" बे-ताल पच्चीसी "
............सरपंच का लड़का , खूंटी से बस्ता उतार कर, उसे " वेताल " की तरह कंधे पर लाद कर एक बार फिर स्कूल की ओर बढ़ लिया ! स्कूल की एक ही कक्षा में पढ़ते हुए उसे कई साल हो रहे थे , लेकिन वह हर बार किसी ना किसी विषय में फेल हो जाता था ! उसके सरपंच पिता ने शिक्षा विभाग से कहकर , कई नालायक मास्टरों के स्कूल से तबादले करवा दिए थे कि उसका लड़का बोर्ड परीक्षा में किसी तरह पास हो जाये , लेकिन लड़का था की अति विवेकी होने के कारण पास ही नहीं हो पा रहा था !
,,,,,, आधे रास्ते चलने के बाद , रामलीला ग्राउंड के पास पहुंचते ही बस्ते , में रखी हिन्दी की किताब ने , सरपंच के लड़के से यूँ प्रश्न किया -
".. इस ग्राउंड पर हर साल दस मुँह वाले " रावण " का पुतला जलता है ! क्या रावण दस मुँह वाला रहा होगा ??,,,, यदि हाँ तो वह सोता कैसे होगा ?? उसे ' दशानन ' क्यों कहा गया ??....इन बातों के उत्तर तुम जानते बूझते भी नहीं दोगे तो तुम्हारे पिता की सरपंची इसी क्षण छिन जायेगी ! "
,,,,,,सरपंच का लड़का किताबों के ऐसे ऊलजलूल प्रश्नों से बहुत परेशान था ! ये किताबें उसे स्कूल तक पहुँचने ही नहीं देती थी ! बीच मार्ग में ही उससे सवाल पूछ कर ,उसे इम्मोशनल धमकियां देती रहती थी !,,,,, उसे ' विद्या-माता ' की ताकत से बहुत डर लगता था !,,,, भले ही लड़के को , पिता से उतना प्रेम नहीं था लेकिन पिता की सरपंची से वो बहुत प्यार करता था इसलिए थोड़ी देर चुप रहकर आखिर वह इस प्रकार बोला -
- " इस प्रश्न को एक बार मेरे पिता ने मड़िया देव के पुजारी ' देवीदीन ' से भी पूछा था !,,,,मेरे पिता को जब भी सरपंची जाने का डर लगता तो वो मड़िया देव के पुजारी से गण्डा ताबीज़ बंधवाने चले जाते थे !,,, तब उस दिन वे मुझे भी साथ ले गए थे !,,, ' देवीदीन महाराज ' ने अपने पास रखी रामायण की सभी पोथी ,,,, गुटका से लेकर अर्थ वाली बड़ी रामायण तक ,पलट डाली , लेकिन इसका उत्तर उन्हें बाल काण्ड से लेकर उत्तर काण्ड तक कही नहीं मिला ! शायद ' तुलसीदास जी ' भी इसका उत्तर लिखना भूल गए थे ! खैर,,,, , मड़िया देव के पुजारी ने अपनी अकल लगा कर जो बापू को समझाया वही में तुम्हे बताये देता हूँ ----"
......रावण लंका में शाशन करता था , जैसे आज भारत में लोग शाशन करते हैं ! ,,,,उसके दरबार में ' विभीषण ' विपक्षी दल के रूप में बैठता था -,,,, जैसे आज अपने देश में सदनों में विपक्षी दल बैठते हैं !,,,, रावण और विभीषण एक ही कुल के वंशज थे ,,, एक ही खून ,, और उन दोनों में एक ही बात को लेकर मतभेद था की ' गद्दी ' कौन सम्हाले ! बाकी वे भाई भाई ही थे !,,,, रावण गद्दी छोड़ना नहीं चाहता था और विभीषण बिना गद्दी लिए टलने वाला नहीं था !
,,,,,,रावण के पेट में बहुत सारे ' मायावी चहरे ' समाये रहते थे ! इन चेहरों के पेट नहीं थे , लेकिन बड़े बड़े मुंह जरुर थे जिससे ये बहुत सारी सामग्री , जैसे , अयस्क , मिनिरल , जमीन ,, खदानें ,, जंगल ,, प्रोटीन की तरह गटकते रहते थे .., रावण के पेट में रहने के कारण इन्हें जनता ठीक से पहचानती भी नहीं पाती थी ,,,, और रावण को भी अपनी उदरस्थ की गयी चीज़ें , पचाने में इससे आसानी होती थी ! ,,,,, शांति काल में रावण अपने मूल मुख से ही शाशन करते हुए , खाता पीता रहता था ! ,,,लेकिन संघर्ष के समय उसे शत्रु को मूर्ख बनाने के लिए, और अपनी शक्ति दिखाने के लिए और कई चेहरों की ज़रूरत होती थी ! रावण के पेट में समाये चहरे .., संघर्ष में कट जाने के डर से बाहर नहीं आते थे !,,, रावण भी उन्हें बाहर नहीं आने देना चाहता था कि ,,, वे कहीं खाई हुई चीज़ों के बारे में - " बक झक " ना दें ! ,,,, तब रावण ने कुछ बाहरी चेहरों को अपने खुद के के चेहरे के साथ अतिरिक्त रूप से जोड़ लिया ! जैसे आज हमारे देश में मूल शासक पार्टी को सहयोग देने के लिए , अन्य कई पार्टीयाँ , शासनकर्ता पार्टी के साथ बाहर से सपोर्ट देने के लिए जुड़ जाती हैं ! ये चहरे वक्त पड़ने के साथ उसके दोनों और जुड़ कर अट्टहास करते थे , जिससे रावण बहादुर और शक्तिशाली नज़र आये ! इन चेहरों में किसी के कट जाने पर उसके स्थान पर कोई और दूसरा चेहरा आ जाता था , और दशानन को कमज़ोर नहीं होने देता था !
राम से अंतिम युद्ध करते समय उसके वही सहयोगी चहरे - माल्यवान , कुम्भकरण , इन्द्रजीत , मारीच , वगेरह राम को डराने के लिए दशानन बन कर आये थे , !
अंतिम युद्ध में रामने मूल रावण के साथ उसके दुसरे चहरे भी विभीषण के द्वारा बताये जाने पर , काट डाले , तभी रावण समाप्त हुआ !
इस प्रकार दशानन के दस चेहरों का राज. पंडित देवीदीन द्वारा बताई गई बातों से मेने बखान किया !.... शायद तुम संतुष्ट हो जाओ !
. ,,,,,,,.. रही बात दशानन के सोने की समस्या की ..! तो दशानन को ये चहरे ' ' सोने ' ही नहीं देते थे ..,इसलिए वह इन चेहरों को दरबार में ही छोड़ कर घर आता था ! दूसरे ,,,, उसे एक डर यह भी था की कहीं दस चेहरों के साथ ' मंदोदरी " ने उसे देख लिया तो समस्या पैदा हो जायेगी , .. कहीं ' मंदोदरी' मूल चहरे को छोड़ कर किसी दूसरे चेहरे पर रीझगयी तो रावण का क्या होगा ! '''" ..
. .... सरपंच के कड़के के मौन भंग होते ही ....बस्ते में से हिन्दी की किताब टपक कर कहीं बाहर गिर गयी ,,, स्कूल में बस्ता खोलने पर जब उसे किताब नही दिखी ,, तो उसे वापिस उठाने लड़का फिर घर की और दौड़ पडा !....!!
- ' अथ " बे-ताल " पच्चीसी !'
------ सभाजीत
............सरपंच का लड़का , खूंटी से बस्ता उतार कर, उसे " वेताल " की तरह कंधे पर लाद कर एक बार फिर स्कूल की ओर बढ़ लिया ! स्कूल की एक ही कक्षा में पढ़ते हुए उसे कई साल हो रहे थे , लेकिन वह हर बार किसी ना किसी विषय में फेल हो जाता था ! उसके सरपंच पिता ने शिक्षा विभाग से कहकर , कई नालायक मास्टरों के स्कूल से तबादले करवा दिए थे कि उसका लड़का बोर्ड परीक्षा में किसी तरह पास हो जाये , लेकिन लड़का था की अति विवेकी होने के कारण पास ही नहीं हो पा रहा था !
,,,,,, आधे रास्ते चलने के बाद , रामलीला ग्राउंड के पास पहुंचते ही बस्ते , में रखी हिन्दी की किताब ने , सरपंच के लड़के से यूँ प्रश्न किया -
".. इस ग्राउंड पर हर साल दस मुँह वाले " रावण " का पुतला जलता है ! क्या रावण दस मुँह वाला रहा होगा ??,,,, यदि हाँ तो वह सोता कैसे होगा ?? उसे ' दशानन ' क्यों कहा गया ??....इन बातों के उत्तर तुम जानते बूझते भी नहीं दोगे तो तुम्हारे पिता की सरपंची इसी क्षण छिन जायेगी ! "
,,,,,,सरपंच का लड़का किताबों के ऐसे ऊलजलूल प्रश्नों से बहुत परेशान था ! ये किताबें उसे स्कूल तक पहुँचने ही नहीं देती थी ! बीच मार्ग में ही उससे सवाल पूछ कर ,उसे इम्मोशनल धमकियां देती रहती थी !,,,,, उसे ' विद्या-माता ' की ताकत से बहुत डर लगता था !,,,, भले ही लड़के को , पिता से उतना प्रेम नहीं था लेकिन पिता की सरपंची से वो बहुत प्यार करता था इसलिए थोड़ी देर चुप रहकर आखिर वह इस प्रकार बोला -
- " इस प्रश्न को एक बार मेरे पिता ने मड़िया देव के पुजारी ' देवीदीन ' से भी पूछा था !,,,,मेरे पिता को जब भी सरपंची जाने का डर लगता तो वो मड़िया देव के पुजारी से गण्डा ताबीज़ बंधवाने चले जाते थे !,,, तब उस दिन वे मुझे भी साथ ले गए थे !,,, ' देवीदीन महाराज ' ने अपने पास रखी रामायण की सभी पोथी ,,,, गुटका से लेकर अर्थ वाली बड़ी रामायण तक ,पलट डाली , लेकिन इसका उत्तर उन्हें बाल काण्ड से लेकर उत्तर काण्ड तक कही नहीं मिला ! शायद ' तुलसीदास जी ' भी इसका उत्तर लिखना भूल गए थे ! खैर,,,, , मड़िया देव के पुजारी ने अपनी अकल लगा कर जो बापू को समझाया वही में तुम्हे बताये देता हूँ ----"
......रावण लंका में शाशन करता था , जैसे आज भारत में लोग शाशन करते हैं ! ,,,,उसके दरबार में ' विभीषण ' विपक्षी दल के रूप में बैठता था -,,,, जैसे आज अपने देश में सदनों में विपक्षी दल बैठते हैं !,,,, रावण और विभीषण एक ही कुल के वंशज थे ,,, एक ही खून ,, और उन दोनों में एक ही बात को लेकर मतभेद था की ' गद्दी ' कौन सम्हाले ! बाकी वे भाई भाई ही थे !,,,, रावण गद्दी छोड़ना नहीं चाहता था और विभीषण बिना गद्दी लिए टलने वाला नहीं था !
,,,,,,रावण के पेट में बहुत सारे ' मायावी चहरे ' समाये रहते थे ! इन चेहरों के पेट नहीं थे , लेकिन बड़े बड़े मुंह जरुर थे जिससे ये बहुत सारी सामग्री , जैसे , अयस्क , मिनिरल , जमीन ,, खदानें ,, जंगल ,, प्रोटीन की तरह गटकते रहते थे .., रावण के पेट में रहने के कारण इन्हें जनता ठीक से पहचानती भी नहीं पाती थी ,,,, और रावण को भी अपनी उदरस्थ की गयी चीज़ें , पचाने में इससे आसानी होती थी ! ,,,,, शांति काल में रावण अपने मूल मुख से ही शाशन करते हुए , खाता पीता रहता था ! ,,,लेकिन संघर्ष के समय उसे शत्रु को मूर्ख बनाने के लिए, और अपनी शक्ति दिखाने के लिए और कई चेहरों की ज़रूरत होती थी ! रावण के पेट में समाये चहरे .., संघर्ष में कट जाने के डर से बाहर नहीं आते थे !,,, रावण भी उन्हें बाहर नहीं आने देना चाहता था कि ,,, वे कहीं खाई हुई चीज़ों के बारे में - " बक झक " ना दें ! ,,,, तब रावण ने कुछ बाहरी चेहरों को अपने खुद के के चेहरे के साथ अतिरिक्त रूप से जोड़ लिया ! जैसे आज हमारे देश में मूल शासक पार्टी को सहयोग देने के लिए , अन्य कई पार्टीयाँ , शासनकर्ता पार्टी के साथ बाहर से सपोर्ट देने के लिए जुड़ जाती हैं ! ये चहरे वक्त पड़ने के साथ उसके दोनों और जुड़ कर अट्टहास करते थे , जिससे रावण बहादुर और शक्तिशाली नज़र आये ! इन चेहरों में किसी के कट जाने पर उसके स्थान पर कोई और दूसरा चेहरा आ जाता था , और दशानन को कमज़ोर नहीं होने देता था !
राम से अंतिम युद्ध करते समय उसके वही सहयोगी चहरे - माल्यवान , कुम्भकरण , इन्द्रजीत , मारीच , वगेरह राम को डराने के लिए दशानन बन कर आये थे , !
अंतिम युद्ध में रामने मूल रावण के साथ उसके दुसरे चहरे भी विभीषण के द्वारा बताये जाने पर , काट डाले , तभी रावण समाप्त हुआ !
इस प्रकार दशानन के दस चेहरों का राज. पंडित देवीदीन द्वारा बताई गई बातों से मेने बखान किया !.... शायद तुम संतुष्ट हो जाओ !
. ,,,,,,,.. रही बात दशानन के सोने की समस्या की ..! तो दशानन को ये चहरे ' ' सोने ' ही नहीं देते थे ..,इसलिए वह इन चेहरों को दरबार में ही छोड़ कर घर आता था ! दूसरे ,,,, उसे एक डर यह भी था की कहीं दस चेहरों के साथ ' मंदोदरी " ने उसे देख लिया तो समस्या पैदा हो जायेगी , .. कहीं ' मंदोदरी' मूल चहरे को छोड़ कर किसी दूसरे चेहरे पर रीझगयी तो रावण का क्या होगा ! '''" ..
. .... सरपंच के कड़के के मौन भंग होते ही ....बस्ते में से हिन्दी की किताब टपक कर कहीं बाहर गिर गयी ,,, स्कूल में बस्ता खोलने पर जब उसे किताब नही दिखी ,, तो उसे वापिस उठाने लड़का फिर घर की और दौड़ पडा !....!!
- ' अथ " बे-ताल " पच्चीसी !'
------ सभाजीत
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