गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

" शायरी "
( चन्द शेर ना समझी के )
'ख्वाब' में गुजरी जो अपनी एक रात '
उसमे थी - 'मेरी 'न ' तेरी ' कोई बात ..!
पत्थरों को 'बुतों' में तब्दील करने के लिए ...,
बिन 'लकीरों' के हो गए अपने दोनों ' हाथ'..!!


यु तो हर - दिन गाते रहे हम ..,
कि होंगे एक दिन 'कामयाब.'..,
नशे में थे या कि मदहोश हम..,
'जुगुनुओं ' को समझ बैठे 'आफताब '...!!

'पेट ' था ख़ाली मगर
'ख़त' - प्यार के लिखते रहे..,
' भूख ' से बढ़कर ' निकले..हंसीं ,
'दिलों ' के 'ज़ज्बात,.' ..!!


ऊँचे , ऊँचे , 'महलों' में न..,
जब 'दिल ' ये 'आवारा' लगा ..,
रहगुजर पर चल पड़े हम ,
कर ' फकीरों ' का साथ...!! ,


ख़त में जो 'मज़मून' थे..,
उनको तो न वे कुछ पढ़ सके..,
'इबारत' और 'हर्फ़ ' की ...,
'खूबसूरती ' में उलझे जब - 'जनाब.' ..!!


' कातिलों -' को 'मसीहा.'..,
और 'मसीहा' को ' कातिल'- समझ..,
कत्लगाहों की द्योडियों पर ...,
देते रहे हम 'आदाब.'..,!!


कोई तो 'चेहरा' ..,
हमारे 'अक्स' सा होगा कहीं...,
'चाहतें' दिल में 'संजोये'.....,
हर 'सर' पे रखते रहे 'ताज '...!!


और कितनी दूर हमको
'सफ़र ' करना है अभी...,
'रहनुमा' न जानते है...,
और न जाने - 'हम नवाज '...!!


'रस्मे -अदायगी' नहीं थी...,
यह' जिंदगी'..,
खुदा कि ' रहमत' ' थी ये
और..,'कुदरत ' की थी ये 'बंदगी.'.,
क़यामत के दिन तलब होंगे जब सभी..,
इन्सानियत के दुश्मन तब क्या देंगे जबाब ...??

__ सभाजीत 'सौरभ'

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