बुधवार, 7 मार्च 2012

(१)
काह कहऊ घर आँगन आज ,
हुडदंग मच्यो , सब ओर घन्यो री...,
दोडा दौरी, पटका-पटकी , ॥,
झूमा- झटकी , हरकत लर्कोउरी...!
घरवारी आय लगी डाटन,
घर काय घुसे रसहीन अघोरी ??
बाहर कड़ काय नहीं खेलत ,
सब खेल रहे देखो -" होरी" !! ...

(२)
मन में कोऊ रंग नहीं जाग्यो ,
जब यारान आय रंगी ड्योरी ,
तन में ना कोऊ हुलास उठी ,
जब भाभी गाल मल्यी रोली ,
बीबी मुसकाय उडेल्यो रंग ,
डोल्यो ना अंग , ना आँख उघेरी ,
'गुड-फील' भयो जब 'सारी' आय ,
कही -'जीजा ' खेलो होरी॥!!

(*३)
दूरी से रोज लडात रही ,
नैनन संग पेंच जो चोरी-चोरी॥,
आय अचानक ठांड भई ,
ले रंग , अबीर , गुलाल रोरी ,
मटकाय नयन बोली छोरन से ,
अंकल शर्ट दिख्ये कोरी,
रंग देऊ इन्हें ऐसे रंग से ॥,
कारी काया  होवे गोरी..!!

(४)
नज़र लुकाय जो भगत रही ,
वो नज़र लडाय खडी हो ली ॥,
जिन होठन कबहु ना बात सुनी ,
वो ठिल ठिलाय की खूब ठिठोली ॥,
जो रोज नजर मटकात रही ॥,
वो नज़र झुकाय बनी भोली ,
जिनके मन में जो हुलास रही ,
वो निकर गयी जो खेली ='होली'॥





--सभाजीत

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