रविवार, 13 मई 2012








 मां ...,!


धरती सी ...,
 झेलती है समय की कुदाली .,
करती है उपवास..,
पीकर बस जल..,
जन्मती है गर्भ से ..,
 स्वर्णमयी कोंपलें..,
 गेहूं की बालियाँ..,
जीती है जीवन ..,  गाँव में बदहाली का..!!


मां ,
यशोदा सी ..,
सजाती सँवारती,
पुचकारती दुलारती ,
लगाती डिठौना
छुपाती आँचल में ..,
बचाती पूरे गाँव , मोहल्ले से ,..,
की साया  न पड़े  ..,
किसी बुरी नज़र वाली का ..!!


मां ,
देती  है  शक्ति ..,
सत्य को पूजने की ,
रण में  जूझने  की ..,
हुंकारों  की ..  टंकारों  की ,
गगन भेदी तुमुल घोष .,युद्ध के  नक्कारों  की ..!!
की बच न पाए ..रक्तबीज,
धरा पर कोई एसा ,
जो छुए आँचल किसी ,
 बेबस 'पांचाली' का..!!


मां ..,
झुर्रियों में डूबी,
जीवन से उबी
रहती है पति बिना .,
 बेटे के घर ..डरी डरी ..!!
सुनती है बातें..,
बहु से खरी खरी..!!
भाग्य को टटोलती..,
उम्र  को तौलती..,..,
 करती है इंतज़ार..,
 की कब देगा उसे आग..,
फूल खुद उसकी डाली का..!!






अनगिनित चेहरे , मां के ..,
 मेरी यादों को  घेरे हैं ..,
और सिर्फ ये  एक दिन मां का है ..!!
बाकि दिन सुरमई  अँधेरे हैं ..,
ऐ   मां.. बता ..,
याद तुझे किस रूप  में करूँ ..?,
 तेरे ऋण तो   हजारों  है ..,
किस ऋण को आज भरूं ..??


---सभाजीत

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