बुधवार, 29 अगस्त 2012

शनिवार, 4 अगस्त 2012


उस   दिन मध्यप्रदेश के एक ' वनग्राम' में रात को  एक मित्र के घर में रुकना पड़ गया !
सुबह तीन बजे ही नींद खुल गयी , ग्राम के बगल में ही गहन वन था , ! मन में आया क्यों ना थोड़ा  'वन' की सैर की जाये ! मित्र को जगाया , वह मेरी इच्छा भांप कर तैयार होगया ! कुछ ही देर में  हम जंगल में प्रवेश कर गए !  सुनसान जंगल में  चलते हुए मैंने मित्र को पूछा , ' यहाँ लोग प्रातः भ्रमण ' नहीं करते ..? , वह बोला - ' इस जंगल में बहुत कम ही लोग आतेजाते  हैं  नक्सलियों का डर है ..! " में सकपका कर चुप हो गया ! थोड़ी देर बाद हम लोगों ने देखा - एक विचित्र सी आकृति हमारे सामने सामने तेज कदमो से चल रही थी ! वह एक अधेढ़ पुरुष था ! रंग बिलकुल कला आबनूसी , और सर पर एक शिखा लहरा रही थी ! बदन पर सिर्फ एक उत्तरीय था , और कंधे पर लटकती ' जनेऊ ' उसके ब्राम्हण होने का संकेत दे रही थी ! मेने थोडा शशंकित हो कर मित्र को निहारा , वह चुपचाप चल रहा था .. फिर आगे देखा तो आकृति गायब थी ! मेने दबी ज़बान से मित्र से पूछा  - यह क्या हो सकता है .....? ' वह धीरे से बोला -'इस वन में बहुत सी आक्रतिया ब्रम्ह्बेला में घुमती है  उनमे से ही कोई है ' ! मेने कोतुहल में पैर तेजी से बढ़ा कर उसके समीप पहुँचाने की कोशिश की  लेकिन आश्चर्य वह आकृति  सामने उसी दूरी पर बनी रही ! अब मुझे और भी उत्सुकता होने लगी आखिर यह सब क्या है ? तभी एक गूंजती सी आवाज़ सुनाई दी ..' तुम कौन हो मित्र या शत्रु ..? , मेरा पीछा किसलिए कर रहे हो ? "  मेरे पैर ठिठक गए सोचने लगा की इसने बिना मुड़े ही कैसेदेख  लिया की मै इसके पीछे हूँ ? तभी वह आवाज़ फिर आई - " यदि मित्र हो तो मेरे पीछे आने का तात्पर्य बताओ " ! मेरी आवाज़ बन्ध गयी थी फिर भी कहा - 'देव ..!! में सिर्फ आपके दर्शन करना चाहता हूँ  और जानना चाहता हूँ की आप कौन है ..!!""  'ठीक है .. अपनी बाएँ और देखो " .. मेने उसके कहे अनुसार बाएँ और देखा -  वह आकृति अब कुछ दुरी पर मेरे सामने  थी ! - मेने ध्यान से देखा - सर पर लम्बी शिखा ही नहीं , बल्कि एक श्वत दाढीमुह पर लहरा रही थी , नेत्रों में अजीब सी चमक के साथ द्रढता  थी ,  एक ऐसी शक्शियत सामने थी जो पोराणिक ही हो सकती थी !  उसे देख कर  जैसे में यंत्र चालित हो गया ! मेरा मित्र भी चुपचाप मेरे से सट कर कर खडा  होगया !   'कहो क्या कहना चाहते हो ..? '
कुछ नहीं देव पहले तो आप मेरा ' नमन ' स्वीकार करें '..! फिर बताएं की आप कौन है ..? "
में ' विष्णुगुप्त ' हूँ .. तुम लोगों ने मेरा नाम ' चाणक्य ' के नाम से किताबों में पढ़ा होगा ! "
नाम सुनते ही हम दोनों धरा पर साष्टांग  लेट गए ! यह कैसा अवसर था .. अद्भुत जो हम इतिहास के एक अद्वितीय विभूति से साक्षात्कार कर रहे थे .!.हमारा रोम रोम सिहर उठा !  "
उसने गंभीर स्वर में कह - 'उठो '''तुमारी विनयशीलता ने मुझे प्रभावित किया .. मेरे पास समय कम है  पौ फटते ही में इस वन से बाहर चला जाउंगा  यदि मुझसे कुछ पूछना हो तो पूछ लो "
"देव .. ! आप राजनीती के देव हैं ! बस हमारे देश की वर्तमान राजनीती के बारे में कुछ हमें मार्ग दर्शन देदें ! "

वे हँसे  फिर बोले ' भारत की राजनीती इस समय मेरे काल के ' नन्द वंश ' से भी ज्यादा निकृष्ट है ! किन्तु उसका कारण में खुद को मानता हूँ ! "
" क्यों देव ..?"
 " मैंने ही सबसे पहले राजनेतिक समस्या के हल के लिए , 'चन्द्रगुप्त ' का विवाह ' एक विदेशी जाती में करवाया था , जिससे ' वर्णशंकर ' संतान उत्पन्न हुई ! .. फिर बाद में यवनों के आक्रमणों के बाद , यह प्रथा बढ़ गयी , और समाज में बहुत से यवन हमारे ही बीच उत्पन्न हो गए ! आंग्ल देश वासियों के राज में यह प्रथा एक फेशन हो गयी , हमारी संस्कृति का विनाश हुआ और आज भारत इन्ही कारणों से बस एक रंग बिरंगे लोगों के रहने की " धर्मशाला ' बन गयी , जहाँ कोई भी ना तो अब ' राष्ट्र भक्त  ' है और नाही  ' जिम्मेदार ' ! "
' सच है देव ! लेकिन आज तो हमारे साशनकर्ता   ही हमारे धन को लूट ने में लगे हैं .., जीवन दूभर है .कही शांति नहीं "
" में जानता हूँ वत्स ! "
 तो फिर हमारे लिए क्या उपाय है ? हम कैसे इस स्थिति से बचें !"
विष्णुगुप्त  गंभीर हो गए ! फिर बोले ' उपाय तो सरल है "
क्या उपाय है देव ..? "
' तालाब को दूषित करने वाली 'काई  ' को नष्ट करने के लिए जैसे एक ' मुट्ठी ' चूना पर्याप्त है वैसे ही शाशन पर काबिज़ हुए गंदे लोगों को दूर करने के लिए ' मुट्ठी भर ' इमानदार 'लोग  काफी हैं   जो तालाब में उतरने का हौसला रखते हो ! "
 लेकिन देव ! उन लोगों से लड़ना आसान नहीं ! वे ' हिंसक ' भी हैं ..!"
विष्णुगुप्त की आवाज़अचानक कड़क हो गयी ! - ' हिंसा और अहिंसा ' की शिक्षा तो बुद्ध , और गाँधी की देन है जिसने तथाकथित सज्जनता को आभूषण बना कर हर इमानदार को भीरु बना दिया है !  यही कारन है की भारत में अपराधी राज कर रहे हैं ! याद रखो - तालाब की सफाई के लिए उतरना है तो मन में इमानदारी , . ह्रदय में द्रढ़ता , और एक हाथ हमेशा  'तलवार की मूंठ ' पर रखना होगी ! "

लेकिन देव..!  तालाब यानि सता में प्रवेश भी तो आसान नहीं ,, गणतांत्रिक देश है , कई पार्टियाँ है , लोग धर्म जाति समुदायों में बनते है .., कैसे आगे बढ़ें " विष्णुगुप्त थोड़ी देर चुप रहे  फिरहमें नज़दीक बुलाया ! उन्होंने अपने उत्तरीय में से एक थैली निकाली जिसमें कई रंगबिरंगे ' कंकड़ ' थे !  फिरज़मीन पर एक बहुत बड़ा और एक छोटा घेरा खींचा ! उन्होंने वे रंग बिरंगे कंकड़ बड़े घेरे में डाल दिए और कहा - ' ध्यान से देखो ! यह बड़े घेरे में देश की जनता है जो विभिन्न  रंगों में और बड़ी संख्या में है !  ! "इनमे से निकल कर कुछ लोग इस ' छोटे घेरे ' में जाते हैं जो " सत्ता " का घेरा है ! यहाँ पहुँच कर भी वे बिना एक दुसरे की मदद के ' सरकार ' बनाने में असफल हैं ! '
  'सही है देव " ! - हमने कहा !
' राजनीती का पहला पाठ है की विजय चाहिए तो शत्रु को तितर बितर करदो ! , इसके लिए उचित होगा की बड़े घेरे को ही तितर बितर करदो "
इसका क्या मतलब है देव !" -- हमने आश्चर्य से पूछा !
इसका मतलब है की जितनी संख्या में पार्टियां गंदे लोगों की लड़ें , उतनी ही संख्या में पार्टियां अच्छे लोगों की लड़ें..!. , इससे' लोगों ' मत '  तितर बितर होंगे ! छोटे घेरे में कई पार्टियां पहुचेंगी ,  जिन्हें एक होना जरुरी होगा ! और वहां पहुँच कर अच्छे लोग फिर एक हो जाएँ ..  तो शाशन अच्छे लोगों का ही होगा ! !! लेकिन अंतिम बात वही है - अच्छे लोग यानि अच्छे लोग .. सिर्फ ईमानदार ! "

हम अवाक हो कर उस देव शक्ति को निहार ने लगे ..! पूर्व में पौ फटने लगी और वह आकृति धीरे धीर विलुप्त होगई !

क्या यह संभव iहै -- हम सोचते हुए लौटने लगे !

--सभाजीत