी हल्का ..? "
खोजे > "यह बिना पट्टे के है हजुर ..! "
अफसर > " पट्टा तो डाला है कमर में ! .. देख नहीं रहे हो ..? "
खोजे > " तुम सरकारी ज़मीन पर क्यों बैठे हो ..? "
किसान > " मर्जी।।"
खोजे > " सरकारी ज़मीन पर सिर्फ सरकार बैठ सकती है ... ' हाकिम ' बैठ सकते हैं ! "
अफसर > "...और फिर उकडू बैठे हो !! ":
खोजे > ' गन्दगी कर रहे हो ...! "
अफसर > वह भी सर पर हाथ रख कर ..! "
खोजे > ' सोच रहे हो या षड्यंत्र कर रहे हो ...! "
अफसर > ' तुम पर तो एक साथ कई धाराएँ लग रही हैं ...! "
खोजे > " कई कई दफा लग रही हैं ! "
अफसर > " बोलो क्या किया जाये तुम्हारे साथ ..? "
खोजे > " अपनी सज़ा तुम खुद बतला दो ..! "
अफसर > " कहो तो तुम्हारे घर हवालदार भिजवा दें ..? "
पत्रकार > " बिना अपराध।। वारंट के आप कुछ नहीं कर सकते ... समझे ..?? "
अफसर > " मिस्टर खोजे वेरीफाई करो ... पटवारी हल्का नंबर सात में ज़मीन किसकी थी ... ! कौन था मालिक ..? "
( खोजे एक बही निकालता है खोजता है।।।।एकाएक चौंक कर )
खोजे > '' यह रहा हुजुर !! यहाँ लिखा है ... ' यह " गंगू तेली " है ! "
अफसर > ( चौंक कर ) .... " गंगू तेली ....?? हैं .. ?? गंगू तेली ..!! मालिक का कम्पटीटर .?? "
खोजे > हाँ सर ..!! मालिक की तुलना में इसने एक कहावत बनवा दी थी .... " कहाँ राजा भोज ... कहाँ गंगू तेली " .....आज तक चल रही है !
पत्रकार > " वंडर फुल ...!!! यह गंगू तेली है .. !! इसके नाम की कहावत से तो लोग आज तक कन्फ्यूज़ होते हैं ..! "
खोजे > ' हनन कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली .. "
पतरकार > औरयहं " कहाँ " शब्द किसके लिए लागु है .. यह आज तक स्पस्ट नहीं हुआ ! "
अफसर > ( स्वतः फुसफुसाकर ) .. " यह तो बड़ा खतरनाक शख्श है ! ... वेरी डेंजरस ..!"
पत्रकार >..." दिस इज अ ग्रेट स्कूप ..!! ..." राजा भोज के भेष में गंगू तेली की अद्भुत खोज ...! "
अफसर > ' मिस्टर खोजे ...!! "
खोजे " यस सर "
अफसर > " हॉट लाइन पर खबर करो ... फ़ौरन मालिक को खबर करो ..! "
(दूर वसूले की चींख ...)...' नहीं सर ... प्लीज़ सर ..! "
(अफसर बात करता है , दूर कुर्सी पर बैठा राजा सुनता है बोलता है ... सामने पुतला खड़ा ऊँघ रहा है )
राजा > ' क्या छपा है अखबार में ..? "
अफसर > " गलत छपा है .. बिलकुल गलत ... वो गंगू तेली है ... हमने डिटेल्ड चेकिंग कर ली है .. उसका बाप भी गंगू तेली था ...! बाप का बाप यानी दादा भी गंगू तेली .... परदादा भी ... लकड़ दादा भी गंगू तेली था . वह खानदानी तेली है ..मालिक ..! " .!
भोज > ' यही तो बहस का मुद्दा है ! हम भी खानदानी है बाप भी भोज थे .. दादा परदादा .. लकड़ दादा भी भोज ..! "
पुतला > " राजन ... !! सावधान !! . गंगू तेली को दूर रक्खें .!! "
भोज > ' तुम लोग बताये सूत्रों पर गंगू को सम्हालो ..! उसका मनोरंजन करो ..! तब तक में कुछ नए फार्मूले भेजता हूँ ..! "
(प्रकाश पुनः किसान पर केन्द्रित होता है )
खोजे > ( किसान को पुचकार कर ) - " गंगू जी !! आप इस तरह सर पर हाथ क्यों रखे हैं ..?? "
अफसर > " हाथ पर सर रखिये ..! "
खोजे > " हाँ दुनिया बदल रही है ... दुनिया के साथ चलिए ..! "
अफसर > " अच्छा देखिये आपको कुछ तमाशे दिखाएँ ..! " मिस्टर खोजे पिटारा लाइए ! "
(खोजे एक बड़ा डिब्बा लाता है जिस का मुह टी वी जैसा है )
अफसर > ' कितना सुन्दर दिखता है यह देखो गंगू ... इसमें ..'
खोजे > " नाचती परियां ... बहते झरने ... ध्यान से देखो इसमे कहीं कहीं तुम भी दिखोगे ..! "
अफसर > ' अच्छा !!क्या तुम्हारे पास तुम्हारे पुरखों के चित्र हैं ..? तुम्हे याद है अपने बाप दादाओं का चेहरा ... नहीं ..?
खोजे > ( एक बड़ा आइना लाता है )-( गंगू को दिखा कर )- " यह देखो अपने पिताजी का चित्र ..... अब जरा मुह मोड़ो कुछ तिरछे हो ... इस तरह से ! ( आइना घुमाता है ) ..यह है तुम्हारे दादाजी का चित्र . और ऐसा ही है तुम्हारे लकड़ दादाजी का चित्र .! "
अफसर > " देखो सब तुम्हारे जैसे ही दिखते थे ! बिलकुल फर्क नहीं .. वैसे ही जैसे तुम आज दिखते हो ..! "
खोजे > " उनके पास कुछ भी नहीं था .. तुम्हारे पासभी कुछ भी नहीं ! "
अफसर > " लेकिन तुम्हारे लिए हमारे पास बहुत सी स्कीम है ! "
खोजे > " बहुत से प्लान ..! "
अफसर > " अब हम इन स्कीमों के बारे में पढ़ कर तुम्हे बताएँगे ..! तुम सर हिलाते जाना , देखो यह पीली स्कीम - खास तुम्हारे लिए ."
खोजे > " .. तुम नहीं जानते ... तुम्हारा ' बांया ' हाथ कमज़ोर है ! हम उसे और मजबूत बनायेंगे ! "
अफसर > " उसे दांये हाथ के बराबर बना देंगे ..! "
किसान > परन्तु मेरे तो दोनों हाथ बराबर हैं ...ये देखो ..! " ( हाथ दिखाता है )
अफसर > ( सहानुभूति से ) - अरे नहीं गंगू !! तुम नहीं समझ सके आज तक ., हजारों साल बीत गए ...! "
खोजे > " अच्छा गंगू !! यह बताओ .. तुम अब तक हवन , दान , जैसे पवित्र कार्य किस हाथ से करते रहे ..?
किसान > इस हाथ से - दांये हाथ से "
खोजे > " और शौच , मुखारी , जैसे गंदे काम किस हाथ से ..? "
किसान > ( दूसरा हाथ दिखा कर ) " इस हाथ से ... बांये हाथ से ...! "
अफसर > " तो साफ़ है की बांया हाथ दांये हाथ से हमेशा नीचे रहा ! उससे सदियों तक गंदे काम लिए गए .., उसकी अवहेलना की गयी।।। क्योँ ?? इसलिए हम उसे दाहिने हाथ के बराबर कर देंगे ..,! "
किसान > ( दोनों हाथ आगे ला कर दिखाते हुए ) - देखिये मेरे तो दोनों हाथ बराबर है ..! "
खोजे > हाथ का मतलब पूरा हाथ ..! अंगुलियाँ कहाँ बराबर हैं .. ? स्कीम बराबर करने की है ... हम उंगलियाँ बराबर कर देंगे ! "
किसान > " नहीं मैं ठीक हूँ , मेरे हाथ ठीक है ! "
खोजे > " तुम्हें कैसे मालूम की तुम ठीक हो ..? फिटनेस सार्टिफिकेट है तुम्हारे पास ..?? "
अफसर > " तुम्हे और भी सुविधा मिलेगी गंगू ..!! लो यह हरा फार्म भरकर पीले डिब्बे में डालने .के लिए ! "
खोजे > " और यह नीला फार्म सफ़ेद डिब्बे में डालने के लिए ..! "
अफसर > " यह गुलाबी फार्म बेंगनी डिब्बे के लिए .."
खोजे > इधर आओ गंगुजी ..!! यहाँ लगाओ अपना अंगूठा ...यहाँ ..! "
अफसर > " और अब इस फ़ार्म को आगे बढ़ कर नीले डिब्बे में डाल दो ! "
( किसान हाथ में फार्म लेकर आगे बढ़ता है ! डिब्बे तक नहीं पहुँच पाता है - कमर में बंधी सांकल रोकती है )
अफसर > " थोड़ा पर जोर लगाओ गंगू ... थोड़ा और ..! "
( किसान आगे बढ़ता है , .. जोर लगता है ..., सांकल खिंचती है जिससे कुर्सी हिलती है )
पुतला > ( जोर से चिल्ला कर ) _ कौन कुर्सी हिला रहा है ...? "
अफसर > " कोई नहीं सर ! .. गंगू अपनी अर्जी डिब्बे में नहीं डाल पा रहा है ..! "
खोजे > " थोड़ी सांकल ढीली कीजिये सर ..!! कड़ियाँ लचीली कीजिये सर ..! "
पुतला > " सांकल पुरानी है , उसकी कड़ियाँ बहुत मोटी हैं ..ढीली नहीं की जा सकती ! "
अफसर > " थोड़ा और आगे आओ गंगू ! "
किसान के आगे बढ़ने पर सांकल खिंचने से फिर कुर्सी हिलती है )
राजा > ( चिल्ला कर ) - " बेवकुफो ..!! कुर्सी हिल रही है ! डिब्बों को उसके पास ले जाओ ..! "
(दूर - वसूले की चींख - नहीं सर प्लीज़ सर ..)
अफसर > " ठहरो गंगू ..!! हम हम तुम्हारे लिए डिब्बों को ही उठा कर .तुम्हारे नज़दीक ला देते हैं ! "
( खोजे और अफसर दोनों मिलकर डिब्बों को उठाने का प्रयत्न करते हैं - डिब्बे भारी हैं .. , बहुत ताकत लगाने पर भी हिलते नहीं . दोनों को पसीना आ जाता है .! )
खोजे > ( हताश स्वर में ) " यह बहुत भारी हैं ...सर ..!! ...उठते ही नहीं ) ! "
राजा > ( कड़क कर ) " गधों ..!! ... नए डिब्बे बनवा लो ..., खर्च की चिंता मत करो ..! डिब्बे उसके चारो और सज़ा दो ..! "
अफसर > " मिस्टर खोजे नए डिब्बे बनवाओ ..! "
( दूर से वसूले की चींख - नहीं सर प्लीज़ सर )
खोजे > " तबतक गंगू क्या करे सर ..?? ....उसके हाथ में फ़ार्म है ! "
राजा > " मूर्खो ..!! तुम्हारे किये कुछ ना होगा ..! में खुद आता हूँ ! "
( राजा चल कर किसान के पास आता है साथ में पीछे पीछे पुतला भी है )
अफसर > " महाराज की जय ..! "
खोजे > " सरकार की जय ..! "
राजा > " शांत।।! शांत ..!! हम गंगू भाई के लिए चल कर आये हैं ! ... हम उनके लिए ज़मीन पर चलेंगे .., हम उनके सेवक हैं ! उनके लिए नयी नयी सुविधाएँ लाएंगे ! "
अफसर- खोजे > " महाराज की जय - सरकार की जय "
राजा > " हम और गंगू भाई दोनों खानदानी हैं ... एक ही समय के एतिहासिक लोग ..! हमारा उनका बड़ा पुराना साथ है ! हम उन्हें बहुत पहले से जानते हैं ... भले ही वो हमें ना जान पाए हो ..!"
अफसर- खोजे > महाराज की जय - सरकार की जय "
राजा > " गंगू भाई आगे बढ़ सकें ..! सबके साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें , इसके लिए हम कोई कसार बाकी ना छोड़ेंगे ..! नए डिब्बे बनवायेंगे ..! कई नए फ़ार्म छपवायेंगे ! "
अफसर - खोजे > " महाराज की जय - सरकार की जय ! "
राजा > " हम गंगू भाई को नयी दिशा देंगे ...,प्रगति का पाठ पढ़ाएंगे ..... आओ गंगू भाई हम मिल कर नयी दिशा की और बढ़ें ..! "
( राजा गंगू के कंधे पर हाथ रख कर , कुर्सी के चारो और चक्कर मारता है ! पीछे पीछे पुतला . हाथ में डिब्बे लिए अफसर , और सर पर बहुत सारे फ़ार्म लादे खोजे चलता हैं )
कुर्सी के चारो और घुमाने से किसान की कमर पेटी से बंधी सांकल . कुर्सी के चारो और लिपट कर छोटी होती जाती है ... और अंत में बहुत छोटी होने से कुर्सी के निकट हो जाती है ! )
(दूर वसूले की आवाज़ धीरे धीरमद्धिम होकर बंद जाती है )
कुर्सी के पास आकर राजा कुर्सी पर फिर बैठ जाता है ... अपने पेरों के पास किसान को बैठा कर उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगता है , अफसर खोजे दायें बाएं खड़े हो कर फ्रीज़ हो जाते हैं .... प्रकाश मद्धिम होने लगता है )
जब रजा और किसान कुर्सी के चक्कर कट रहे होते हैं तब समवेत स्वर में एक गान गूंजता है )
" सेरी के रे सेरी के .., पांच पसेरी के ..,
उड़ गए तीतर बस गए मोर ..,
सड़ी डुकरिया ले गए चोर ..!
चोरन के घर क्घेती भाई ..,
खाय डुकरिया मोती भाई ..,
मन ,मन , पीसे मन मन खाय ,
बड़े गुरु से जुझन जाय ..!
राज लुट सब चोरन खाय ..,
बुढिया उनकी लेय बलाय ..!!
( प्रकाश धीमा होते ही ... मंच पर अन्धकार हो जाता है )
***** समाप्त *******
.
एक नाटक
लेखक - सभाजीत
* भाग दो *
(..मंच पर प्रक्काश तीव्र होता है ! )
(..राज़ा का दरबार ,,,कुर्सी पर बैठा व्यक्ति कुर्सी को दोनों हाथों से कस कर पकडे है ! ) कुर्सी के पीछे पुतला और दायें बाएं अन्य चारों पात्र खड़े हैं ...))
( अचानक बादलों की गडगडाहट ,,,विभिन्न आवाजें .., विभिन्न प्रकाश।।)
( कुर्सी पर बैठा राजा ) > " कौन है ..? कौन है ..?? यह क्या हो रहा है ..?? "
(नेपथ्य में एक स्त्री कंठ में गूंजती आवाज़ ) > .... शांत राजन ! शांत ..!! ..में कुर्सी बोल रही हूँ महाराज विक्रमा दित्य की कुर्सी . जिस पर अब तुम बैठ चुके हो ! मुझ पर बैठने के बाद अब तुम मेरे और इस पुतले के मालिक बन चुके हो !अब तुम्ही राज़ा हो .! "
" वास्तव में मैं एक तिलस्मी कुर्सी हूँ .... ! मेरा तिलस्म इस पुतले में और पुतले का तिलस्म मुझमें छिपा है ! यथार्थ में हम दोनों एक दुसरे के हिस्से ही है ! राज़ा बन जाने के बाद अब जो भी बात यह पुतला कहेगा वह सिर्फ तुम्हें ही सुनाई देगा .. इसी तरह जो बात मैं कह रही हूँ वह भी सिर्फ तुम ही सुन पाओगे,कोई और नहीं सुन सकेगा इसलिए तुम परेशान मत होना ! इस कुर्सी के पीछे खड़े पुतले को अब तुम्हारे सिवा कुछ भी नहीं दिखाई देगा क्योंकि उसका तिलस्म ही इस तरह का है ...वह सिर्फ जब तक कुर्सी खाली रहती है .. तभी तक अन्य दुसरे लोगों को देख सकता है, उसके बाद नहीं ! पुतले के संचालन के लिए इस कुर्सी के दोनों हत्थों में कल पुर्जे लगे हैं जिनसे तुम इस पुतले से कोई भी मनचाहा काम ले सकते हो ! !"
" अब ध्यान से तुम वह एतिहासिक तिलस्मी राज सुनो जो मुझे छोड़ किसी को नहीं मालूम ...और मेरे मालिक होने के नाते तुम्हे वह राज बताना मेरा फ़र्ज़ है ! "
" इस कुर्सी पर कई सालो पहले राज़ा भोज ने बैठने की कोशिश की ! ...तब कुर्सी से जुड़े बत्तीस पुतलों ने उन्हें बैठने नहीं दिया ! राजा भोज ने क्रोध में आकर उन बत्तीस पुतलों को मनुष्य बना दिया जो बाद में भोज की प्रजा में जा घुसे ! उन्होंने प्रजा को बरगला कर राजा भोज के अस्तित्व पर हो प्रश्न उठवा दिया और जनता उन्हें राजा भोज की जगह " गंगू तेली " पुकारने लगी ! उसी समय अंतिम पुतला जो अभी इस कुर्सी के पीछे खडा है .. कुर्सी को लेकरअन्दर ग्राउंड हो गया ! प्रजा में हुए प्रचार के कारण राज़ा भोज अपनी स्मरण शक्ति खो बैठे और विक्षिप्त हो कर जंगल चले गए ... वे वहीँ रह कर स्मरण करने की कोशिश करते रहे ... लेकिन वहां भी लोगो ने उन्हें कुछ भी याद नहीं आने दिया ! वही राजा भोज किसान के रूप में अभी फिर लौट आये हैं ...जिनके आँखों पर पट्टी बांध कर तुम कुर्सी पर बैठ चुके हो ! इस कुर्सी के दोनों और खडी यह चारोँ आकृतियाँ भी वस्तुतः वे पुतले ही हैं ! इन्हें यदि पीछे खड़े " तिलस्मी पुतले " से स्पर्श करवा कर अपने आधीन रखा जाये , तो वे पुतलों की तरह ही तुम्हारी आज्ञा मानेंगे ! वे बाकी पुतलों को भी प्रजा में से ढूंड निकालेंगे और उन के साथ मिलकर तुम्हारा हर काम पूरा करेंगे ! इस तरह तुम्हारा राज निर्विघ्न चलता रहेगा ! "
परन्तु सावधान ...! यदि राजा भोज यदि पुनः जाग गए और उन्हें सब कुछ स्मरण आ गया तो मेरा और इन पुतलों का तिलस्म टूट जाएगा और फिर तुम्हारा महत्त्व समाप्त हो जाएगा ! .... अब किस तरह तुम राज करो ...यह तुम्हारी चतुरता पर निर्भर है ! ..."
( गडगडाहट की ध्वनि धीमी होती जाती है और फिर समाप्त हो जाती है )
( मंच पर प्रकाश पुर्णतः तीव्र हो जाता है )
एक प्रहरी > " बा अदब बा मुलाहिजा होशियार ..., दरबारे राज़ा भोज ... होश में आ रहा है ..." ( हलचल होती है )
राजा > ( भाषण के स्वर में ).... " मेरे साथियो ! मेरे दरबारियों ..!! मुझे आपने राजा बनाया , अच्छा किया ! क्यूंकि हम इस योग्य थे ! पहले लोगों ने इस सिंघासन पर बैठ कर बहुत ज़ुल्म ढाए हैं- अब हम ज़ुल्म ना होने देंगे ! पुराने राजा भोज ने जो गलतियां की हैं हम उस की खोज बीन करवाएंगे - उन पर कार्यवाही करेंगे ! हमें बहुत कुछ करना है - पहले अपने विशवास पात्र लोगों को पद बंटाना है जिससे मजबूत दरबार बन सके ! फिर पड़ोसी राजाओं , और उनकी स्थिति के बारे में सोचना देखना है ! हमें बहुत खतरा भी है ..जो पहले भी था ..आज भी है ...और आगे उसके बने रहने के पुरे आसार हैं ! मैं चाहूंगा की आप उन खतरों के बारे में निरंतर सोचा करें ..यदि आप का ध्यान उस और बंटा रहेगा तो बहुत अच्छा रहेगा ! हम आपके आभारी हैं ..और आप हमारे रहिये की हमने यह कुर्सी की कठिन जबाबदारी सम्हाली है ! हमारा सम्बन्ध जन्म जन्मान्तरों का है - प्रजा और राजा का ... जिसमे हम आपको और आप हमें पालेंगे तो अच्छा रहेगा ! . आइये अब हम और लोगों को भी जिम्मीदारियां सोंप दे !
! "
(एक व्यक्ति आगे बढ़ता है- पुतला उसके सर पर हाथ रखता है - झन्न की आवाज़ आती है - वह व्यक्ति कांपता है ! )
राजा > " तुम कौन।।? "
व्यक्ति > आपका सेवक "
राजा > "अब से तुम्हारा नाम हुआ - " हाकिम " जाओ फटता झाड पोंछ कर , आसन जमाओ .., "
(दूसरा व्यक्ति आगे बढ़ता है पुतला सर पर हाथ रखता है - झन्न की आवाज़ )
राजा < " तुम कौन ..? "
व्यक्ति > " आपका चाकर "
राजा > " हमने तुम्हे खोज बीन के लिए रक्खा ...!जाओ खोजो और बीनो ... ख़ास बातें हाकिम को बताओ "
(तीसरा व्यक्ति आगे बढ़ता है - पुतला हाथ रखता है - झन्न की आवाज़) )
राजा > " तुम कौन ?/"
व्यक्ति > " आपका गुलाम .."
राजा > ' हमने तुम्हें काटने छांटने और बसूल करने के लिए रक्खा ..., जाओ कंधे पर एक वसूला रखो ... काँटों ..छांटो ... और वसूलो ... ! "
(चौथा व्यक्ति आगे बढ़ता है )
राजा > " तुम कौन ..? "
व्यक्ति ( पलट कर तेज स्वर में ) > " तुम कौन।।।।??"
राजा हतप्रभ हो जाता है ! ..
पुतला > राजन इसका शरीर पुतले का हो सकता है लेकिन दिमाग नहीं ..! वह बिगड़ चुका है ! "
राजा > " यह कैसे काबू में आयेगा ,,,? "
पुतला > "इसकी दिमागी खुराक कागज़ , स्याही - विज्ञापन , प्रचार है इसका कोटा बाँध दें ... कभी कभी इसे राजकीय भोज पर आमंत्रित करते रहें ! "
राजा > जाओ तुम उन तीनो के पीछे लगे रहो ...! कागज़ स्याही में दूंगा ...! तुम अकल लड़ाते रहो ..उनके बारे में लिखते रहो ! "
व्यक्ति > ( आँखे तरेर कर ... ) " याद रहे की मेरी खुराक मुझे मिलती रहे ! " .. ( चला जाता है )
( मंच पर प्रकाश मद्धिम हो जाता है ...) मंच के बाएं कोने में आगे की तरफ कमर में पेटी बांधे सांकल से कुर्सी तक जुडा किसान , सर पर हाथ रखे हताश बैठा है ... तभी खोजे और वसूले आते हैं ... वसूले कंधे पर एक वसूला रक्खे है )
खोजे > " महाराज ने खोजने बीनने के नियम बड़े कठिन बनाये हैं ..!"
वसूले > " हाँ ! जिसे खोज लें उसे बीने ना .. और जिसे बीन ले उसे खोजें ना ..!! "
खोजे > " पता नहीं महराज किसे धुंधवा रहे हैं ..? "
वसूले > " मैं तो वसूला कंधे पर रक्खे रक्खे थक गया ! "
खोजे > " जब बिना वसूला चलाये ही वसूल हो जाये तो क्यों लादे फिरते हो ( अचानक सामने किसान को बैठे देखा कर ) ... अरे !! देखो देखो !! कौन बैठा है वहां ..? "
.वसूले > ( हाथ आँखों पर लगा कर दूरबीन बना कर देखते हुए ) - हाँ मिस्टर खोजे कोई बैठा है उकडू ..सर पर हाथ रक्खे हुए ! "
खोजे > कोई फ़कीर ना हो ..! "
वसूले > " फ़कीर वहां क्यों होगा ,, वह तो आश्रम में मिलेगा चेलो चमचो से घिरा .. ...,
खोजे > " तब कोई हिप्पी न हो ..., शांति की खोज में गांजा उड़ा रहा हो ! "
वसूले > " बिना हिप्पानियों के हिप्पी कैसे . इसके तो हिप भी नहीं है ..? और फिर हिप्पी तो समुद्र तट पर पाए जाते हैं ."
खोजे > ' तो फिर कोई लुटेरा न हो ... यानि ' क्रिमिनल "..! "
वसूले > अह।।! हः।।!! क्या लुटेरे भी कभी सोचते हैं ... इस तरह सर पर हाथ रख कर ...?? "
खोजे > भैया मुझे यह सुपर स्टार लगता है .... किसी गरीब की एक्टिंग कर रहा है वहां बैठ कर ..! "
वसूले > " बिना कैमरे और लाइट के ...? भीड़ भी तो नहीं है उसे घेरे ..! "
खोजे > ( परेशान होकर ) .." तब कौन हो सकता है वह ... जो सरकारी ज़मीन पर बैठा है ...?"
वसूले > " खास बात है की उकडू बैठा है ... " मुर्गे " की तरह ...!! "
खोजे > ( उछलकर ) ... मुर्गा ...!!! ...ही ही ही ... मुर्गा !! ...,"
वसूले > " चलो पूछ लें कही मुर्गा ही ना हो ..., इससे पहले की वह " बांग " दे , और कोई दूसरा जाग जाये ... क्यों ना हम ही उसे दबोच लें ..!! "
खोजे > .." बिलकुल " ..!!
( दोनों किसान के पास जाते हैं )
खोजे > " क्योँ भाई किस " फ़ार्म " के हो ..? "
वसूले > " देशी हो या विलायती " ..?
किसान . > ( हाथ जोड़ कर ) ' मर्जी " ...! "
दोनों एक दुसरे को देख कर ) - " क्या मतलब ..? " ( निराशा से सर हिलाते हैं (
खोजे < " क्यों भाई पहले कब कटे थे ..? "
वसूले > " " तुम्हारे पंख कब नोचे गए ..? "
किसान ( हाथ जोड़ कर ) _ " हुकुम " !
( खोजे वसूले प्रश्नवाचक द्रष्टि से एक दुसरे को देखते है )
खोजे > क्या नाम है तुम्हारा ..? "
किसान > " भोज "
वसूले > " नाम तो ' शाही " है ... शाही मुर्गा है ! "
खोजे > " आगे।।। जात- पांत ...? "
किसान > " राजा ..! राजा भोज।। "
वसूले > ( चौंक कर उछलते हुए ) .. " यह मालिक का खानदानी है ...! रिश्तेदार लगता है ... "
खोजे > " ( ..! हंसता हुआ ) अरे नहीं भाई ..यह चिन्तक है स्कीम सोच रहा है प्रगति के नए चरण "
वसूले > ." फारेन रिटर्न हो सकता है ! "
खोजे > " फारेन का आदमी ! रिटर्न भी दे सकता है ... लेकिन रिटर्न सीधे मालिक को ही देगा।। समझे ? "
वसूले > " चलो मालिक को खबर कर दें .."
खोजे > " पहले हाकिम को बतला दें ! "
वसूले > " हाकिम खुश हो जायेंगे ! " ..हमें ओहदा दे देंगे ..!! "
खोजे ..." दौड़ो ...!! "
वसूले > " भागो।।" !
( दोनों दौड़ कर मंच के दुसरे कोने पर जाते हैं जहाँ " हाकिम " खड़ा खड़ा ..हवा में कलम चला रहा है ! उसके सामने एक लम्बी मेज़ है .. जिस पर कई ' डिब्बे ' रक्खे हैं ! वह कागज़ इधर उधर कर रहा हिया ..., हाथ उठा कर फोन करता है ! एक और मुंह करके चिल्लाता है ... डांटता है ... फिर कलम चलता है )
खोजे वसूले दोनों वहां पहुँच कर थोड़ी देर हाथ बांधे ' हाकिम " के एक्शन देखते रहते हैं फिर बोलते हैं )
खोजे > " हुजुर ..हाकिम जी ! लेटेस्ट न्यूज़ ..!! "
वसूले > " ब्लास्टिंग - सीक्रेट न्यूज़ "..!
अफसर > " बको .."
खोजे > " वहां मैदान में एक रहस्यमय आदमी उकडू बैठाहै ! "
वसूले > " नाम है भोज ...जात है राजा "
खोजे > " कमर में सुनहरा पट्टा लगाये है .. राज दरबार की परम्परागत पेटी "
अफसर > " पुरातत्व के दिब्बेमें नीले फार्म के साथ - पीली चिट चिपका कर - एक अर्जी के साथ डाल दो ..! "
( खोजे - वसूले , दोनों एक दुसरे की और देख कर भौं चक्के हो जाते हैं )
खोजे > ' हुजुर वह सोच भी रहा है "
अफसर > " साहित्यकारों की बही में सबसे आखिर में , सफ़ेद चिपकी लगा कर एन रोल कर लो और हरे डब्बे में डाल दो ..! "
खोजे > " हुजुर !! वह सरकारी ज़मीन पर है ! "
अफसर > " नगर पालिका के डब्बे में मुह घुसा कर फूस फुसा दो वे बुलडोज़र से उखडवा देंगे ..! "
( दोनों एक दुसरे को परेशान हो कर देखते हैं )
खोजे > ( चिंता से ) क्या करें ..?? "
वसूले > " हाकिम व्यस्त है ... रात भर सोया नहीं है ! "
खोजे > " सूचना तो देनी पड़ेगी ... वरना नौकरी भी जा सकती है ! "
वसूले > हाँ भाई खोजे ... सूचना तो देनी ही पड़ेगी ! "
खोजे > ( अफसर से ) - सर !! वह " मुर्गा " भी हो सकता है उकडू बैठा है ! "
अफसर > ( चौंककर ) " क्या।।।???" ... उकडू बैठा है ..?? फ़ौरन लाल नीले डब्बे में रिपोर्ट करो -- आज कल यहाँ बहुत मुर्गे दिख रहे हैं ..! या खतरनाक होते हैं ... ' मुर्गियों ' का जीना हराम कर रक्खा है इन्होने ..! "
( दोनों झुक कर एक कागज़ पर कुछ लिखते हैं और फिर वसूले लपक कर उसे एक डिब्बे का मुह खोल कर अन्दर डालता है .. अचानक ' खट ' की आवाज़ होती है डिब्बे का ढक्कन बंद हो जाता है ... वसूले का हाथ डिब्बे के अन्दर ही रह जाता है !)
वसूले > ' अरे ... अरे मर गया .."
खोजे > ( घबरा कर ) ..." क्या हुआ वसूले ,,,?? "
वसूले > "( कराहते हुए ) मेरा हाथ फंस गया ! "
खोजे ( घबरा कर ) ( - " अफसर से ) - सर !! वसूले का हाथ फंस गया ! "
अफसर > " खाली हाथ डाला था क्या ..? "
खोजे > " यस सर ! "
अफसर > " व्हाट नानसेंस !! ...इसने चूहे वाले कटघरे में हाथ क्यों दाल दिया .. वो भी खाली ..? "
खोजे > " सर उसे पता नहीं था .. न समझ है .. बच्चा है सर ..! "
अफसर > " वसूले और न समझ ..??.... किस गधे ने नौकरी दी ... ? "
पहला > " सीधा अप्वाय्मेंट है सर ... मालिक की तरफ से ..! "
अफसर > ... ओह।।।!! ..सारी ...!! ..लेकिन मालिक ने नोकरी देते समय अकल तो नहीं ले ली थी ... वो कहाँ गयी ..! " .
खोजे > " वसूलने में खर्च हो गयी सर ..! उसे छुडवा दीजिये ! "
अफसर > " तुम्हे मालुम है ..?? इस पिजरे की चाबी सीधे मालिक की कमर से बंधी है ...? "
खोजे > " नहीं मालूम सर !! सीक्रेट बातें नहीं मालूम ..! "
अफसर > " कटघरे को खोलना आसान नहीं ...! खोजे।।।। वह विदेशी हाथ फंसाने के लिए रखा गया है ! "
वसूले > ( आर्त स्वर में ) ..." अब क्या होगा सर !! मुझे बचाइये ..!! "
खोजे > " अब कोई सही रिपोर्ट आपको नहीं देंगे सर सर ... इस बार बचवा लीजिये ! "
अफसर > " कौन बचा सकता है इसे ..? इसका हाथ तो गया ..! "
खोजे > ( आश्चर्य से ) क्या सर ....???"
वसूले > ( आर्त स्वर में चीखते हुए ).... नहीं सर।। ! प्लीज़ सर ..!! "
अफसर > " हाथ तो काटना ही पडेगा वसूले ..! अब यह बतलाओ कहाँ से काटूँ ..??
वसूले > " नहीं सर ..!! प्लीज़ सर ...!! "
अफसर . " जल्दी बोलो ..! मालिक को पता चले इससे पहले बोलो ..! "
खोजे > " ... लेकिन सर ... बिना हाथ के यह कैसे वसूलेगा ...? "
अफसर > " नए नियम बिना हाथ के ही वसूलने के आ गए है ! "
वसूले ( ( चिल्ला कर ) नहीं सर ..! प्लीज़ सर ..! "
( तभी पत्रकार आता है )
पत्रकार > " क्या हाल है मिस्टर " गड़बड़ी !! " ..क्या चीख पुकार मची है डिपार्टमेंट में ..? "
अफसर > ..." ओह आप ...!! आइये क्या लेंगे ..? "
पत्रकार > " न्यूज़ और सिर्फ न्यूज़ ..!! "
अफसर ( हंसते हुए ) .... न्यूड ..?? भैया ... न्यूड तो बाहर मिलेगा .. यहाँ विभाग में कहाँ ..? "
पत्रकार > धन्यवाद ..!! मुझे तो सिर्फ ' न्यूज़ " ही चाहिए ... हाँ अगर न्यूड -... न्यूज़ हो तो और भी शुक्रिया !
अफसर > " कहाँ फ्लेश करेंगे ..? "
पत्रकार > " दैनिक कन्फ्यूज़ में "
अफसर > .." देखिये आप कुछ भी लिखते हैं ...! पिछली बार मेरे पीले डिब्बे के पेंट पर लिख डाला आपने ..! .. डिब्बा खड्खादा गया ! मुझे नया पेंट करवाना पडा ..! मालिक का खर्चा हुआ ! "
पत्रकार > " अब हमें क्या मालूम की " पीला डिब्बा " काम का भी है या नहीं ....कभी प्रेस नोट तो दिया नहीं और ना कभी विज्ञापन ! .."
खोजे ( बेचेनी से हाथ मलते हुए ) .." कुछ कीजिये सर !! वसूले का हाथ अभी फंसा हुआ ही है ! "
अफसर > " अरे हाँ ..! लाओ वसूला ! "
पत्रकार > " क्या कर रहे हैं ..?? "
अफसर > " आपके लिए समाचार बना रहा हूँ ! ... वसूले का हाथ वसूले से कट रहा है ! " मजबूरी है ... फंस गया है ! "
वसूले > '' नहीं सर प्लीज़ सर ..!"
खोजे > " कुछ कीजिये सर !! हम लोग बड़ी इम्पार्टेंट रिपोर्ट लाये थे ..! "
पत्रकार > " क्या रिपोर्ट थी भाई ..?? ... कितनी इम्पार्टेंट थी ..?
अफसर > " अरे जाइए यह आपको ना बताई जायेगी ..! "
खोजे > " हाँ मैदान में उकडू बैठा आदमी क्या है .. यह सब हम नहीं बताएँगे ! "
अफसर > ( खोजे से ) ( जोर से ).... चोप्प्प ....!! "
पत्रकार > ' बस बहुत है ! ( लिखते हुए ) मैदान में ... उकडू आदमी ... अभी देखता हूँ ... ( भागता है )
अफसर > ( खोजे को डाँटते हुए ) .. कर दिया ना लीक ..मोस्ट इम्पार्टेंट टॉप सीक्रेट ... अभी डब्बे में गया ही नहीं नहीं ...और उसे मालुम पद गया .!!
खोजे > " ( दबे स्वर में ) - अब क्या होगा सर।।?? "
अफसर > " होगा क्या ...?? ... जीप में डीज़ल डलवाओ ..! चलो फील्ड पर चेक करो ..!! थोरो चेक करो ..! डिटेल्ड रिपोर्ट लगेगी ..! "
वसूले > ( चिल्लाकर ).." नहीं सर प्लीज़ सर .."
( अफास र्खोजे भागते हैं ... दौड़ कर मंच के दुसरे कोने में किसान के पास पहुँचते हैं वहां पत्रकार पहले ही पहुँच चुका है और कैमरे से विभिन्न एंगल से उसके फोटो ले रहा है )
अफसर > ' बस।।! बस।।!! इट इज अवर प्रापर्टी ..हमने खोजी है ... आप फोटो नहीं ले सकते ! "
पत्रकार > " आप मुझे नहीं रोक सकते ! यह आपका माल नहीं है ! "
अफसर > " व्हाट आई से .. इस करेक्ट .. ! "
पत्रकार > " व्हाट आई राईट इस परफेक्ट ..! "
किसान > ( बद्बदते हुए ) ... " मर्जी .."
अफसर > " क्या नाम है तुम्हारा ..? "
किसान > " भोज .."
अफसर ( कड़क कर )> ...' जात ..?? "
किसान > " राजा .... आदी राजा ..!! "
अफसर > " पटवारी हल्का ..? "
खोजे > "यह बिना पट्टे के है हजुर ..! "
अफसर > " पट्टा तो डाला है कमर में ! .. देख नहीं रहे हो ..? "
खोजे > " तुम सरकारी ज़मीन पर क्यों बैठे हो ..? "
किसान > " मर्जी।।"
खोजे > " सरकारी ज़मीन पर सिर्फ सरकार बैठ सकती है ... ' हाकिम ' बैठ सकते हैं ! "
अफसर > "...और फिर उकडू बैठे हो !! ":
खोजे > ' गन्दगी कर रहे हो ...! "
अफसर > वह भी सर पर हाथ रख कर ..! "
खोजे > ' सोच रहे हो या षड्यंत्र कर रहे हो ...! "
अफसर > ' तुम पर तो एक साथ कई धाराएँ लग रही हैं ...! "
खोजे > " कई कई दफा लग रही हैं ! "
अफसर > " बोलो क्या किया जाये तुम्हारे साथ ..? "
खोजे > " अपनी सज़ा तुम खुद बतला दो ..! "
अफसर > " कहो तो तुम्हारे घर हवालदार भिजवा दें ..? "
पत्रकार > " बिना अपराध।। वारंट के आप कुछ नहीं कर सकते ... समझे ..?? "
अफसर > " मिस्टर खोजे वेरीफाई करो ... पटवारी हल्का नंबर सात में ज़मीन किसकी थी ... ! कौन था मालिक ..? "
( खोजे एक बही निकालता है खोजता है।।।।एकाएक चौंक कर )
खोजे > '' यह रहा हुजुर !! यहाँ लिखा है ... ' यह " गंगू तेली " है ! "
अफसर > ( चौंक कर ) .... " गंगू तेली ....?? हैं .. ?? गंगू तेली ..!! मालिक का कम्पटीटर .?? "
खोजे > हाँ सर ..!! मालिक की तुलना में इसने एक कहावत बनवा दी थी .... " कहाँ राजा भोज ... कहाँ गंगू तेली " .....आज तक चल रही है !
पत्रकार > " वंडर फुल ...!!! यह गंगू तेली है .. !! इसके नाम की कहावत से तो लोग आज तक कन्फ्यूज़ होते हैं ..! "
खोजे > ' हनन कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली .. "
पतरकार > औरयहं " कहाँ " शब्द किसके लिए लागु है .. यह आज तक स्पस्ट नहीं हुआ ! "
अफसर > ( स्वतः फुसफुसाकर ) .. " यह तो बड़ा खतरनाक शख्श है ! ... वेरी डेंजरस ..!"
पत्रकार >..." दिस इज अ ग्रेट स्कूप ..!! ..." राजा भोज के भेष में गंगू तेली की अद्भुत खोज ...! "
अफसर > ' मिस्टर खोजे ...!! "
खोजे " यस सर "
अफसर > " हॉट लाइन पर खबर करो ... फ़ौरन मालिक को खबर करो ..! "
(दूर वसूले की चींख ...)...' नहीं सर ... प्लीज़ सर ..! "
(अफसर बात करता है , दूर कुर्सी पर बैठा राजा सुनता है बोलता है ... सामने पुतला खड़ा ऊँघ रहा है )
राजा > ' क्या छपा है अखबार में ..? "
अफसर > " गलत छपा है .. बिलकुल गलत ... वो गंगू तेली है ... हमने डिटेल्ड चेकिंग कर ली है .. उसका बाप भी गंगू तेली था ...! बाप का बाप यानी दादा भी गंगू तेली .... परदादा भी ... लकड़ दादा भी गंगू तेली था . वह खानदानी तेली है ..मालिक ..! " .!
भोज > ' यही तो बहस का मुद्दा है ! हम भी खानदानी है बाप भी भोज थे .. दादा परदादा .. लकड़ दादा भी भोज ..! "
पुतला > " राजन ... !! सावधान !! . गंगू तेली को दूर रक्खें .!! "
भोज > ' तुम लोग बताये सूत्रों पर गंगू को सम्हालो ..! उसका मनोरंजन करो ..! तब तक में कुछ नए फार्मूले भेजता हूँ ..! "
(प्रकाश पुनः किसान पर केन्द्रित होता है )
खोजे > ( किसान को पुचकार कर ) - " गंगू जी !! आप इस तरह सर पर हाथ क्यों रखे हैं ..?? "
अफसर > " हाथ पर सर रखिये ..! "
खोजे > " हाँ दुनिया बदल रही है ... दुनिया के साथ चलिए ..! "
अफसर > " अच्छा देखिये आपको कुछ तमाशे दिखाएँ ..! " मिस्टर खोजे पिटारा लाइए ! "
(खोजे एक बड़ा डिब्बा लाता है जिस का मुह टी वी जैसा है )
अफसर > ' कितना सुन्दर दिखता है यह देखो गंगू ... इसमें ..'
खोजे > " नाचती परियां ... बहते झरने ... ध्यान से देखो इसमे कहीं कहीं तुम भी दिखोगे ..! "
अफसर > ' अच्छा !!क्या तुम्हारे पास तुम्हारे पुरखों के चित्र हैं ..? तुम्हे याद है अपने बाप दादाओं का चेहरा ... नहीं ..?
खोजे > ( एक बड़ा आइना लाता है )-( गंगू को दिखा कर )- " यह देखो अपने पिताजी का चित्र ..... अब जरा मुह मोड़ो कुछ तिरछे हो ... इस तरह से ! ( आइना घुमाता है ) ..यह है तुम्हारे दादाजी का चित्र . और ऐसा ही है तुम्हारे लकड़ दादाजी का चित्र .! "
अफसर > " देखो सब तुम्हारे जैसे ही दिखते थे ! बिलकुल फर्क नहीं .. वैसे ही जैसे तुम आज दिखते हो ..! "
खोजे > " उनके पास कुछ भी नहीं था .. तुम्हारे पासभी कुछ भी नहीं ! "
अफसर > " लेकिन तुम्हारे लिए हमारे पास बहुत सी स्कीम है ! "
खोजे > " बहुत से प्लान ..! "
अफसर > " अब हम इन स्कीमों के बारे में पढ़ कर तुम्हे बताएँगे ..! तुम सर हिलाते जाना , देखो यह पीली स्कीम - खास तुम्हारे लिए ."
खोजे > " .. तुम नहीं जानते ... तुम्हारा ' बांया ' हाथ कमज़ोर है ! हम उसे और मजबूत बनायेंगे ! "
अफसर > " उसे दांये हाथ के बराबर बना देंगे ..! "
किसान > परन्तु मेरे तो दोनों हाथ बराबर हैं ...ये देखो ..! " ( हाथ दिखाता है )
अफसर > ( सहानुभूति से ) - अरे नहीं गंगू !! तुम नहीं समझ सके आज तक ., हजारों साल बीत गए ...! "
खोजे > " अच्छा गंगू !! यह बताओ .. तुम अब तक हवन , दान , जैसे पवित्र कार्य किस हाथ से करते रहे ..?
किसान > इस हाथ से - दांये हाथ से "
खोजे > " और शौच , मुखारी , जैसे गंदे काम किस हाथ से ..? "
किसान > ( दूसरा हाथ दिखा कर ) " इस हाथ से ... बांये हाथ से ...! "
अफसर > " तो साफ़ है की बांया हाथ दांये हाथ से हमेशा नीचे रहा ! उससे सदियों तक गंदे काम लिए गए .., उसकी अवहेलना की गयी।।। क्योँ ?? इसलिए हम उसे दाहिने हाथ के बराबर कर देंगे ..,! "
किसान > ( दोनों हाथ आगे ला कर दिखाते हुए ) - देखिये मेरे तो दोनों हाथ बराबर है ..! "
खोजे > हाथ का मतलब पूरा हाथ ..! अंगुलियाँ कहाँ बराबर हैं .. ? स्कीम बराबर करने की है ... हम उंगलियाँ बराबर कर देंगे ! "
किसान > " नहीं मैं ठीक हूँ , मेरे हाथ ठीक है ! "
खोजे > " तुम्हें कैसे मालूम की तुम ठीक हो ..? फिटनेस सार्टिफिकेट है तुम्हारे पास ..?? "
अफसर > " तुम्हे और भी सुविधा मिलेगी गंगू ..!! लो यह हरा फार्म भरकर पीले डिब्बे में डालने .के लिए ! "
खोजे > " और यह नीला फार्म सफ़ेद डिब्बे में डालने के लिए ..! "
अफसर > " यह गुलाबी फार्म बेंगनी डिब्बे के लिए .."
खोजे > इधर आओ गंगुजी ..!! यहाँ लगाओ अपना अंगूठा ...यहाँ ..! "
अफसर > " और अब इस फ़ार्म को आगे बढ़ कर नीले डिब्बे में डाल दो ! "
( किसान हाथ में फार्म लेकर आगे बढ़ता है ! डिब्बे तक नहीं पहुँच पाता है - कमर में बंधी सांकल रोकती है )
अफसर > " थोड़ा पर जोर लगाओ गंगू ... थोड़ा और ..! "
( किसान आगे बढ़ता है , .. जोर लगता है ..., सांकल खिंचती है जिससे कुर्सी हिलती है )
पुतला > ( जोर से चिल्ला कर ) _ कौन कुर्सी हिला रहा है ...? "
अफसर > " कोई नहीं सर ! .. गंगू अपनी अर्जी डिब्बे में नहीं डाल पा रहा है ..! "
खोजे > " थोड़ी सांकल ढीली कीजिये सर ..!! कड़ियाँ लचीली कीजिये सर ..! "
पुतला > " सांकल पुरानी है , उसकी कड़ियाँ बहुत मोटी हैं ..ढीली नहीं की जा सकती ! "
अफसर > " थोड़ा और आगे आओ गंगू ! "
किसान के आगे बढ़ने पर सांकल खिंचने से फिर कुर्सी हिलती है )
राजा > ( चिल्ला कर ) - " बेवकुफो ..!! कुर्सी हिल रही है ! डिब्बों को उसके पास ले जाओ ..! "
(दूर - वसूले की चींख - नहीं सर प्लीज़ सर ..)
अफसर > " ठहरो गंगू ..!! हम हम तुम्हारे लिए डिब्बों को ही उठा कर .तुम्हारे नज़दीक ला देते हैं ! "
( खोजे और अफसर दोनों मिलकर डिब्बों को उठाने का प्रयत्न करते हैं - डिब्बे भारी हैं .. , बहुत ताकत लगाने पर भी हिलते नहीं . दोनों को पसीना आ जाता है .! )
खोजे > ( हताश स्वर में ) " यह बहुत भारी हैं ...सर ..!! ...उठते ही नहीं ) ! "
राजा > ( कड़क कर ) " गधों ..!! ... नए डिब्बे बनवा लो ..., खर्च की चिंता मत करो ..! डिब्बे उसके चारो और सज़ा दो ..! "
अफसर > " मिस्टर खोजे नए डिब्बे बनवाओ ..! "
( दूर से वसूले की चींख - नहीं सर प्लीज़ सर )
खोजे > " तबतक गंगू क्या करे सर ..?? ....उसके हाथ में फ़ार्म है ! "
राजा > " मूर्खो ..!! तुम्हारे किये कुछ ना होगा ..! में खुद आता हूँ ! "
( राजा चल कर किसान के पास आता है साथ में पीछे पीछे पुतला भी है )
अफसर > " महाराज की जय ..! "
खोजे > " सरकार की जय ..! "
राजा > " शांत।।! शांत ..!! हम गंगू भाई के लिए चल कर आये हैं ! ... हम उनके लिए ज़मीन पर चलेंगे .., हम उनके सेवक हैं ! उनके लिए नयी नयी सुविधाएँ लाएंगे ! "
अफसर- खोजे > " महाराज की जय - सरकार की जय "
राजा > " हम और गंगू भाई दोनों खानदानी हैं ... एक ही समय के एतिहासिक लोग ..! हमारा उनका बड़ा पुराना साथ है ! हम उन्हें बहुत पहले से जानते हैं ... भले ही वो हमें ना जान पाए हो ..!"
अफसर- खोजे > महाराज की जय - सरकार की जय "
राजा > " गंगू भाई आगे बढ़ सकें ..! सबके साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें , इसके लिए हम कोई कसार बाकी ना छोड़ेंगे ..! नए डिब्बे बनवायेंगे ..! कई नए फ़ार्म छपवायेंगे ! "
अफसर - खोजे > " महाराज की जय - सरकार की जय ! "
राजा > " हम गंगू भाई को नयी दिशा देंगे ...,प्रगति का पाठ पढ़ाएंगे ..... आओ गंगू भाई हम मिल कर नयी दिशा की और बढ़ें ..! "
( राजा गंगू के कंधे पर हाथ रख कर , कुर्सी के चारो और चक्कर मारता है ! पीछे पीछे पुतला . हाथ में डिब्बे लिए अफसर , और सर पर बहुत सारे फ़ार्म लादे खोजे चलता हैं )
कुर्सी के चारो और घुमाने से किसान की कमर पेटी से बंधी सांकल . कुर्सी के चारो और लिपट कर छोटी होती जाती है ... और अंत में बहुत छोटी होने से कुर्सी के निकट हो जाती है ! )
(दूर वसूले की आवाज़ धीरे धीरमद्धिम होकर बंद जाती है )
कुर्सी के पास आकर राजा कुर्सी पर फिर बैठ जाता है ... अपने पेरों के पास किसान को बैठा कर उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगता है , अफसर खोजे दायें बाएं खड़े हो कर फ्रीज़ हो जाते हैं .... प्रकाश मद्धिम होने लगता है )
जब रजा और किसान कुर्सी के चक्कर कट रहे होते हैं तब समवेत स्वर में एक गान गूंजता है )
" सेरी के रे सेरी के .., पांच पसेरी के ..,
उड़ गए तीतर बस गए मोर ..,
सड़ी डुकरिया ले गए चोर ..!
चोरन के घर क्घेती भाई ..,
खाय डुकरिया मोती भाई ..,
मन ,मन , पीसे मन मन खाय ,
बड़े गुरु से जुझन जाय ..!
राज लुट सब चोरन खाय ..,
बुढिया उनकी लेय बलाय ..!!
( प्रकाश धीमा होते ही ... मंच पर अन्धकार हो जाता है )
***** समाप्त *******
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