कभी यूँ भी तो हो...,!!...,
मे कहूँ 'न' , तुम कहो 'हाँ'
अपनी' मनुहारों' में उलझा रहे जहाँ .., !!
मे कहूँ 'हार' , तुम कहो 'जीत'
खेलते - खेलते ही , जिन्दगी जाये बीत..,!!
मे कहूँ 'गाँव', तुम कहो 'शहर'..,
बेघर- बंजारों से ,घूमें इधर उधर..!!
मे कहूँ 'दोस्त', तुम कहो 'यार'.,
दोनों ही न जान सकें , क्या होता है प्यार..!!
मैं लगू 'गले', तुम करो 'गिले',
बातें हो प्यार क़ी,- दिल हो जले- जले..!!
.... सभाजीत
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