गुरुवार, 12 जनवरी 2012

फिल्म.....!!


फिल्म ने किया -आकर्षित मुझे ,
क्योंकि यह भाषा थी ...,
उस अभिव्यक्ति की..,
जिसमें कैद हो जाते हैं ..,
छोटे. छोटे , क्षण ,
बिखरे
स्वर ..,
उदबोधन !!
समय से उम्रदार ..,
कुछ हुआ - ना होगा..!!
गुजरता गया वह ..,
ओए
खोदता गया ..,
अनगिनित
सभ्यता .., अनगिनित कथाओं के ...,
सतरंगी चित्र,
प्रथ्वी के इस धानी दामन पर..,!!

समय के घूमते चाक पर ,
कुम्हार
की जादुई उँगलियों से ..,
उभरी
अल्पकालीन रचनाएं..!!
बदल
कर बार बार ..,
ढल
गयी अपनी मूल आकृति ,
मिटटी में ..,
की छुएँ उसे फिर वही उंगलियाँ ,
नए नए रूपों में ..,
गढ़ने
के लिए ..!!


समय से आँख मिला कर ..,
किसी को कुछ उम्र दे देना..,
एक
आसान काम नहीं ..,
क्यूंकि
,
उम्र
देना - उस सृजनकार का काम है ,,
जिसे
आता है ..,
कुछ
रचना..!!

फिल्म ..,
उस गतिवान समय के ..,
क्रमबद्ध गुजरते क्षणों को रोक कर ,..,
बदल
देती है - उसे जीवित चित्रों में ..,
और दे देती है उसे..,
एक
उम्र -अपने हाथों से ,
अपने
अंदाज़ में ..,

फिल्म जीवित करती है ,
बिलकुल
ही विस्मित हो गए ,
कल्पनाओं
से परे..,
उन
क्षणों को ..,
जिनसे
मिलना ..,
संभव
ही नहीं था ..,
इस
वर्तमान को ..!!

फिल्म .
एक सम्पूर्ण श्रृष्टि की तरह ..,
समेटे रहती है खुद में
हजारों
हज़ार वजूद..,
हर वजूद..,
जिसमें
होता है ,
समय का वह काला अक्स..,
जो उजाले में ..,
दिख
ही नहीं सकता किसी को ..!!,



....सभाजीत

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